नई दिल्ली। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 को संसद की मंजूरी मिलने की पृष्ठभूमि में गुरुवार को कहा कि इस खतरनाक विधेयक को पारित कराने वाली पार्टियों और सरकार से सवाल किया जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी गठबंधन इंडिया के घटक दलों ने बुधवार को इस विधेयक को पारित कराए जाने के समय राज्यसभा की कार्यवाही से दूरी बनाई क्योंकि मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान और इसके बाद चर्चा कराने की जायज मांग को रोजाना अस्वीकार किया जा रहा है और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
संसद ने बुधवार को वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 को मंजूरी दे दी जिसका मकसद वनों के संरक्षण के साथ ही विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित करना और लोगों के जीवनस्तर में सुधार लाना है। राज्यसभा ने बुधवार को विधेयक को संक्षिप्त चर्चा के बाद पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश ने ट्वीट किया कई पर्यावरणविदों, जो किसी भी तरह से भक्त नहीं हैं, ने कल राज्यसभा में वन (संरक्षण) अधिनियम,1980 में संशोधन पर चर्चा के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही का बहिष्कार करने के लिए विपक्ष की आलोचना की है।
उनका कहना है मैं स्पष्ट कर दूं कि बहिष्कार का निर्णय इंडिया गठबंधन के 26 सामूहिक दलों का सामूहिक निर्णय था क्योंकि मणिपुर के मामले पर प्रधानमंत्री के बयान और इस पर चर्चा कराने की हमारी जायज मांग को रोजाना अस्वीकार किया जा रहा है और विपक्ष के नेता को बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है। रमेश ने दावा किया मैं जिस स्थायी समिति की अध्यक्षता कर रहा था, उसके पास यह विधेयक नहीं भेजा गया था। इसे एक विशेष संयुक्त समिति के पास भेजा गया जिसने विधेयक पर बस मुहर लगाने का काम किया। यह सब पूरी तरह से विधायी प्रक्रिया का मखौल उड़ाना था।
उन्होंने कहा मैं संशोधनों के खिलाफ बार-बार बोला हूं और ऐसा करना जारी रखूंगा। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि हम जो लड़ाई लड़ रहे हैं वह बहुत व्यापक राजनीतिक स्तर की है। कभी-कभी, किसी बड़े मुद्दे पर वैध और सैद्धांतिक रुख का किसी विशिष्ट मुद्दे पर असर पड़ सकता है। कांग्रेस नेता ने कहा इस सरकार और यहां तक कि अन्य पार्टियों से भी सवाल पूछे जाने चाहिए जिन्होंने इस खतरनाक विधेयक पर मुहर लगाई। यह पर्यावरण और आदिवासियों और वनवासियों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए एक लंबा संघर्ष होगा और इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि विपक्ष इस मुद्दे पर कहां खड़ा है।