SC On Bihar Voter List Revision: बिहार चुनाव से कुछ समय पहले वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर किए जाने के मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. SC ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि वह वोटर लिस्ट रिवीजन के लिए आवश्यक डॉक्यूमेंट्स में आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड को भी शामिल करने पर विचार करे. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट इंटेंसिव वोटर लिस्ट रिवीजन पर रोक नहीं लगाई है. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि हम संवैधानिक संस्था को ऐसा करने से रोक नहीं सकते. कोर्ट ने चुनाव आयोग को अपना हलफनामा दायर करने के लिए 7 दिन का समय दिया है.
सुप्रीम कोर्ट टाइमिंग को लेकर उठाया सवाल
मामले पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने टाइमिंग को लेकर सवाल उठाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा उसे चुनाव आयोग ऐसे किसी कदम से कोई दिक्कत नहीं है, समस्या टाइमिंग से है. 2003 में भी ऐसा किया गया था, लेकिन मसला यह है कि इसे पहले क्यों नहीं किया गया. चुनाव के ठीक पहले यह प्रक्रिया क्यों की जा रही है.
चुनाव आयोग के वकील ने जवाब में कहा कि इसमें कुछ गलत नहीं है और समय-समय पर संशोधन होता है. समय के साथ-साथ मतदाता सूची में नामों को शामिल करने या हटाने के लिए पुनरीक्षण जरूरी होता है. निर्वाचन आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि अगर चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार नहीं तो फिर यह कौन करेगा ? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा सवाल इसके होने का नहीं है. सवाल ये है कि इसे पहले क्यों नहीं किया गया.
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन ( SIR) की कवायद महत्वपूर्ण मुद्दा है, यह मतदान के अधिकार से संबंधित है. चुनाव आयोग ने कहा-संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत भारत में वोटर बनने के लिए नागरिकता की जांच करना जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने तीन अहम मुद्दों पर मांगा जवाब
मामले पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने तीन अहम मुद्दों पर जवाब मांगा, क्या उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने, इसके लिए अपनाई गई प्रक्रिया और कब यह रिवीजन किया जा सकता है उसका अधिकार है ? इसके अलावा बेंच ने टाइमिंग को लेकर भी सवाल किया है. कोर्ट ने कहा कि यदि बिहार की वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन के अंतर्गत नागरिकता की जांच करनी है, तो यह पहले किया जाना चाहिए था, अब इसके लिए देर हो चुकी है.
आधार कार्ड और Voter ID को लेकर उठाया सवाल
याचिकाकर्ता के वकील ने सर्वोच्च न्यायालय में यह भी सवाल उठाया कि चुनाव आयोग की ओर से वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए 11 डॉक्यूमेंट्स स्वीकार किए जा रहे हैं, लेकिन आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे अहम पहचान पत्रों को मान्यता नहीं दी जा रही है. उन्होंने कहा, जब देशभर में पहचान के लिए सबसे विश्वसनीय डॉक्यूमेंट के तौर पर आधार कार्ड और Voter ID को माना जाता है, तो उन्हें ही इस प्रक्रिया से बाहर रखना सही नहीं है.