नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन इस समय जीवन रक्षक प्रणाली पर है और अंदरूनी खींचतान एवं भाजपा की 24 घंटे चलने वाली चुनावी मशीन से मुकाबला करने में विफलता के कारण उसके ‘आईसीयू’ में जाने का खतरा है।मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित ‘हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट’ में विपक्षी गठबंधन की ‘‘संगठनात्मक और रणनीतिक विफलताओं’’ का विस्तार से उल्लेख किया और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ‘अद्वितीय’ कार्य नीति के साथ इसके दृष्टिकोण की तुलना की। अब्दुल्ला ने विपक्षी ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस) की वर्तमान स्थिति, विशेष रूप से हाल में हुए बिहार चुनावों के बाद, के बारे में कहा, हम एक तरह से जीवन रक्षक प्रणाली पर हैं, लेकिन कभी-कभी कोई अपना चप्पू निकालता है और हमें थोड़ा झटका देता है, और हम फिर से उठ खड़े होते हैं। लेकिन फिर, दुर्भाग्य से, बिहार जैसे परिणाम आते हैं, और हम फिर से नीचे गिर जाते हैं, और फिर किसी को हमें आईसीयू में ले जाना पड़ता है।
बिहार में राजग में वापसी के लिए इंडिया’ गठबंधन को जिम्मेदार : अब्दुल्ला
अब्दुल्ला ने नीतीश कुमार की भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में वापसी के लिए भी ‘ इंडिया’ गठबंधन को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि हमने नीतीश कुमार को वापस राजग की गोद में धकेल दिया। उन्होंने विपक्षी गठबंधन द्वारा एकजुट दृष्टिकोण अपनाने में विफलता की ओर भी इशारा किया, तथा बिहार में पार्टी की मौजूदगी के बावजूद सीट-बंटवारे की व्यवस्था से जानबूझकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को बाहर रखने के निर्णय का हवाला दिया। अब्दुल्ला ने ‘इंडिया’ गठबंधन के चुनाव प्रचार की तुलना भाजपा से की और कहा कि विपक्षी गठबंधन संरचनात्मक रूप से सत्तारूढ़ पार्टी के अनुशासित दृष्टिकोण के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ है। उन्होंने कहा, ‘‘उनके पास एक अद्वितीय चुनाव मशीन है’’, तथा यह ताकत केवल संगठन और वित्तपोषण से कहीं अधिक है।

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘चुनावों के मामले में भी उनकी कार्यशैली अद्भुत है… वे हर चुनाव ऐसे लड़ते हैं मानो उनकी ज़िंदगी उस पर निर्भर हो। हम कभी-कभी चुनाव ऐसे लड़ते हैं मानो हमें कोई परवाह ही नहीं है।’’ अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम द्वारा अपनाए गए राजनीति के चौबीस घंटे मॉडल को रेखांकित करते हुए कहा, ‘‘एक चुनाव खत्म होते ही वे अगले क्षेत्र में चले जाते हैं… हम चुनाव से दो महीने पहले उन राज्यों में कदम रखते हैं। अगर हम नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख से पहले अपने चुनावी गठबंधन बना लें, तो हम भाग्यशाली होंगे।’’ उन्होंने भविष्य की रणनीति पर कहा कि विपक्ष के लिए (भाजपा को) गंभीर चुनौती देने का एकमात्र तरीका अपने सबसे बड़े घटक दल कांग्रेस के इर्द-गिर्द एकजुट होना है क्योंकि भाजपा के अलावा वह एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसकी अखिल भारतीय उपस्थिति है। अब्दुल्ला ने स्वीकार किया कि क्षेत्रीय दल अपनी सीमित भौगोलिक पहुंच के कारण विवश हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस को ही प्रमुखता से काम करना होगा।’’
मुख्यमंत्री ने मुस्लिम मतदाताओं के संबंध में कहा कि पारंपरिक रूप से समुदाय का वोट प्राप्त करने वालों ने उन्हें हल्के में लेकर ‘गलती’ की है। अब्दुल्ला ने कहा कि ऐसे दलों ने केवल चुनाव से ठीक पहले ही समुदाय से संवाद किया, जिसके परिणामस्वरूप समुदाय में मंथन हुआ और लाभ एआईएमआईएम जैसे दलों को मिला है, जो ‘‘पूरे पांच साल उनके मुद्दों का समर्थन करने के लिए तैयार हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या इसका मतलब यह है कि 2024 के आम चुनावों के परिणाम एक संयोग थे, अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे लगता है कि देश ने 2024 में केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री मोदी और अन्य को संदेश दिया कि चीजें उतनी अच्छी नहीं हैं जितनी आपने उन्हें बताया था, और हम लिए गए कुछ फैसलों से खुश नहीं हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि 2024 के चुनावों के बाद, केंद्र ने अपना दृष्टिकोण बदला और दिखाया कि वह गठबंधन में भी काम कर सकता है। अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘आज हममें से शायद ही किसी को याद हो कि यह एक गठबंधन सरकार है। हम सभी को लगा कि इस सरकार की कार्यशैली संप्रग (कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) या राजग जैसी स्थिति के अनुकूल नहीं है। मुझे तो शायद ही कभी याद आता है कि यह एक ऐसा प्रधानमंत्री है जो वास्तव में अपने दो सहयोगियों पर निर्भर है।’’ उन्होंने कहा कि केंद्र ने काम करने के अपने तरीके, लोगों को साथ लेकर चलने के अपने तरीके को नया रूप दिया है।
अब्दुल्ला ने कहा, मेरा अभिप्राय है कि भाजपा सरकार कहने से लेकर अब वे खुद को राजग सरकार कहने लगे हैं। ये छोटे-मोटे बदलाव हैं, लेकिन इनका महत्व है। नेशनल कांफ्रेंस नेता हमेशा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में धांधली के व्यापक राजनीतिक आरोप से दूर रहे हैं। उन्होंने कहा, मैं कभी भी उन लोगों का समर्थक नहीं रहा जो कहते हैं कि मशीनों में धांधली होती है। अब्दुल्ला ने हालांकि चुनावी धांधली और चुनावी हेरफेर के बीच अंतर बताया, जो उनके अनुसार एक वैध चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, चुनावों में हेरफेर किया जा सकता है। और चुनाव में हेरफेर करने का सबसे आसान तरीका मतदाता सूची के माध्यम से या निर्वाचन क्षेत्रों की संरचना के माध्यम से ऐसा करना है।
अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में हाल ही में की गई परिसीमन प्रक्रिया की ओर इशारा करते हुए इसे ‘‘मूलतः हेरफेर’’ बताया। उन्होंने दलील दी कि इस प्रक्रिया में मतदाता सूचियों में फेरबदल करके और मतदाताओं के विशिष्ट वर्गों को बाहर करके ‘‘एक पार्टी और उसके एक सहयोगी’’ को लाभ पहुंचाने के लिए नए निर्वाचन क्षेत्र बनाए गए, जो चुनावी हेरफेर करने के समान है। उन्होंने यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला कि मतदाता सूची में परिवर्तन करने वाली कोई भी प्रक्रिया, जैसे कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर), पक्षपात की आशंका को समाप्त करने के लिए ‘‘पारदर्शी’’ और ‘‘निष्पक्ष’’ तरीके से की जानी चाहिए। अब्दुल्ला ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि ईवीएम पर उनका निजी रुख उनके पिता फारूक अब्दुल्ला से अलग है, जो धांधली के प्रति आश्वस्त हैं। उन्होंने कहा, मेरे पिता व्हाट्सऐप पर मिलने वाली हर बात पर विश्वास कर लेते हैं।




