पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का ऐलान हो चुका है। नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। चुनावों की घोषणा से पहले भाजपा के खिलाफ बड़े जोर-शोर से इंडिया गठबंधन बनाया गया था और दो बड़ी बैठकों के जरिए एकता दिखाने के जतन भी खूब किए गए, लेकिन विधानसभा चुनाव में इंडिया नाम का गठबंधन कहीं दिखाई ही नहीं दे रहा है। राज्यों में गठबंधन के साथियों अपने-अपने झंडे बुलंद कर दिए हैं और राज्यों में गठबंधन के ही साथी एक-दूसरे पर हमलावर हो रहे हैं।
हां जरूर राजस्थान में कलयुग की रामायण के नजारे दिखने लगे हैं। यहां हनुमान ने रावण से गठजोड़ कर दिया है और राम तो दूर तक कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। कलयुग में लोगों के मन के राम तो सो ही गए हैं। पर वोट की राजनीति नए-नए समीकरण सामने ला रही है। मोदी सरकार का साथ देने वाले हनुमान अब दूसरे खेमे में आ चुके हैं।
प्रदेश में अभी तक न तो इंडिया गठबंधन का कोई बंधन दिख रहा न ही बीजेपी कांग्रेस के खिलाफ तीसरा मोर्चा। यहां अभी तक बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई दिख रही है, लेकिन अब सबकी निगाहें एक नए गठबंधन पर टिक गई हैं। यह गठबंधन है नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और दलित चंद्रशेखर रावण की आजाद समाज पार्टी का है। इस गठबंधन की निगाहें विधानसभा चुनाव में जाट और दलित वोटों पर है।
हनुमान बेनीवाल की जाट वोटों पर अच्छी पकड़ है। वहीं चंद्रशेखर रावण राजस्थान में मायावती की जगह लेने की कोशिश कर रहे हैं। वे मायावती की बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक को अपनी पार्टी आजाद समाज पार्टी की ओर शिफ्ट करने की तैयारी में दिखाई दे रहे हैं। प्रदेश में दलितों की आबादी करीब 18 फीसदी और जाटों की 12 फीसदी है। पश्चिम राजस्थान में जाट बहुल विधानसभा क्षेत्रों में ही दलितों की सबसे अधिक आबादी है। राजस्थान में 33 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।
हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी से 2018 में तीन विधायक चुने गए थे। उनमें से दो दलित हैं। बेनीवाल जाट बहुल इलाकों में जाटों के साथ दलितों के वोट बैंक में सेंधमारी कर कांग्रेस और बीजेपी दोनों की मुश्किल बढ़ा सकते हैं। खासकर नागौर, बाड़मेर और जोधपुर जिले में। इन जिलों में करीब 30 विधानसभा क्षेत्र हैं। वहां पर अगर ये गठबंधन सफल हुआ तो बीजेपी कांग्रेस दोनों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
2018 में बीएसपी से छह विधायक जीते थे। इसी तरह चंद्रशेखर रावण बेनीवाल की मदद से सूबे में इस बार अपनी पार्टी की जड़ें जमाने और मायावती की दलित बहुल इलाकों में जड़े उखाड़ने की कोशिश कर सकते हैं। 2018 में बीएसपी से छह विधायक जीते थे। हालांकि बाद में सभी विधायक दल बदलकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। यहां बीएसपी को 2 फीसदी मत मिले थे।
पूर्वी राजस्थान में बीएसपी का प्रभाव है। चंद्रशेखर रावण पूर्वी राजस्थान के बजाय पश्चिम राजस्थान में अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने में जुटे हैं। पश्चिम राजस्थान में मेघवाल दलितों की सबसे बड़ी आबादी है। जबकि पूर्वी राजस्थान में जाटव दलितों की सबसे बड़ी आबादी है। जाटव परंपरागत रूप से कांग्रेस के बाद बीएसपी का वोट बैंक माना जाता हैै।
परिणाम की बात करना अभी जल्दबाजी ही कही जाएगी, लेकिन रावण-हनुमान का यह गठजोड़ दोनों बड़ी पार्टियों के लिए खतरा बन सकते हैं। यूं तो तीसरे मोर्चे के नाम पर यहां आप भी अपनी साख बनाने में जुटी है और अन्य भी पांच-सात दल धीरे-धीरे ही सही पर परिदृष्य में आ रहे हैं, लेकिन चुनाव का बिगुल बजने के बाद ये कोई बड़ा बदलाव लाने जैसा दिखाई नहीं दे रहे हैं। हनुमान बेनीवाल ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों दल एकजुट होंगे और एक परिवार की तरह चुनाव लड़ेंगे। आरएलपी-आजाद समाज पार्टी गठबंधन उन मतदाताओं को आकर्षित करेगा जो विपक्षी भाजपा और सत्तारूढ़ कांग्रेस के विरोधी हैं। इस संयुक्त प्रयास का कई निर्वाचन क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।