नई दिल्ली। वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार कर रही संसद की संयुक्त समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने बुधवार को कहा कि समिति ने मसौदा रिपोर्ट और संशोधित विधेयक को बहुमत से स्वीकार कर लिया. सांसदों को अपनी असहमति दर्ज कराने के लिए शाम 4 बजे तक का समय दिया गया है.
विपक्षी सांसदों ने इस कदम को अलोकतांत्रिक बताया और दावा किया कि उन्हें अंतिम रिपोर्ट का अध्ययन करने और अपने असहमति नोट तैयार करने के लिए बहुत कम समय दिया गया. शिवसेना (यूबीटी) सांसद अरविंद सावंत ने कहा कि सभी विपक्षी सदस्य अपनी असहमति देंगे. पाल प्रस्तावित कानून का संशोधित संस्करण गुरुवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंप सकते हैं.
समिति ने गत सोमवार को हुई एक बैठक में भाजपा के सदस्यों द्वारा प्रस्तावित सभी संशोधनों को स्वीकार कर लिया था और विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को खारिज कर दिया था. समिति में शामिल विपक्षी सदस्यों ने वक्फ (संशोधन) विधेयक के सभी 44 प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव रखा था और उन्होंने दावा किया था कि समिति की ओर से प्रस्तावित कानून विधेयक के ‘दमनकारी’ चरित्र को बरकरार रखेगा और मुस्लिमों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का प्रयास करेगा.
संशोधित विधेयक में कहा गया है कि केवल कम से कम 5 साल तक इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति वक्फ घोषित कर सकता है, जो इस्लामी कानून के तहत धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से समर्पित संपत्तियों को संदर्भित करता है. ऐसे व्यक्ति को यह दिखाना या प्रदर्शित करना चाहिए कि वह 5 साल से धर्म का पालन कर रहा है.
विधेयक में मौजूदा कानून के तहत पंजीकृत प्रत्येक वक्फ के लिए प्रस्तावित कानून के लागू होने से 6 महीने की अवधि के भीतर अपनी वेबसाइट पर संपत्ति का विवरण घोषित करना अनिवार्य बना दिया गया है.
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजीजू द्वारा लोकसभा में पेश किए जाने के बाद 8 अगस्त, 2024 को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया था. विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को विनियमित और प्रबंधित करने से जुड़े मुद्दों और चुनौतियों का समाधान करने के लिए वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करना है.