Wednesday, July 3, 2024
Homeखेल-हेल्थभारत के 80 प्रतिशत लोग नहीं करवाना चाहते इस बीमारी का इलाज

भारत के 80 प्रतिशत लोग नहीं करवाना चाहते इस बीमारी का इलाज

नई दिल्ली। बीमारी में अक्सर लोग डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं, लेकिन एक रोग ऐसा भी है जिसका इलाज करवाने में 80 प्रतिशत भारतीय कतराते हैं। चिकित्सकों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य से जूझने वाले 80 प्रतिशत भारतीय उपचार नहीं कराना चाहते हैं। इसकी वजह जागरूकता की कमी, लापरवाही और लोकलाज है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मनौवैज्ञानिक मुद्दों को व्यापक रूप से समझने तथा समय से चिकित्सा मदद पाने के लिए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता शिक्षा प्रणाली का अभिन्न हिस्सा होनी चाहिए।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. नंद कुमार ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में लोगों के बीच जागरुकता एवं समझ का अभाव है। इसलिए इसका उपचार नहीं हो पाता।

उन्होंने कहा, जब तक व्यक्ति को यह अहसास नहीं होगा कि वह अस्वस्थ या बीमार है, तब तक वह कैसे इलाज कराना चाहेगा। लक्षणों की पहचान होने और इलाज शुरू होने के बीच के समय में काफी फासला हो जाता है, फलस्वरूप जटिलताएं काफी बढ़ जाती हैं। डॉ. कुमार ने कहा कि अनिद्रा, हल्की चिंता और अवसाद से लेकर गंभीर मनोदशा संबंधी विकार, जुनून और मनोविकृति तक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का काफी बड़ा दायरा होता है, ऐसे में मरीज के लिए यह समझ पाना मुश्किल होता है कि उसकी असली दिक्कत क्या है या फिर वह यह भी जान पाता कि इनमें से कोई समस्या है भी कि नहीं।

किशोरों का बड़ा हिस्सा प्रभावित

उन्होंने कहा, मानसिक स्वास्थ्य समस्या वालों में एक बड़ा हिस्सा किशोरों का है। इस संबंध में अक्सर नासमझी से उन्हें किशोरावस्था संबंधी मुद्दे मान लिया जाता है तथा उनकी अनदेखी कर दी जाती है। इसके अलावा, मानसिक रूप से बीमार होने का ठप्पा लगने और उसके फलस्वरूप भेदभाव होने का डर लोगों को इलाज कराने से रोकता है। मनोचिकित्सक सृष्टि अस्थाना ने कहा कि इलाज की ऊंची कीमत और काफी लंबा उपचार भी लोगों को इलाज से रोकता है। अस्थाना ने कहा, इलाज की कीमत निजी क्षेत्र में काफी अधिक होती है, लेकिन सरकारी व्यव्यस्था में काफी भीड़ होती है एवं लोग उस असुविधा से नहीं जूझना चाहते हैं। अस्थाना ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के समाधान की राह में एक अन्य बड़ी रुकावट मनोचिकित्सकों की कमी है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments