पिछली घटनाओं से सबक नहीं लेने का परिणाम हाथरस हादसा

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    यूपी के हाथरस में सवा सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। मौत का ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है। नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग के बाद भगदड़ मचने से ये हादसा हुआ। हादसे के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 24 घंटे में जांच रिपोर्ट तलब की। खुद सीएम योगी हाथरस पहुंचे। इस हादसे के बाद लगातार लखनऊ से हाथरस तक सख्त निर्देश दिए जा रहे हैं। सवाल ये है कि हाथरस में इतना बड़ा हादसा कैसे हो गया? हाथरस हादसे के बाद मंत्री, डीजीपी से लेकर सारे अफसर मौके पर दौड़ रहे हैं, लेकिन जो पहली नजर में सामने आया है उसके मुताबिक दावा है कि सिर्फ 40 पुलिसवालों के भरोसे ही हजारों की भीड़ जुटने दे दी गई। यह भी सामने आया कि किसी गंभीर हालात से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई ठोस प्रबंधन नहीं थे।
    सत्संग खत्म होते ही दौड़-भाग हो गई। एक के ऊपर एक सब दबकर मरने लगे। घंटों तक दबे रहे। आगे वाले गिरते गए, फिर पीछे लोग गिरते गए। एक चश्मदीद ने बताया, प्रभु जी उठकर चले गए। वहां कीचड़ भी था, लोग दलदल में फंस गए। एक-दूसरे पर गिर गए। बहुत भीड़ थी। जो नीचे गिर गए, वे उठ नहीं पाए। बच्चे भी दब गए और भीड़ ऊपर से गुजर गई। बहुत लोग मारे गए। कुछ समझ नहीं आया।
    इस घटना ने कई परिवारों से उनके सदस्य छीन लिए। परिवार ने घटना के लिए बाबा को दोषी ठहराया। नोएडा में काम करने वाले सुनील को घटना की खबर लगी तो वे तत्काल मौके पर पहुंचे। सुनील ने बताया, हादसे में मां को खो दिया। अगर सत्संग नहीं होता तो यह घटना नहीं घटती। इंतजामों पर कड़े सवाल खड़े हुए। घायलों को तत्काल अस्पताल भेजने की व्यवस्था नहीं थी, काफी देर तक लोग मौके पर पड़े रहे। सीएचसी के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, घायल और मृतक आने लगे तो अस्पताल में डेढ़ घंटे तक बिजली नहीं थी। इससे कुछ मरीजों के तत्काल इलाज में देरी हुई। सिकंदर राव सीएचसी उन अस्पतालों में से एक है, जहां 92 शव लाए गए। मृतकों और घायलों को अस्पताल ले जाने वाले पहले एक व्यक्ति ने कहा, जब हम लोग यहां पहुंचे तो सिर्फ एक डॉक्टर उपलब्ध था। अब तक यह सामने आया कि भारी भीड़ को प्रभावी ढंग से काबू नहीं पाया जा सका, इसलिए हालात बिगड़ गए। सिस्टम को कड़े नियमों और निगरानी पर जोर देने की जरूरत है। ऐसी घटनाएं न केवल प्रशासन की लापरवाही एवं गैर जिम्मेदारी को उजागर कर रही है, बल्कि धर्म के नाम पर पनप रहे आडम्बर, अंधविश्वास एवं पाखण्ड को भी उजागर कर रही है। बड़ा सवाल है कि ऐसे आयोजन में सुरक्षा उपायों की अनदेखी क्यों हुई? बिना पुख्ता इंतजाम के किसकी अनुमति से आयोजन हुआ? क्या सुरक्षा मानकों का पालन किया गया? जवाबदेही तय हो? मौतों के बढ़ते आंकड़ों के साथ घटना पर लीपापोती की कोशिश भी होगी, राजनीतिक दल जमकर राजनीति करेंगे। बड़ा सच ये भी है कि बाबाओं की दुकानें बिना राजनेताओं के चलनी संभव नहीं है।