Impact Of Climate Change In Rajasthan : नई दिल्ली। थार रेगिस्तान से घिरा राजस्थान का जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, चूरू, हनुमानगढ़, बीकानेर आने वाले समय में हरे—भरे जंगलों से घिरा होगा। जी हां, एक अध्ययन में कुछ ऐसा ही दावा किया गया है। दरअसल, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण भारत के थार रेगिस्तान में भारी परिवर्तन देखने को मिल सकता है और यह सदी के अंत तक हरा-भरा क्षेत्र बन सकता है।
दुनिया का बीसवां सबसे बड़ा रेगिस्तान है यह
अध्ययन में शामिल शोधकर्मियों के अनुसार तापमान बढ़ने के साथ ही दुनियाभर के कई रेगिस्तानों का और विस्तार होने का अनुमान है। वहीं थार रेगिस्तान में इससे उलट रुख देखने को मिल सकता है। इस सदी के अंत तक यह हरे-भरे क्षेत्र में तब्दील हो सकता है। थार रेगिस्तान राजस्थान के अलावा गुजरात, पंजाब, पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में फैला है। यह 2,00,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला है। यह दुनिया का 20वां सबसे बड़ा रेगिस्तान और नौवां सबसे बड़ा गर्म उपोष्णकटिबंधीय रेगिस्तान है।
बढ़ रही है औसत वर्षा
कई अध्ययनों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से पृथ्वी के रेगिस्तानों के बढ़ने का दावा किया गया है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि सहारा रेगिस्तान का आकार 2050 तक सालाना 6,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक बढ़ सकता है। नया अध्ययन ‘अर्थ्स फ्यूचर’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जिसमें थार रेगिस्तान के संबंध में अप्रत्याशित पहलू का जिक्र किया गया है। शोधकर्ताओं के दल ने कई अवलोकनों और जलवायु मॉडल ‘सिमुलेशन’ को मिला कर उनका अध्ययन किया और पाया कि वर्ष 1901 से 2015 के बीच भारत और पाकिस्तान के अर्ध-शुष्क उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में औसत वर्षा 10-50 प्रतिशत तक बढ़ी है। उनका कहना है कि मध्यम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की हालत में भी इस वर्षा के 50-200 प्रतिशत तक बढ़ने के आसार हैं।
इसलिए संभव है यह बड़ा परिवर्तन
अध्ययन से पता चलता है कि भारतीय मानसून का बदलाव भारत के पश्चिम और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में शुष्क स्थितियों के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। अध्ययन में शामिल, गुवाहाटी स्थित कॉटन विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग के बीएन गोस्वामी के अनुसार भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून की गतिशीलता को समझना यह समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि जलवायु परिवर्तन थार रेगिस्तान को कैसे हरा-भरा कर सकता है। गोस्वामी ने बताया कि भारतीय मानसून में बदलाव की विशिष्ट प्रवृत्ति है और यह उत्तर-पश्चिम भारत में अर्ध-शुष्क क्षेत्र के हरा-भरा होने की संभावना के लिए जरूरी है।