नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक याचिका में व्यक्त की गई उस चिंता को प्रशंसनीय बताया, जिसमें अदालतों में दायर याचिकाओं में पृष्ठों की एक सीमा निर्धारित करने की अनिवार्यता का मुद्दा उठाया गया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि सभी याचिकाओं के लिए एक तरह की सीमा तय करना कठिन कार्य हो सकता है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता के पास मामलों के शीघ्र निपटान की सुविधा के लिए प्रशासनिक पक्ष पर कोई ठोस सुझाव है, तो उसे शीर्ष अदालत के सेक्रेटरी जनरल के समक्ष अभिवेदन रखने की स्वतंत्रता हो सकती है। पीठ ने कहा कि हालांकि अदालत में याचिकाओं पर पृष्ठ सीमा की आवश्यकता को निर्धारित करने में याचिकाकर्ता की चिंता प्रशंसनीय है, लेकिन अदालत के लिए सभी याचिकाओं के लिए एक आकार तय करना कठिन कार्य हो सकता है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने पीठ से कहा कि यह याचिका पूरी तरह से न्याय तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करने का एक प्रयास है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा लेकिन हमें बताएं, हम सीमा कैसे तय करें। क्या हम कह सकते हैं कि सभी मामलों में लिखित अभिवेदनों पर पृष्ठ सीमा होनी चाहिए? एक तरफ, आपके पास अनुच्छेद 370 (मामले) पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ है और फिर आपके पास उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत एक याचिका है। क्या हम कह सकते हैं कि आपके पास 10 पृष्ठों से अधिक का लिखित अभिवेदन नहीं होना चाहिए।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि अमेरिकी उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार बहुत अलग है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत के प्रशासनिक पक्ष पर विचार किया जा सकता है। याचिका का निपटारा करते हुए और यह उल्लेख करते हुए कि याचिकाकर्ता सेक्रेटरी जनरल के समक्ष अभिवेदन देने के लिए स्वतंत्र हो सकता है, पीठ ने कहा कि इससे कार्रवाई का कोई नया कारण पैदा नहीं होगा।