Monday, July 14, 2025
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Mamata Banerjee ने Omar Abdullah को नजरबंद करने की आलोचना की, कहा- शहीदों की कब्र पर जाने में क्या गलत है?

ममता बनर्जी ने उमर अब्दुल्ला को शहीदों की मजार पर जाने से रोकने और नजरबंद किए जाने की आलोचना की। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया और इसे शर्मनाक और अस्वीकार्य करार दिया। 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए 13 जुलाई को ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है।

Mamata Banerjee on Omar Abdullah : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 1931 में डोगरा बलों द्वारा मारे गए लोगों के कब्रिस्तान में जाने से रोकने के लिए जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनके मंत्रियों को नजरबंद करने की आलोचना की।

ममता दीदी ने की सरकार की आलोचना

उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि यह किसी नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनने जैसा है। बनर्जी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट में कहा, ‘‘शहीदों के कब्रिस्तान में जाने में क्या गलत है? यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि एक नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकार को भी छीनता है। उन्होंने कहा, ‘‘निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के साथ जो हुआ वह अस्वीकार्य है। चौंकाने वाला और शर्मनाक।’’

अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा विपक्षी दलों के कई नेताओं को रविवार को नजरबंद कर दिया गया था ताकि उन्हें ‘शहीद दिवस’ मनाने के लिए श्रीनगर के नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान जाने से रोका जा सके। वर्ष 1931 में श्रीनगर केंद्रीय कारागार के बाहर डोगरा सेना द्वारा मारे गए 22 लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए जम्मू कश्मीर में 13 जुलाई को ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है। उपराज्यपाल प्रशासन ने 2020 में इस दिन को राजपत्रित छुट्टियों की सूची से हटा दिया था। ममता बनर्जी ने उमर अब्दुल्ला को शहीदों की मजार पर जाने से रोकने और नजरबंद किए जाने की आलोचना की। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया और इसे शर्मनाक और अस्वीकार्य करार दिया। 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए 13 जुलाई को ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है।

ऑटो रिक्शा में पहुंचे फारूक अब्दुल्ला

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को 13 जुलाई, 1931 को डोगरा सेना की गोलीबारी में मारे गए 22 लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान का गेट फांदकर अंदर प्रवेश किया। यह नाटकीय दृश्य उस समय सामने आया जब अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस सहित विपक्षी दलों के कई नेताओं को शहीद दिवस के मौके पर कब्रिस्तान जाने से रोकने के लिए 1 दिन पहले घर पर नजरबंद कर दिया गया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला खनयार चौक से शहीद स्मारक तक एक ऑटो रिक्शा में पहुंचे, जबकि शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू स्कूटी पर पीछे बैठकर स्मारक तक पहुंचीं. सुरक्षा बलों ने श्रीनगर के व्यस्त क्षेत्र में खनयार और नौहट्टा की ओर से शहीद कब्रिस्तान जाने वाली सड़कों को सील कर दिया था।

कब्रिस्तान का गेट फांदकर अंदर पहुंचे उमर अब्दुल्ला

जैसे ही उमर अब्दुल्ला का काफिला पुराने शहर के खनयार इलाके में पहुंचा, वह अपनी गाड़ी से उतर गए और कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए 1 किलोमीटर से अधिक पैदल चले, लेकिन प्राधिकारियों ने कब्रिस्तान का द्वार बंद कर दिया था. इसके बाद मुख्यमंत्री कब्रिस्तान के मुख्य द्वार पर चढ़ गए और अंदर प्रवेश कर ‘फातिहा’ पढ़ा. उनके सुरक्षाकर्मी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के कई अन्य नेता भी गेट पर चढ़ गए जिसके बाद अंततः गेट खोल दिया गया।

‘हमें रोकने की सारी कोशिशें नाकाम हो गई’

अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने और उनकी पार्टी के नेताओं ने उन्हें पकड़ने की पुलिस की कोशिशों को नाकाम कर दिया। उन्होंने हमें पकड़ने की कोशिश की, हमारे झंडे को फाड़ने की कोशिश की, लेकिन सब कुछ व्यर्थ गया। हम यहां आए और ‘फातिहा’ पढ़ा. उन्हें लगता है कि शहीदों की कब्र केवल 13 जुलाई को यहां होती हैं, लेकिन वे तो सालभर यहीं हैं। उपराज्यपाल प्रशासन उन्हें कितने दिन शहीदों को श्रद्धांजलि देने से रोक पाएगा। अगर 13 जुलाई को नहीं, तो 12 जुलाई या दिसंबर, जनवरी या फरवरी की 14 तारीख. हम जब चाहेंगे, तब यहां आएंगे।’

Mukesh Kumar
Mukesh Kumarhttps://jagoindiajago.news/
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