Sunday, August 24, 2025
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Stray Dogs : वाकई…ऐसा कलियुग आएगा, सोचा नहीं था

Stray Dogs : चिंतन-मनन का प्रश्न ये भी है कि हिंसक कुत्तों को पकड़कर ठिकाने लगाने के सारे जतन तो किए जा रहे हैं, पर ये नौबत क्यों आई? इसके लिए कोई बात नहीं करना चाहता। आवारा कुत्ते यकायक उत्पन्न होने वाली समस्या नहीं बने।

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक चिंतक : राजेश कसेरा

बीते कुछ सालों में हमने जितनी चिंता इंसानों के भविष्य की नहीं की, उससे कहीं ज्यादा कुत्तों के भविष्य के लिए कर डाली। समाज में कुत्तों को कैसे रखना है और कहां रखना है, इस चिंतन-मनन में देश की सर्वोच्च अदालत तक शामिल हो गई। जो मुद्दा एक दशक पहले भी कोई मायने नहीं रखता है, आज उसकी चिंता में इंसानों की कई किस्में घुली जा रही हैं। कुत्तों के हिंसक हमलों से पस्त पीड़ित और उनके परिवारजन इनका समूल नाश देखना चाहते हैं तो इनको पालने और पसंद करने वाले इनको बचाने के लिए किसी भी हद को पार करने से पीछे नहीं हट रहे।

इस सारी नूरा-कुश्ती के बीच वे सारे मुद्दे गौण हो गए हैं जो और तेजी से इंसानों की जिन्दगी को लीलने का काम कर रहे हैं। मसलन हादसे, अपराध, हिंसा और अमानवीय कृत्य। इन जैसे कारणों से इंसानों के मरने की संख्या लगातार बढ़ रही है। ये हाल हो गए हैं कि समाज में पति-पत्नी, पिता-पुत्री, मां-पुत्र जैसे प्रगाढ़ संबंधों का एक-दूसरे पर भरोसा डगमगाने लगा है। हत्या करने जैसे संगीन अपराध आम हो चले हैं। हादसों में लोगों का मरना सामान्य घटनाक्रम बन गया है। महिलाओं के साथ छेड़छाड़, बलात्कार और उन पर हिंसक हमले आम हो गए हैं।

दुर्भाग्य है कि इन विद्रुपताओं से निपटने से कहीं ज्यादा जोर कुत्ताें से निजात पाने पर दिया जा रहा है। हिंसक कुत्ताें को पकड़कर शेल्टर होम में रखने के सुप्रीम आदेश दिए जा रहे हैं तो बाकी के कुत्तों को पकड़कर पहले नसबंदी करने और फिर उनको जहां से उठाया, वहीं पर छोड़ने के निर्देश दिए जा रहे हैं। ये काम उन स्थानीय निकायों के जिम्मे सौंपा जा रहा है, जो आम आदमी के लिए आजादी के 78 साल बाद भी मूलभूत सुविधाएं सुचारू नहीं दे पाए। जो लोगों को कचरा-गंदगी, अतिक्रमण, टूटी सड़कों, प्रदूषण से मुक्ति नहीं दिला पाए तो पीने का साफ पानी, सुचारू स्कूल-अस्पताल जैसे सामान्य प्रबंधन भी पुख्ता नहीं दे पाए।

यहां चिंतन-मनन का प्रश्न ये भी है कि हिंसक कुत्तों को पकड़कर ठिकाने लगाने के सारे जतन तो किए जा रहे हैं, पर ये नौबत क्यों आई? इसके लिए कोई बात नहीं करना चाहता। आवारा कुत्ते यकायक उत्पन्न होने वाली समस्या नहीं बने। इंसानों के बीच ही ये उसी तरह से विचरण करते रहे हैं जैसे चिड़िया, कबूतर, गाय, भैंस, बिल्ली, चूहे आदि रहे हैं। कुत्तों के अंदर इतनी हिंसक सोच कैसे बढ़ती गई, इस पर किसी ने न तो शोध किया और न ही किसी विशेषज्ञ ने अपने विचार प्रकट किए। आखिर उन कारणों को क्यों नहीं खंगाला जा रहा जो इस प्रजाति के अस्तित्व पर खतरा बनकर मंडरा रहे हैं? इंसानों के बीच में मित्र-साथी-सहयोगी की तरह रहने वाले कुत्ते यकायक उनके खून के प्यासे कैसे हो गए? इस पर आज नहीं तो आगे चर्चा करनी ही होगी।

कुत्ते किस हाल में आ गए, उसका सबसे बड़ा कारण हम इंसान ही हैं। हमारे लालच, स्वार्थ और श्रेष्ठतम बनने की दौड़ ने मूक प्राणियों के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। हमारे आस-पास से नन्ही चिड़िया, ताेते, कौवे, बिल्ली जैसे प्राणी कब ओझल हो गए, हमें अहसास तक नहीं हो पाया। लेकिन प्रकृति और जंगल इसका हिसाब हमसे लेने लगे हैं। कुत्ते भी संभवत: वही कर रहे हैं। हमारी नाकामी का ठीकरा और किसी भी नहीं फूटे, इससे पहले जिम्मेदारी-जवाबदेही से संभलना ही होगा।

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Premanshu Chaturvedi
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