राजनीतिक हिंसा को कैसे जायज ठहरा रहे हैं मुह‌म्मद युनूस?

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    बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने कहा कि उनके देश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है और उन्होंने भारत की ओर से इसे पेश करने के तरीके पर सवाल उठाए हैं। यूनुस ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले सांप्रदायिक से ज्यादा राजनीतिक हैं। यूनुस ने भारत के साथ अच्छे संबंधों की इच्छा व्यक्त की, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि भारत को यह नैरेटिव छोड़ देना चाहिए कि शेख हसीना के बिना बांग्लादेश दूसरा अफगानिस्तान बन जाएगा। जैसी अराजक स्थितियां बांग्लादेश में दिखाई जा रही थीं, उससे तो यही पता चलता है कि सिर्फ वहां पर हिंदुओं को ही निशाना बनाया जा रहा है। 1971 के मुक्ति संग्राम के समय बांग्लादेश की आबादी में 22 प्रतिशत हिंदू थे, जो अब 170 मिलियन की आबादी का लगभग 8 प्रतिशत हैं। इसका कारण भी युनूस को बताना चाहिए और यह भी उन्हें बताने की जरूरत है कि उनके आने के बाद हिंदुओं की सुरक्षा के लिए क्या उपाय किए गए हैं या किए जा रहे हैं? वे भारत को सुझाव तो दे रहे हैं, लेकिन स्वयं के गिरेबां में झांकने का यत्न नहीं कर रहे हैं। यह तो सही है कि भीड़ की जाति या धर्म नहीं होती, लेकिन यह भीड़ एक वर्ग विशेष को ही निशाना बनाती है तो उसका उद्देश्य तो स्पष्ट हो ही जाता है। चलो यह भी मान लिया जाए कि वहां पर साम्प्रदायिक हिंसा नहीं होकर राजनीतिक हिंसा हो रही है, तो क्या युनूस यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि राजनीतिक हिंसा किसी देश के लिए स्वीकार्य मानी जानी चाहिए? उन्होंने यह भी कहा कि आगे का रास्ता यह है कि भारत नैरेटिव से बाहर आ जाए कि इस्लामवादी इस देश को अफगानिस्तान बना देंगे। भारत को सुझाव देने से पहले उन्हें अपने देश के हालात को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। युनूस यह भी बताएं कि वहां की स्थितियां उनके आने के बाद कब तक शान्त हो पाएंगी? जब शेख हसीना ने बांग्लादेश छोड़ा तो विपक्षी दल के अधिकांश नेता को नए शासन ने रिहा कर दिया। इसमें कट्टरपंथी इस्लामी समूह के नेताओं के नाम भी शामिल हैं। मामूनुल हक भी उनमें एक हैं। युनूस ने उसके साथ भी खुली बैठक की। सवाल यह भी है कि कट्‌टरपंथियों के साथ बातचीत करके वे किसे बढ़ावा दे रहे हैं? हिफाजत-ए-इस्लाम और उनके नेता भारत विरोधी रुख अपनाने और अक्सर भारत के खिलाफ भड़काऊ बयान देने के लिए जाने जाते हैं। उनसे बातचीत करके वे स्वयं पाक-साफ कैसे घोषित कर सकते हैं। यह कट्टरपंथी संगठन बांग्लादेश में मदरसे चलाता है और अक्सर अपने उपदेशों में बांग्लादेश के संविधान का विरोध करता है। जो अपने देश के संविधान से इत्तेफाक नहीं रखते, ऐसे लोग राजनीतिक तो किसी रूप में नहीं कहे जा सकते, वे तो साम्प्रदायिक माने जाने चाहिए। युनूस देश के हालात नियंत्रित करने की कोशिश करेंगे तो यह लाभदायी रहेगा। दूसरे देशों को सुझाव देने का उन्हे हक कतई नहीं है।