RSS : नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि प्रलोभन और राजनीति में शामिल होने के निमंत्रण के बावजूद संघ पिछले 100 वर्षों से व्यक्ति निर्माण के अपने मूल मिशन पर कायम है। भागवत ने नागपुर में वार्षिक विजयादशमी समारोह में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि उनके भाषण का उद्देश्य संगठन के शताब्दी लंबे अनुभव से निकाले गए निष्कर्षों को साझा करना था। उन्होंने विनाश से बचने के लिए वैश्विक व्यवस्था में क्रमिक, चरणबद्ध सुधारों की आवश्यकता को रेखांकित किया।
भारत को विकास मॉडल तैयार करना चाहिए : भागवत
भागवत ने कहा कि भारत को एक ‘‘समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण’’ पर आधारित विकास मॉडल तैयार करना चाहिए और उसे दुनिया के सामने प्रस्तुत करना चाहिए। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि दुनिया को ‘धर्म’ का मार्ग दिखाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि धर्म पूजा, रीति-रिवाजों या परंपराओं से परे है और यह सभी को जोड़ता है। भागवत ने कहा कि निष्ठा, निस्वार्थता और सामाजिक नेतृत्व के जीवंत उदाहरणों से सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि आरएसएस की स्थापना हुई और यही कारण है कि इसकी शाखाएं तमाम बाधाओं के बावजूद चरित्र और एकता का पोषण करती रहती हैं।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि पिछले 100 वर्षों में आरएसएस को प्रलोभन दिए गए और राजनीति में शामिल होने के लिए भी आमंत्रित किया गया, लेकिन उसने केवल एक ही काम जारी रखा, वह है ‘शाखाएं’ चलाना। उन्होंने कहा कि व्यक्ति निर्माण के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन ही विश्व में परिवर्तन लाने का सही मार्ग है और यह स्वयंसेवकों का सामूहिक अनुभव रहा है। भागवत ने कहा कि भारत की भाषाओं, धर्मों, जीवन-शैली और परंपराओं की विविधता को एक शक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी समुदाय, जिनमें विदेशी धर्म अपनाने वाले भी शामिल हैं, व्यापक भारतीय पहचान का हिस्सा हैं। आरएसएस प्रमुख ने सद्भाव, परस्पर सम्मान और हिंसा के बहिष्कार का आह्वान किया।
उन्होंने गुंडागर्दी और सांप्रदायिक दरार पैदा करने के प्रयासों की निंदा करते हुए कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बिना किसी पूर्वाग्रह के काम करना चाहिए। भागवत ने कहा, हालांकि, समाज के अच्छे लोगों और युवा पीढ़ी को भी सतर्क और संगठित रहने की जरूरत है और जरूरत पड़ने पर उन्हें हस्तक्षेप भी करना होगा।