नेता भष्ट्राचार करते हैं, चरित्रहीन होते हैं, जनता को उपयोग-उपभोग की वस्तु समझते हैं, ऐसे किस्से तो राजनीति में रोज कहने-सुनने को मिलते हैं, पर ये ज्यादातर सच होते हैं। ये राजस्थान की राजनीति में चल रहे घटनाक्रमों से सामने आ गया। सरकार बचाने के लिए हर बार करोड़ों-अरबों रुपए खर्च किए गए। जनता के विकास में खर्च होने वाली राशि मैनेज और सैटलमेंट करने में उड़ा दी गई। आखिर कब दल राजनीतिक दलों के लालच का बोझ जनता ढोएगी?
– राजेश कसेरा
राजनीति का गिरता स्तर वाकई हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। जिस तरह से हमारे चुने गए जनप्रतिनिधि अपने सियासी वजूद को बचाने के लिए िकसी भी स्तर पर गिरने का उपक्रम दिखा रहे हैं, उससे स्पष्ट होता जा रहा है कि ये सरेआम उस जनता जनार्दन के भरोसे को छलने और ताेड़ने का काम कर रहे हैं, जिनके कंधों पर उन्होंने क्षेत्र और प्रदेश के चहुंमुखी विकास का जिम्मा सौंपा था, लेकिन जैसे ही सत्ता से ताकत मिली, चाल-चरित्र-चलन की बदल गया। राजस्थान विधानसभा के अंदर और बाहर जिस तरह का सियायी घटनाक्रम सोमवार को दिखा, वैसा पहली बार नहीं हुआ।
बीते पांच वर्षों में कुछ महीनों के अंतराल में किसी न किसी रूप में प्रदेश की जनता ने इसे भाेगा है। राजनीति में खुद के वजूद को बचाने के लिए नेता और दल जिस तरह के छल-प्रपंच कर रहे हैं, उसने नैतिकता की सारी सीमाओं को लांघ दिया है। कभी जनता का समय बाड़ाबंदी और सरकार बचाने में जाया किया जा रहा है तो अधिकांशत: सियासी नाटक-नौटकिंयों को अंजाम देने में। बार-बार इस तरह के हालात देखकर प्रदेश का पढ़ा-लिखा मतदाता या तो खुद के बाल नोंचता है या ये पछतावा करता है कि कैसे लोगों के हाथों में उसने सत्ता की चाबी सौंप दी?
इस बार किस्सा लाल डायरी के रूप में सामने आया है, जिसमें प्रदेश के सत्ताधारियों की करतूतों के स्याह पक्षों को लिखने के दावे किए गए हैं। ये भी बताया गया कि इसमें कैद सच जब सामने आएगा तो जलजला आ जाएगा। अब डायरी में कैद सच कितना कड़वा है, ये तो लिखने वाला जाने या पढ़ने वाला। पर, एक बात साफ है कि राजनीति में फैला भ्रष्टाचार और नेताओं का काला आचरण फिर बेनकाब हो गया। सत्ता को हथियाने के लिए किस कदर षडयंत्र रचे जाते हैं, इसको सरकार में कल तक मंत्री रहे राजेन्द्र गुढ़ा ने खुद उजागर कर दिया।
नेता भष्ट्राचार करते हैं, चरित्रहीन होते हैं, जनता को उपयोग-उपभोग की वस्तु समझते हैं, ऐसे किस्से तो राजनीति में रोज कहने-सुनने को मिलते हैं, पर ये ज्यादातर सच होते हैं। ये राजस्थान की राजनीति में चल रहे घटनाक्रमों से सामने आ गया। सरकार बचाने के लिए हर बार करोड़ों-अरबों रुपए खर्च किए गए। जनता के विकास में खर्च होने वाली राशि मैनेज और सैटलमेंट करने में उड़ा दी गई। आखिर कब दल राजनीतिक दलों के लालच का बोझ जनता ढोएगी?
सरकार किसी दल की हो, सत्ता में बने रहने के लिए रोज नए-नए हथकंडे देखकर जनता अब परेशान हो चुकी है। सब्र का पैमाना छलकने को है। जिस दौर में जरा सी बात का बतंगड़ बनाने के लिए सोशल मीडिया के मंच तैयार बैठे हैं, उस दौर में यदि राजनीतिक दल और नेता जनता को मूर्ख समझने की गलतफहमी पालकर बैठे हों तो वे जान लें कि अंतिम निर्णय इसी जनता को करना है। ऐसे में जनहित, प्रदेशहित और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखकर ही काम करने की सोच विकसित करेंगे तो यही सबसे श्रेष्ठ विकल्प साबित होगा।
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