IAEA Ban : ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने देश के महत्वपूर्ण परमाणु केंद्रों पर अमेरिकी हवाई हमलों के बाद बुधवार को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के साथ सहयोग निलंबित करने का कथित तौर पर आदेश दिया। ईरान के सरकारी मीडिया ने राष्ट्रपति के इस फैसले की जानकारी दी है।
ईरान ने IAEA के साथ सहयोग किया निलंबित
ईरान की संसद ने आईएईए के साथ सहयोग निलंबित करने के संबंध में एक कानून पारित किया था, जिसके बाद यह फैसला लिया गया है। इस कानून को संवैधानिक निगरानी निकाय की मंजूरी भी मिल गई है। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि इस कदम के संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था आईएईए के लिए क्या मायने हैं। विएना स्थित यह एजेंसी वर्षों से ईरान के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी करती आ रही है। एजेंसी ने अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
कानून पारित होने के बाद ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को इस विधेयक के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। हालांकि, इस परिषद ने सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा है, लेकिन चूंकि राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान इस परिषद के अध्यक्ष हैं, इसलिए उनका यह कथित आदेश इस ओर संकेत करता है कि विधेयक को लागू किया जाएगा। हालांकि, ईरान की धर्मतांत्रिक सरकार के तहत परिषद को विधेयक को अपनी सुविधानुसार लागू करने की स्वतंत्रता है। इसका मतलब यह है कि संसद की ओर से सुझाई गई हर बात को पूरी तरह से लागू करना जरूरी नहीं है।

2015 में हुआ था ईरान का परमाणु समझौता
ईरान और वैश्विक शक्तियों के बीच 2015 में हुआ परमाणु समझौता ईरान को 3.67 प्रतिशत तक यूरेनियम संवर्धन की अनुमति देता था, जो किसी परमाणु बिजली संयंत्र के संचालन के लिए पर्याप्त है, लेकिन यह हथियारों के निर्माण के लिए आवश्यक यूरेनियम (90 प्रतिशत) की मात्रा से बहुत कम था। यह समझौता अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में हुआ था।
बहरहाल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में अपने पहले ही कार्यकाल में एकतरफा तरीके से इस समझौते को खत्म कर दिया था। उन्होंने कहा था कि यह समझौता ईरान के मिसाइल कार्यक्रम पर लगाम नहीं लगाता है। समझौते के समाप्त होने के बाद से ही दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है। ईरान तब से 60 प्रतिशत तक यूरेनियम संवर्धन कर चुका है। उसके पास इतना यूरेनियम भंडार भी है, जिससे वह चाहे तो कई परमाणु बम बना सकता है। ईरान लंबे समय से दावा करता आया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन आईएईए, पश्चिमी खुफिया एजेंसियों और अन्य का कहना है कि तेहरान के पास 2003 तक एक संगठित परमाणु हथियार कार्यक्रम था।