Wednesday, May 14, 2025
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CJI Justice BR Gavai Oath: जस्टिस बीआर गवई बने भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई शपथ

CJI BR Gavai Oath: न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को देश के 52वें प्रधान न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई, CJI के रूप में उनका कार्यकाल 6 महीने से अधिक का होगा और वे 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।

CJI BR Gavai Oath: न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को देश के 52वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली. न्यायमूर्ति गवई को राष्ट्रपति भवन में एक संक्षिप्त समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई. उन्होंने हिंदी में शपथ ली. उन्होंने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली है जो 65 वर्ष की आयु होने पर मंगलवार को सेवानिवृत्त हुए.

CJI के रूप में 6 महीने से अधिक होगा कार्यकाल

न्यायमूर्ति गवई को 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था. प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल 6 महीने से अधिक होगा और वह 23 नवंबर, 2025 को सेवानिवृत्त होंगे.

कौन हैं जस्टिस बीआर गवई ?

अमरावती में 24 नवंबर 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई को 14 नवंबर 2003 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था. वह 12 नवंबर 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने.

जस्टिस गवई 16 मार्च 1985 को बार में शामिल हुए थे और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील थे. अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया. 17 जनवरी 2000 को उन्हें नागपुर पीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया.

अहम फैसले लेने वाली बैंच का हिस्सा रहे जस्टिस बीआर गवई

न्यायमूर्ति गवई सुप्रीम कोर्ट में कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं जिन्होंने महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं. वह 5 न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने दिसंबर 2023 में पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था. 5 न्यायाधीशों की एक अन्य संविधान पीठ ने राजनीतिक वित्तपोषण के लिए चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द कर दिया था. न्यायमूर्ति गवई भी इस पीठ में शामिल थे. वह पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 4:1 के बहुमत से केंद्र के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को मंजूरी दी थी.

न्यायमूर्ति गवई 7 न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने 6:1 के बहुमत से यह माना था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं. न्यायमूर्ति गवई सहित सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि पक्षों के बीच बिना मुहर लगे या अपर्याप्त रूप से मुहर लगे समझौते में मध्यस्थता खंड लागू करने योग्य है, क्योंकि इस तरह के दोष को ठीक किया जा सकता है और यह अनुबंध को अवैध नहीं बनाता है.

उनके नेतृत्व वाली पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में अखिल भारतीय स्तर पर दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि ‘कारण बताओ’ नोटिस दिए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए तथा प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए. वह उस पीठ का भी नेतृत्व कर रहे हैं जो वन, वन्यजीव और वृक्षों के संरक्षण से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही है.

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Premanshu Chaturvedi
Premanshu Chaturvedihttp://jagoindiajago.news
समाचारों की दुनिया में सटीकता और निष्पक्षता के साथ नई कहानियों को प्रस्तुत करने वाला एक समर्पित लेखक। समाज को जागरूक और सूचित रखने के लिए प्रतिबद्ध।
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