Sunday, November 17, 2024
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Rajasthan Election 2023: उलझन में सीएम का विजन-2030, कैसे मनाएं रूठे को

जयपुर। प्रदेश में सत्ता वापसी और विजन-2030 को साकार करने की राह में आ रहे नित नए रोड़े मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस की चिंता को बढ़ा रहे हैं। ईआरसीपी यात्रा और कांग्रेस विधायकों के साथ निवाई और सवाईमाधोपुर में हुई बदसलूकी के बाद ये साफ हो गया कि कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक गुर्जर समाज उससे बहुत ज्यादा रूठा हुआ है। साढ़े चार साल तक गुर्जर समाज के बड़े नेता सचिन पायलट से सीधी लड़ाई कर रहे सीएम गहलोत ने सारा राजनीतिक अनुभव लगाकर जैसे-तैसे शीर्ष नेतृत्व को मनाया और पायलट के बागी तेवरों को ठंडा करवाया। लेकिन समाज की नाराजगी को गहलोत दूर नहीं कर पाए। यहां तक की पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) के बड़े मुद्दे को भी वे ऐनमौके पर भुनाने में विफल साबित हो गए। क्योंकि ईआरसीपी का यह मुद्दा सीधे तौर पर गुर्जर बाहुल्य क्षेत्रों से जुड़ा है। कांग्रेस और गहलोत ने इस मुद्दे को इसीलिए मजबूती से थामे रखा कि चुनाव में मास्टरस्ट्रोक की तरह इसे खेल पाएंगे, पर हुआ उम्मीद के एकदम परे। पार्टी और सीएम चुनाव की घोषणा तक गुर्जर समाज को मना नहीं पाए। एेसे में सीएम गहलोत को भी महसूस हो गया है कि प्रदेश की 30 से 35 सीटों की भरपाई दूसरे समुदायों और समीकरणों से करनी पड़ेगी।

इसलिए नाराज है गुर्जर समाज

कांग्रेस के बड़े नेता सचिन पायलट इसी समाज से हैं। वर्ष 2018 के चुनाव में आठ गुर्जर नेता जीते थे, इनमें अकेले सात कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे। प्रदेश में 30-35 सीटों पर गुर्जर जाति का प्रभाव है। गत विधानसभा चुनाव में पायलट कारण गुर्जर समुदाय का रूख कांग्रेस की तरफ हुआ। उन्होंने पायलट के मुख्यमंत्री बनने की आस में वोट दिया, लेकिन गहलोत के हाथों में सत्ता की कमान आ गई। गुर्जर समाज के मन में अभी तक वही पीड़ा टीस मार रही है।

इन जिलों में है समाज का प्रभाव

प्रदेश के 12 जिलों में गुर्जर समाज का प्रभाव है। भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, दौसा, कोटा, भीलवाड़ा, बूंदी, अजमेर और झुंझुनूं जिलों को गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है। ईआरसीपी परियोजना से जिन 13 जिलों की तस्वीर बदलेगी उनमें अधिकांश गुर्जर समाज के जिले शामिल हैं। इन 13 जिलों में जयपुर, अजमेर, करौली, टोंक, दौसा, सवाई माधोपुर, अलवर, बारां, झालावाड़, भरतपुर, धौलपुर, बूंदी और कोटा शामिल हैं। परियोजना के तहत पार्वती, चंबल और काली सिंध नदी को जोड़ना है, जिससे राज्य के 23.67 प्रतिशत कृषि क्षेत्र के साथ 41.67% आबादी को फायदा मिले।

विजन-2030 यात्रा से कितना फायदा?

कांग्रेस ने ईआरसीपी और जन आशीर्वाद यात्रा को टालकर विजन-2030 यात्रा के जरिए गली निकालने की तो कोशिश की है, पर ये जुगत कितनी कामयाब होगी इसका अंदेशा और आशंका सीएम गहलोत को तो पूरा होगा। कांग्रेस सत्ता वापसी के अभियान में कोई चूक नहीं चाहती इसलिए ऐसी कोई यात्रा वे नहीं निकालना चाहते जिसमें जनता का विरोध उनको झेलना पड़े और विपक्षियों को बैठे-बिठाए संजीवनी मिल जाए।

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