जयपुर। अगर आप सोच रहे हैं कि पुरातत्व विभाग में पुरातत्व संरक्षण के जानकार विशेषज्ञ अफसर काम कर रहे होंगे, तो यह सिर्फ आपका भ्रम है। यहां बैठे अफसरों काे न तो पुरातत्व से कोई लेना-देना है और न ही उन्हें यह पता है कि प्राचीन इमारतों का संरक्षण कैसे होता है? उन्हें सिर्फ इस बात का पता है कि मोटा कमीशन देने वाले ठेकेदारों का संरक्षण कैसे करना है। इसकी बानगी आपको आगरा रोड पर घाट की गूणी में देखने को मिल जाएगी।
वर्ष 2019 में जयपुर में आई भारी बारिश से घाट की गूणी में भी पहाड़ों से पानी की तेज आवक के कारण एक छतरी टूट गई थी। तीन साल तक इस टूटी छतरी की मरम्मत के लिए पुरातत्व विभाग और उसकी कार्यकारी एजेंसी आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकारण (एडमा) के अधिकारियों के बीच जंग चलती रही कि मरम्मत कौन कराए। मामला विभाग के शासन सचिव के पास पहुंचा तो दोनों के अधिकारियों के बीच तू-तू मैं-मैं भी हो गई। एडमा के हाथ खड़े करने के बाद यह छतरी पुरातत्व विभाग के सिर पड़ गई।
कमीशन के फेर में भूले छतरी
पुरातत्व इंजीनियरों को यहां सबसे पहले छतरी के निर्माण का काम शुरू कराना था, क्योंकि इसके निर्माण में काफी समय लगने वाला था, लेकिन उन्होंने ठेकेदार को संरक्षण देते हुए पहले पूरी घाट की गूणी की मरम्मत का काम शुरू करा दिया और छतरी को हाथ भी नहीं लगाया। अब कहा जा रहा है कि वह छतरी जिन हरे रंग के पत्थरों से बनी है, वह पत्थर नहीं मिल रहे हैं।
बना डाला करोड़ों का प्रोजेक्ट
करोड़ों में खेलने वाले पुरातत्व विभाग के इंजीनियरों को एक छोटी सी छतरी को बनाने का काम काफी खल रहा था, क्योंकि इसमें माथापचाई पूरी थी। ऐसे में उन्होंने पूरी घाट की गूणी की मरम्मत का 4.57 करोड़ का प्रोजेक्ट बना डाला।
इनपुट : धरम सैनी




