Ravichandran Ashwin On Ben Stokes : भारतीय टीम के पूर्व स्पिनर रविचंद्रन अश्विन (Ravichandran Ashwin) ने किसी खिलाड़ी के चोटिल होने पर उसकी जगह किसी अन्य खिलाड़ी को अंतिम एकादश में शामिल करने को लेकर बेन स्टोक्स (Ben Stokes) की टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा कि इंग्लैंड के कप्तान को बोलने से पहले सोचना चाहिए था, क्योंकि तब उनके कर्म तुरंत ही सामने आ गए थे जब पांचवें टेस्ट में क्रिस वोक्स के कंधे में चोट लगने के बाद उन्हें एक बल्लेबाज की कमी खल रही थी।
भारत के विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत (Rishabh Pant) मैनचेस्टर में ड्रॉ हुए चौथे टेस्ट के पहले दिन रिटायर्ड हर्ट हो गए थे। स्कैन में उनके दाहिने पैर में फ्रैक्चर की पुष्टि होने के बावजूद वह अगले दिन बल्लेबाजी करने के लिए मैदान पर उतरे थे। इसके बाद भारतीय कोच गौतम गंभीर (Gautam Gambhir) ने टेस्ट क्रिकेट में चोटिल खिलाड़ियों के स्थान पर अन्य खिलाड़ियों को शामिल करने की बात कही थी, जिसे स्टोक्स ने खारिज करते हुए ‘‘बेहद हास्यास्पद‘‘ बताया था।
ओवल में पांचवें टेस्ट में इंग्लैंड को इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा जब वोक्स के कंधे में फ्रैक्चर हो गया लेकिन फिर भी वह अंतिम दिन बल्लेबाजी करने उतरे। उस समय इंग्लैंड के नौ विकेट गिर चुके थे और उसे जीत के लिए 20 से भी कम रन की जरूरत थी। अश्विन ने अपने यूट्यूब चैनल ‘ऐश की बात’ पर कहा, एक तमिल कहावत है जिसका मोटे तौर पर अनुवाद है आपके कर्म आपको लगभग तुरंत प्रभावित करेंगे। आप जो बोते हैं, वही काटते हैं। उन्होंने कहा, आखिरी टेस्ट से पहले पंत की चोट के बारे में सवाल पूछे गए थे। गौतम गंभीर ने कहा था कि ऐसी चोटों के लिए नए खिलाड़ी को टीम में शामिल करना चाहिए। जब स्टोक्स से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने इसे मज़ाक बताकर टाल दिया। मैं स्टोक्स के कौशल और उनके रवैये का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं लेकिन वह सोच-समझकर जवाब दे सकते थे।
अश्विन ने इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन की क्रिकेट के नियमों में बदलाव की जरूरत संबंधी टिप्पणी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा, माइकल वॉन ने कहा कि यह एक ऐसा मसला है जिसके लिए नियमों में बदलाव हो सकता है। चोटिल खिलाड़ी की जगह नए खिलाड़ी को शामिल करने की अनुमति होनी चाहिए। स्टोक्स को यह सोचना चाहिए था कि अगर ऋषभ पंत जैसी क्षमता वाला कोई खिलाड़ी उनकी टीम में होता और चोटिल हो जाता तो क्या होता।
अश्विन ने कहा, क्या आप बदलाव नहीं चाहेंगे? क्या यह उचित नहीं होगा? आप अपनी राय रखने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन ‘मज़ाक’ और ‘बेतुका’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल सम्मानजनक नहीं है। बोलने से पहले सोचो। कर्मों का फल तुरंत मिलता है।