नई दिल्ली। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 26 जुलाई को कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई को केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखने की मंजूरी दे दी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि अन्य दलों से चर्चा के बाद इस अविश्वास प्रस्ताव पर बहस का समय निर्धारित किया जाएगा. इस अविश्वास प्रस्ताव पेश होने पर अब यह तय हो गया है कि लोकसभा में मणिपुर के मुद्दे के साथ साथ पश्चिम बंगाल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुई महिला अत्याचारों की वारदातों पर भी चर्चा होगी.
लोकसभा में भाजपा के 303 सांसद है और मोदी सरकार को 30 अन्य सांसदों का समर्थन प्राप्त है। संख्याबल को देखते हुए भाजपा के प्रतिनिधियों को बोलने का ज्यादा अवसर मिलेगा. लेकिन इसके बाद भी मणिपुर की घटना पर विपक्षी दलों को अपनी बात रखने का मौका मिल गया है। मोदी सरकार को पूर्ण बहुमत के कारण यह अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो जाएगा.
कब-कब आया मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
विपक्षी दलों ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा था। तब लोकसभा में भाजपा सांसदों की संख्या 275 थी। इसके बाद हुए चुनाव में भाजपा को 300 से ज्यादा सीटें मिली। सभी सांसदों की बहस के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार का पक्ष रखेंगे।
साल 2018 में भी तेलुगु देशम पार्टी की ओर से केन्द्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन मोदी सरकार को बहुमत होने के कारण यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया था. प्रस्ताव के पक्ष में महज 126 वोट पड़े जबकि प्रस्ताव के खिलाफ 325 सांसदों ने वोट किया. यूं तो इससे पहले भी कई बार संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे लेकिन बीते पंद्रह साल में यह पहला मौका था जब केन्द्र सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था .
क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव
अविश्वास प्रस्ताव को नो कॉन्फिडेंस मोशन भी कहा जाता है. इसको सदन में लाने के कई कारण हो सकते है. लोकसभा में जब किसी दल को लगता है कि सरकार के पास बहुमत कम हो रहा है या फिर सरकार सदन में अपना विश्वास खो चुकी है तो इस स्थिति में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है