पूरन सरमा@ व्यंग्यकार
अब तो चुनाव की रंगत शुरू हो चुकी है, लेकिन जब दलों को लेकर अपने दल का पुनर्गठन किया था। उस समय मात्र चुनाव की आशंका से भयातुर अपने समान धर्मा दलों से मैंने अपील की कि सत्तारूढ़ दल को बराबर की टक्कर देने के लिए एक हो जाना चाहिए। मेरी इस अपील का व्यापक प्रभाव हुआ और इधर-उधर बिखरे छुटभैया मेरे जैसे विशाल वट की छाया में आ इकट्ठे हुए। जिन दलों को लेकर नया दल गठित किया, उस समय कोई बात आड़े नहीं आई। क्योंकि लक्ष्य महज सरल और कॉमन था कि येन-केन सत्ता हथियानी है। गठन तक यह भावना लगातार प्रधान रही कि यदि एक हो गए तो बहुमत हमें अवश्य मिल जाएगा। क्योंकि जनता विकल्प के लिए छटपटा रही है, जनता को एक सशक्त विकल्प मैंने दे दिया था।
अब जनता का दायित्व है कि वह हमारे साथ क्या सलूक करती है। चुनाव की हडबड़ाहट में तमाम चमगादड़ मेरे हर्द-गिर्द आ गए तथा जैसा कि मैंने पहले बता दिया था कि अध्यक्ष नए दल का मैं ही बनूंगा, बना दिया गया। अब मैं अपने नए दल का स्वयं भू अध्यक्ष था। खैर दल के गठन के चन्द दिनों के बाद ही चुनाथ तिथियां घोषित हुईं और मैंने जनता को फिर आगाह किया कि तानाशाही और राजशाही जन्म ले रही है। अतः इस शिकंजे को इस आम चुनाव में तोड़ना है तथा हमारे दल को विजयी बनाना है। हमारा वह तथाकथित दल, जिसके गठन के समय हमने तमाम वैचारिक एवं सैद्धांतिक मतभेद भुलाकर केवल सत्ता हथियाना प्रमुख लक्ष्य मानकर काम शुरू किया था, इसमें शुरू से ही व्यापक धड़ेबंदी है।
साथियों का मानना है कि मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि प्रधानमंत्री बनने लायक दल में और कोई है भी नहीं। चुनाव लड़ने के लिए अपने बुनियादी उसूलों को जनता के सामने खुलासा करने की बात आई तो सभी धड़े के लीडरों ने अपने विचार व अपनी मान्यताएं रख दीं। जिससे जहां चुनाव घोषणापत्र में विविधता व विरोधाभास आया है। यही स्थिति इतनी हास्यास्पद हो गई कि मतदाता जिस नजरिए से देखें, उसे हमारा दल अपने ही विचारों के अनुकूल लगने लगा। दूसरे दल बिफरने व बिखरने लगे। दोनों हाथ जोड़ मनाही करने लगे। नहीं ‘साब’ न एकता सम्भव है और नहीं गठजोड़ आप अपना जोड़-तोड़ बैठाते रहो और हमें मेहरबानी करके छोड़ दीजिए।
कोई आदमी अपनी पार्टी को खराब करने को तैयार नहीं है, जबकि मैं लगातार यह विश्वास दिलाता रहा हूं कि न तो मैं किसी दल को खराब करना चाहता हूं और न ही मेरे पास आने से उनकी छवि खराब होगी। पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में वाया मेरे यह कहा गया कि गरीबी तक तक नहीं मिट सकती जब तक कि सत्तारूढ़ दल को सत्ताच्युत नहीं किया जाएगा। जबकि मैं खुद जानता हूं कि यह अलादीन के चिराग से कम नहीं है।