नई दिल्ली। सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक समूह ने सलवा जुडूम फैसले को लेकर विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी पर गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर सहित 18 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के समूह ने यह भी कहा कि एक उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा शीर्ष अदालत के फैसले की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है।
अमित शाह ने रेड्डी पर लगाया था नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप
अमित शाह ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रेड्डी पर नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि अगर सलवा जुडूम पर फैसला नहीं आता, तो वामपंथी उग्रवाद 2020 तक ही खत्म हो गया होता। इन न्यायाधीशों द्वारा हस्ताक्षरित बयान में कहा गया, सलवा जुडूम मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले की सार्वजनिक रूप से गलत व्याख्या करने वाला केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। यह फैसला न तो स्पष्ट रूप से और न ही लिखित निहितार्थों के माध्यम से नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन नहीं करता है।
बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए के पटनायक, न्यायमूर्ति अभय ओका, न्यायमूर्ति गोपाल गौड़ा, न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा उच्चतम न्यायालय के किसी फैसले की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंच सकता है।
भाजपा नेता शाह ने शुक्रवार को केरल में कहा था, सुदर्शन रेड्डी वही व्यक्ति हैं जिन्होंने नक्सलवाद की मदद की। उन्होंने सलवा जुडूम पर फैसला सुनाया। अगर सलवा जुडूम पर फैसला नहीं सुनाया गया होता, तो नक्सली चरमपंथ 2020 तक खत्म हो गया होता। रेड्डी ने शनिवार को कहा कि वह गृह मंत्री के साथ मुद्दों पर बहस नहीं करना चाहते। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह फैसला उनका नहीं, बल्कि उच्चतम न्यायालय का है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर शाह ने पूरा फैसला पढ़ा होता तो वह यह टिप्पणी नहीं करते।