Wednesday, October 2, 2024
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War in World : क्या इजराइल-हमास युद्ध से रूस और चीन को फायदा हो सकता है ?

लैंकेस्टर (यूनाइटेड किंगडम)। ग़ाज़ा में इजराइल और हमास के बीच युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है, ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि बड़ी शक्तियां कौन सा रुख अपना सकती हैं। एक ओर जहां ज्यादातर पश्चिमी देश इजराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करने के लिए एकजुट हैं, वहीं चीन और रूस अपने गणित में व्यस्त हैं। व्यापक ‘ग्लोबल साउथ’ के साथ साथ, चीन और रूस ने गाजा में इजराइल की सैन्य प्रतिक्रिया और फलस्तीनी नागरिकों पर इसके प्रभाव की आलोचना से झिझक नहीं की है।

इजराइल और हमास के बीच लड़ाई से रूस और चीन को फायदा होता है या नहीं, यह सोचने वाली बात होगी। पश्चिमी देश रूस और चीन के रुख को ऐसा अवसरवादी कह सकते हैं जिसके पीछे और रणनीतिक लाभ के लिए पश्चिमी देशों का उनका विरोध शामिल है। वैसे ‘ग्लोबल साउथ’ की राय अब भी प्रभावशाली हो सकती है।

1960 के दशक में पनपा ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द आम तौर पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। खासकर इसका मतलब, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर, दक्षिणी गोलार्द्ध और भूमध्यरेखीय क्षेत्र में स्थित ऐसे देशों से है जो ज्यादातर कम आय वाले हैं और राजनीतिक तौर पर भी पिछड़े हैं।

बहरहाल, रूस और चीन को यह सुनिश्चित करना होगा कि यूक्रेन और गाजा संकट को लेकर परस्पर विरोधी रुख के चलते आलोचना से घिर कर कहीं उनकी स्थिति पश्चिमी देशों के समान न हो जाए।

खुद को महान शक्तियों के रूप में दिखाने और ग्लोबल साउथ का समर्थन हासिल करने के लिए, उन्हें नागरिकों की रक्षा करने और कानूनी और मानवीय दायित्वों को बरकरार रखने के लिए अपनी कथनी और करनी के अंतर को खत्म करना होगा, जैसा कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में व्यक्त किया गया है। रूस और चीन दोनों ही देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।

इजराइल पर सात अक्टूबर को एकाएक किए गए हमास के भयावह हमले के बाद गाजा को लेकर दुनिया के देशों में विभाजन गहरा हो गया है। हमास ने सात अक्टूबर को इजराइली भूभाग में घुस कर बड़ी संख्या में लोगों को मार डाला और 200 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया। इस हिंसा पर इजराइल का सत्ता प्रतिष्ठान हक्का बक्का हो गया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी स्तब्ध रह गया।

ज्यादातर प्रस्तावित प्रस्तावों में नागरिकों पर हमलों की निंदा की गई थी। अमेरिकी आपत्तियों में इज़राइल के आत्मरक्षा के अधिकार की स्वीकृति न होना शामिल था।

इसके विपरीत, न तो रूस और न ही चीन ने मसौदा प्रस्तावों में युद्धविराम के आह्वान की कमी पर आपत्ति जताई। हमास की खुले तौर पर आलोचना न करने के मामले में भी वे पश्चिम से भिन्न रहे हैं। हमास के एक प्रतिनिधिमंडल ने युद्धविराम की संभावनाओं और बंधक स्थिति के समाधान पर चर्चा करने के लिए मास्को का दौरा भी किया था।

दोनों देशों ने हाल के दशकों में इज़राइल के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंध बनाए हैं। इजराइल में चीनी निवेश से लेकर सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान रूसी और इज़राइली समन्वय तक, वे अरब दुनिया में जनता की राय के प्रति सचेत हैं, जो इज़राइल की सैन्य प्रतिक्रिया की आलोचना करता रहा है।

इजराइल की कार्रवाई को लेकर गुस्सा इतना अधिक है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की सरकारें भी सार्वजनिक रूप से खुद को इजराइल से दूर करने की जरूरत महसूस कर रही हैं। हमास के लिए थोड़ी नरमी रखने वाले संयुक्त अरब अमीरात ने जहां इजराइल के साथ संबंध सामान्य कर लिए थे वहीं सऊदी अरब ऐसा करने की प्रक्रिया में था। लेकिन अब दोनों ने रुख बदल लिया है।

वैसे रूस और चीन की स्थिति ने व्यापक वैश्विक भावना को भी प्रतिबिंबित किया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अभाव में, सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधित्व वाली महासभा ने 27 अक्टूबर को मानवीय संघर्ष विराम के लिए एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव सफलतापूर्वक पारित किया।

इस प्रस्ताव में नागरिकों पर हमलों की निंदा की गई और ‘नागरिकों की सुरक्षा तथा कानूनी एवं मानवीय दायित्वों को बनाए रखने’ का आह्वान किया गया।

रूस और चीन, अरब जगत के अधिकतर देशों और ग्लोबल साउथ के साथ 120 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि अमेरिका सहित 14 देशों ने विरोध में मतदान किया और आस्ट्रेलिया सहित 45 देशों ने मतदान से परहेज किया। अमेरिका ने प्रस्ताव में हमास के संंबंध में कोई स्पष्ट जिक्र नहीं होने का विरोध किया।

रूस का रुख यूक्रेन में उसके युद्ध से भी प्रभावित हो सकता है। यूक्रेन पर फरवरी 2022 में हमला करने के बाद रूस ने उसके कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। रूस उम्मीद कर सकता है कि इजराइल-हमास संघर्ष पश्चिमी देशों का ध्यान यूक्रेन से हटा सकता है तथा उसे (यूक्रेन को) हथियारों की आपूर्ति एवं अन्य व्यावहारिक सहायता रूक सकती है।

इज़राइल-हमास युद्ध के संबंध में रूस और चीन का रुख अब तक व्यापक ग्लोबल साउथ के अनुरूप रहा है।

हालात ऐसे हैं कि पिछले कुछ हफ्तों में इजरायली राजनीतिक प्रतिष्ठान के भीतर रूस और चीन के प्रति अविश्वास बढ़ा है।

इज़राइल ने कभी भी रूस और चीन को अमेरिका के समान सहयोगी या तुलनीय सहायता की पेशकश करने वाला नहीं माना है, इसलिए सात अक्टूबर के हमले पर उनके (इन दोनों देशों के) बयानों में देरी और इज़राइल की सैन्य प्रतिक्रिया की उनके द्वारा आलोचना के दूरगामी परिणाम मिल सकते हैं।

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