जयपुर। राज्य में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले है. सभी दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए है. भाजपा-कांग्रेस के अलावा अन्य दल भी चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे है. सूत्रों के अनुसार भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) में विभाजन के बाद आदिवासी नेताओं द्वारा गठित एक नये राजनीतिक संगठन ‘भारतीय आदिवासी पार्टी’ ने विधानसभा चुनावों के लिए हुंकार भर दी है. इन दलों ने राजस्थान के आदिवासी इलाके में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के लिए चुनौती खड़ी कर दी है तथा दोनों राष्ट्रीय दलों के वरिष्ठ नेता विधानसभा चुनावों से पहले समर्थन जुटाने के अपने प्रयासों के तहत लगातार दौरे करने के लिए मजबूर हो गए हैं.
इन क्षेत्रों में पीएम मोदी औऱ राहुल गांधी ने किए कई दौरे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित अन्य लोगों ने अपने दलों का समर्थन आधार मजबूत करने के प्रयास में आदिवासी क्षेत्रों के कई दौरे किये हैं. प्रधानमंत्री सोमवार को चित्तौड़गढ़ जिले का दौरा करेंगे, जहां आदिवासियों की बड़ी आबादी है. वह वहां एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करेंगे. राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के उपनेता सतीश पूनिया ने इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया और भाजपा की प्रदेश इकाई के प्रमुख के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान आदिवासी क्षेत्रों का नियमित दौरा किया था. पार्टी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सी. पी. जोशी एक ब्राह्मण चेहरा हैं और चित्तौड़गढ़ से पार्टी के लोकसभा सांसद हैं.
राज्य का दक्षिण-पूर्व हिस्सा आदिवासी बाहुल्य
राज्य के दक्षिण-पूर्व में बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ पूर्णतया आदिवासी जिले हैं, जबकि उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, सिरोही, पाली आंशिक रूप से आदिवासी क्षेत्र हैं. गुजरात स्थित ‘भारतीय ट्राइबल पार्टी’ के समान ही ‘भारतीय आदिवासी पार्टी’ का प्रबंधन युवाओं द्वारा किया जाता है। बीटीपी ने 2018 के विधानसभा चुनावों में दो सीट जीती थीं. भारतीय आदिवासी पार्टी के गठन के साथ ही बीटीपी में पूर्ण विभाजन हो गया। अविभाजित बीटीपी के अधिकांश समर्थक और नेता नये संगठन में चले गए। नयी पार्टी के गठन की घोषणा सितंबर में विधायक राजकुमार रोत और रामप्रसाद डिंडोर ने की थी। दोनों ने 2018 का विधानसभा चुनाव ‘भारतीय ट्राइबल पार्टी’ के टिकट पर जीता था. राज्य इकाई प्रमुख वेलाराम घोघरा सहित कुछ ही नेता बीटीपी के साथ रह गए हैं. नया संगठन पहले से ही अपनी बैठकों में आदिवासी लोगों की भारी भीड़ आकर्षित कर रहा है, जो क्षेत्र में उसके प्रभाव को दर्शाता है।
लगभग 18 सीटों पर आदिवासी उम्मीदवार
स्थानीय भाजपा नेता भी मानते हैं कि भारतीय आदिवासी पार्टी अब आदिवासी क्षेत्र में अग्रणी ताकत है. विधायक रोत ने ‘पीटीआई भाषा’ को बताया, ‘‘हमने आदिवासी लोगों के हित में काम करने के लिए एक नया संगठन बनाया है। हम क्षेत्र की लगभग 18 सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार उतारेंगे।’ उन्होंने दावा किया कि भारतीय ट्राइबल पार्टी अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं कर रही थी, इसलिए इसमें विभाजन हो गया। उन्होंने कहा, ”हम कांग्रेस और भाजपा दोनों को हराने की कोशिश करेंगे।’ रोत ने कहा कि अगर बीटीपी उन 17-18 सीट पर हस्तक्षेप नहीं करेगी, जहां उनकी पार्टी चुनाव लड़ेगी तो भारतीय आदिवासी पार्टी भी गुजरात में अन्यत्र हस्तक्षेप नहीं करेगी. उन्होंने कहा, ‘हम सभी क्षेत्रीय दलों से अपील करते हैं कि (हम) सभी का एक ही उद्देश्य है और हमें आपस में नहीं लड़ना चाहिए। हमने भारतीय ट्राइबल पार्टी से राजस्थान विधानसभा चुनावों में हस्तक्षेप नहीं करने के लिए कहा है और हम गुजरात में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।’ डूंगरपुर के चोरासी से विधायक ने कहा, ‘‘अगर वे इस पर विचार नहीं करते हैं, तो स्पष्ट दृष्टि और मजबूत विचारधारा वाली हमारी पार्टी आगे बढ़ेगी। हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट है और विचारधारा मजबूत है तथा हम आगे बढ़ेंगे।’
भाजपा के सामने बड़ी चुनौती
भारतीय आदिवासी पार्टी के उभार को भी भाजपा एक चुनौती के तौर पर देखती है. भाजपा नेताओं का मानना है कि वे इस क्षेत्र में केवल सत्ता-विरोधी लहर पर भरोसा नहीं कर सकते हैं, जहां भारतीय आदिवासी पार्टी के शिक्षित आदिवासी युवा सक्रिय हैं और लोगों को इसके प्रति एकजुट कर रहे हैं. स्थानीय भाजपा नेता एवं पूर्व मंत्री सुशील कटारा ने कहा कि ‘क्षेत्र में कांग्रेस का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर है। भारतीय आदिवासी पार्टी इस क्षेत्र में आगे चल रही है, जबकि (आदिवासी क्षेत्र में) विधानसभा चुनाव में कांग्रेस तीसरे स्थान पर रहेगी. उन्होंने कहा कि भारतीय आदिवासी पार्टी आदिवासियों की भावनाओं का फायदा उठा रही है। वर्ष 2018 के चुनावों में कटारा बीटीपी के रोत से हार गए थे। उन्होंने (कटारा ने) बताया, ‘‘वे शिक्षित हैं, सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और आदिवासी लोगों को अपने पक्ष में लामबंद कर रहे हैं।’ रोत और डिंडोर, दोनों ने तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बगावत के कारण 2020 में राज्य में उत्पन्न राजनीतिक संकट के दौरान गहलोत सरकार का समर्थन किया था. उन्होंने (दोनों विधायकों ने) राज्यसभा चुनाव में भी कांग्रेस उम्मीदवारों का समर्थन किया था।
हालांकि, भारतीय ट्राइबल पार्टी की राजस्थान इकाई के प्रमुख घोघरा ने कहा कि आदिवासी क्षेत्र को इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ। उन्होंने पार्टी में विभाजन के लिए कुछ नेताओं के ‘अहंकारी दृष्टिकोण’ को जिम्मेदार ठहराया। जाहिर तौर पर उनका इशारा रोत और डिंडोर तथा उनके समर्थकों की ओर था, हालांकि, बांसवाड़ा जिले के एक कांग्रेस नेता ने कहा कि राज्य सरकार ने क्षेत्र के विकास के लिए काम किया है और पार्टी को चुनाव में बढ़त मिलेगी. कांग्रेस नेता ने कहा, ‘मुख्यमंत्री ने हाल ही में बांसवाड़ा में आदिवासी लोगों के एक पवित्र स्थान मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित करने के वास्ते एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। उन्होंने अगस्त माह में 100 करोड़ रुपये की लागत से ‘धाम’ में विकास कार्यों की भी घोषणा की।’’
रोजगार रहेगा मुख्य मुद्दा
स्थानीय नेताओं ने कहा कि रोजगार के अवसर, बुनियादी ढांचे का विकास और आदिवासी आबादी के संबंध में संवैधानिक प्रावधानों का उचित कार्यान्वयन प्रमुख चुनावी मुद्दे होंगे. राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में वागड़ और मेवाड़ क्षेत्र शामिल हैं। इसमें 37 विधानसभा सीट हैं। वर्ष 2018 के चुनाव में इनमें से 20 पर भाजपा और 11 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, जबकि तीन सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे थे. वर्तमान विधायक गुलाब चंद कटारिया को इस साल की शुरुआत में असम का राज्यपाल नियुक्त किये जाने के बाद से उदयपुर में एक सीट खाली है। रोत और डिंडोर इस क्षेत्र से विधानसभा के दो अन्य सदस्य हैं.