Trump Tariff On China: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हर देश पर टैरिफ लागू कर रहे हैं. लेकिन चीन पर इस मामले में मेहरबान नजर आ रहे हैं. ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर 25 % एक्स्ट्रा टैरिफ लगा दिया है, चीन जो रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदता है उस पर अब तक एक्स्ट्रा टैरिफ लागू करने को लेकर अब तक फैसला नहीं ले पाए हैं. इस बीच ट्रंप ने चीन पर मेहरबानी दिखाते हुए एक्स्ट्रा टैरिफ लगाने के फैसले को 90 दिनों तक के लिए टाल दिया है. इसके लिए एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर भी साइन किया गया है. जिसके अनुसार 9 नवंबर तक चीन पर अमेरिका की तरफ से कोई एक्स्ट्रा टैरिफ नहीं लगाया जाएगा.
चीन पर एक्स्ट्रा टैरिफ को लेकर जेडी वेंस ने कही थी ये बात
इससे पहले अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भी चीन पर एक्स्ट्रा टैरिफ नहीं लागू करने के संकेत दिए थे. जब उनसे पूछा गया था कि ट्रंप भारत जैसे देशों पर रूसी तेल खरीदने के लिए भारी शुल्क लगा रहे हैं तो क्या अमेरिका चीन पर भी इसी तरह के शुल्क लगाएगा क्योंकि चीन भी रूस से तेल खरीदता है.वेंस ने कहा, ‘जाहिर है कि चीन का मुद्दा थोड़ा अधिक जटिल है क्योंकि चीन के साथ हमारे रिश्ते कई ऐसी अन्य चीजों को प्रभावित करते हैं जिनका रूसी स्थिति से कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा कि ट्रंप अपने विकल्पों की समीक्षा कर रहे हैं और निश्चित रूप से वह उचित समय पर इस पर निर्णय लेंगे.’
ट्रंप और जिनपिंग की मुलाकात का रास्ता साफ
चीन के साथ व्यापारिक समझौते की 90 दिन की पिछली समय सीमा मंगलवार रात 12 बजकर एक मिनट पर खत्म होने वाली थी. अगर ऐसा होता, तो अमेरिका चीन से होने वाले आयात पर पहले से जारी 30 प्रतिशत के उच्च करों को और बढ़ा सकता था और चीन अमेरिकी निर्यात पर जवाबी शुल्क बढ़ाकर इसका जवाब दे सकता था. इस समझौते की अवधि बढ़ाने से दोनों देशों को अपने कुछ मतभेदों को सुलझाने का समय मिल गया है, जिससे संभवत: इस साल के अंत में ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच शिखर सम्मेलन का रास्ता साफ हो गया है.
अमेरिकी कंपनियों ने इस कदम का किया स्वागत
वहीं, चीन के साथ व्यापार करने वाली अमेरिकी कंपनियों ने भी इसका स्वागत किया है.‘यूएस-चाइना बिजनेस काउंसिल’ के अध्यक्ष सीन स्टीन ने कहा कि इस विस्तार से दोनों सरकारों को व्यापार समझौते पर बातचीत करने के लिए और समय मिलेगा जो काफी अहम है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी कारोबारियों को उम्मीद है कि इससे चीन में उनकी बाजार पहुंच में सुधार होगा और कंपनियों में मध्यम एवं दीर्घकालिक योजनाएं बनाने के लिए आवश्यक भरोसा कायम होगा।