Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the wordpress-seo domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /var/www/html/wp-includes/functions.php on line 6114
Kargil Vijay Diwas 2023 : करगिल युद्ध के वो भारतीय जवान जिन्होनें छुडा दिए थे दुश्मन के छक्के
Friday, November 22, 2024
Homeजेआईजे स्पेशलKargil Vijay Diwas 2023 : करगिल युद्ध के वो भारतीय जवान जिन्होनें...

Kargil Vijay Diwas 2023 : करगिल युद्ध के वो भारतीय जवान जिन्होनें छुडा दिए थे दुश्मन के छक्के

26 जुलाई 1999 का दिन हर भारतीय के लिए गर्व का दिन है. इस दिन भारतीय सेना ने जम्मू कश्मीर के करगिल जिले में पाकिस्तान की सेना को शिक्सत दी थी. इसी जीत के कारण भारत में हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस के रुप में मनाया जाता है. हर साल 26 जुलाई को करगिल युद्ध में शहीद भारतीय सैनिकों के बलिदान और शौर्य को याद किया जाता है. करिगल युद्द जम्मू-कश्मीर के करगिल जिले में लड़ा गया था. मई और जुलाई 1999 के बीच यह युद्ध हुआ था. भारतीय सेना के पराक्रम के बदोलत इस युद्ध में भारतीय सेना ने दुश्मनों की छुट्टी कर दी थी.

 

26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने जम्मू कश्मीर के करगिल में पाकिस्तानी सेना को हराया था. इस युद्ध में भारत ने अपने 527 जवानों को खो दिया था. इस युद्ध भारतीय सेना के 1363 जवान घायल हुए थे. भारतीय जवानों ने इस युद्ध में अपने खून का आखिरी कतरा देश की रक्षा के लिए न्यौछावर कर दिया था. इन जांबाजों के शौर्य की कहानियां आज भी हमें गर्व महसूस करवाती हैं.

करगिल युद्ध के जाबांज कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर, 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ. वह 13 जेएंडके राइफल में कैप्टन थे. 6 दिसंबर 1997 को इंडियन मिलिट्री अकादमी देहरादून से पासआउट होने के बाद विक्रम लेफ्टिनेंट के तौर पर सेना में भर्ती हुए. करगिल युद्ध के दौरान उनकी बटालियन 13 जम्मू एंड कश्मीर रायफल 6 जून को द्रास पहुंची.

19 जून को कैप्टन बत्रा को प्वाइंट 5140 को फिर से अपने कब्जे में लेने का निदेश मिला. ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के लगातार हमलों के बावजूद उन्होंने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए और पोजीशन पर कब्जा किया. 7 जुलाई की रात वे और उनके सिपाहियों ने चढ़ाई शुरू की. उन्हें कोड नेम शेरशाह दिया गया था. दुश्मन खेमे में वह शेरशाह के नाम से मशहूर हो गए थे. एक जूनियर की मदद के लिए आगे आने पर दुश्मनों ने उन पर गोलियां चला दीं. विक्रम डरे नहीं. बल्कि, उन्होंने ग्रेनेड फेंककर पांच दुश्मनों को मार गिराया. लेकिन दुश्मन की एक गोली आकर सीधा विक्रम के सीने में जा लगी. जिससे वह शहीद हो गए.

कैप्टन अनुज नायर का जन्म 28 अगस्त, 1975 को दिल्ली में हुआ. वह जाट रेजिमेंट में कैप्टन थे. अनुज, इंडियन मिलिट्री अकादमी से पासआउट होने के बाद जून, 1997 में जाट रेजिमेंट की 17वीं बटालियन में भर्ती हुए. करगिल युद्ध के दौरान उनका पहला अभियान था प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना. यह चोटी टाइगर हिल की पश्चिमी ओर थी और सामरिक लिहाज से बेहद जरूरी थी. इस पर कब्जा करना भारतीय सेना की प्रायोरिटी थी.अभियान की शुरुआत में ही नायर के कंपनी कमांडर जख्मी हो गए. हमलावर दस्ते को दो भागों में बांटा गया. एक का नेतृत्व कैप्टन विक्रम बत्रा ने किया और दूसरे का कैप्टन अनुज ने. कैप्टन अनुज की टीम में सात सैनिक थे, जिनके साथ मिलकर उन्होंने दुश्मन पर चौतरफा वार किया.

कैप्टन अनुज ने अकेले 9 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और तीन दुश्मन बंकर ध्वस्त किए. चौथे बंकर पर हमला करते समय दुश्मन ने उनकी तरफ रॉकेट से चलने वाली ग्रेनेड फेंका जो सीधा उनपर गिरा. बुरी तरह जख्मी होने के बाद भी वे बचे हुए सैनिकों का नेतृत्व करते रहे. 7 जून को वह शहीद हो गए. लेकिन शहीद होने से पहले उन्होंने आखिरी बंकर को भी तबाह कर दिया. दो दिन बाद दुश्मन सेना ने फिर से चोटी पर हमला किया जिसका जवाब कैप्टन विक्रम बत्रा की टीम ने दिया. कैप्टन नायर को मरणोपरांत महावीर चक्र प्रदान किया गया. जब वह शहीद हुए, उस समय उनकी उम्र 24 साल थी.

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments