नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से दिए एक फैसले में गुरुवार को कहा कि राज्यों के पास अधिक वंचित जातियों के उत्थान के लिए अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति में उप-वर्गीकरण करने की शक्तियां हैं.
फैसला 7 सदस्यीय पीठ ने 6:1 के बहुमत से सुनाया
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 सदस्यीय पीठ ने 6:1 के बहुमत से व्यवस्था दी कि राज्यों को अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) में उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए.बहुमत के फैसले में कहा गया है कि राज्यों द्वारा उप-वर्गीकरण को मानकों एवं आंकड़ों के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिए.
23 याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान फैसला
पीठ में न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे.पीठ 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें से मुख्य याचिका पंजाब सरकार ने दायर की है जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को चुनौती दी गई है.
CJI ने अपने और न्यायमूर्ति मिश्रा की ओर से फैसला लिखा.4 न्यायाधीशों ने अपने-अपने फैसले लिखे जबकि न्यायमूर्ति गवई ने अलग फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी को उन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसमें ई वी चिन्नैया फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया गया है.
शीर्ष अदालत ने 2004 में सुनाया था ये फैसला
शीर्ष अदालत ने 2004 में फैसला सुनाया था कि सदियों से बहिष्कार, भेदभाव और अपमान झेलने वाले SC समुदाय सजातीय वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनका उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता.शीर्ष अदालत ‘ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य’ मामले में 2004 के पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार करने के संदर्भ में सुनवाई कर रही है, जिसमें यह कहा गया था कि SC और ST सजातीय समूह हैं.फैसले के मुताबिक, इसलिए, राज्य इन समूहों में अधिक वंचित और कमजोर जातियों को कोटा के अंदर कोटा देने के लिए SC और ST के अंदर वर्गीकरण पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं.