नई दिल्ली, राज्यसभा में बुधवार को संस्कृत की उपेक्षा पर चिंता प्रकट करते हुए इस प्राचीन भाषा को प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में अनिवार्य विषय बनाने और विश्वविद्यालयों में इसके पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देने तथा शोध के लिए विशेष अनुदान देने की मांग उठी.उत्तर प्रदेश से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य दिनेश शर्मा ने शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाते हुए सरकार से संस्कृत साहित्य के डिजिटल स्वरूप का प्रचार-प्रसार करने, संस्कृत ग्रंथों के ऑनलाइन कोर्स आरंभ करने और इस भाषा में नाटकों, गीत और संगीत कार्यक्रमों के आयोजन को बढ़ावा देने की भी गुजारिश की.
”अनेक ग्रंथ भी संस्कृत में ही लिखे गए हैं”
संस्कृत भाषा को देश की सांस्कृतिक धरोहर और अद्वितीय स्रोत करार देते हुए शर्मा ने कहा कि इसका साहित्य अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण है और यहां तक कि वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण जैसे अनेक ग्रंथ भी संस्कृत में ही लिखे गए हैं.उन्होंने कहा कि इनका अध्ययन आज भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और यह सभी ग्रंथ पुरातन ज्ञान और विज्ञान के महत्वपूर्ण स्रोत हैं तथा इसमें निहित ज्ञान आज भी प्रासंगिक है.
”युवा पीढ़ी अपने प्राचीन ज्ञान से वंचित हो रही”
शर्मा ने कहा कि भारतवर्ष में आदिकाल से ही संस्कृत बोलचाल की भाषा रही है और तमाम भाषाएं संस्कृत भाषा से ही उत्पन्न हुई हैं.संस्कृत को अन्य सभी भाषाओं की जननी करार देते हुए भाजपा सदस्य ने कहा कि वर्तमान समय में कुछ प्रदेशों में इसकी उपेक्षा बहुत ही चिंताजनक है.उन्होंने कहा,”आधुनिक शिक्षा प्रणाली और पश्चिमी प्रभाव के कारण संस्कृत भाषा का अध्ययन दिन प्रतिदिन प्रचलन से दूर होता जा रहा है.विश्वविद्यालयों में संस्कृत के प्रति रुचि घटती जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप हमारी युवा पीढ़ी अपने प्राचीन ज्ञान से वंचित हो रही है.
”संस्कृत को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए”
शर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत भाषा के उन्नयन का उल्लेख प्रसन्नता का विषय है लेकिन वह इसकी उपेक्षा की स्थिति को सुधारने के लिए कुछ सुझाव देना चाहते हैं.उन्होंने कहा,”प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में संस्कृत को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए.विश्वविद्यालयों में संस्कृत के पाठ्यक्रम को बढ़ावा दिया जाए और इस भाषा में शोध के लिए विशेष अनुदान प्रदान किया जाना चाहिए.”उन्होंने देश में ऐसे प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की मांग की जहां संस्कृत के साथ अन्य विषयों की भी पढ़ाई हो.
”संस्कृत साहित्य का डिजिटल रूप में अनुवाद किया जाए”
शर्मा ने कहा कि इससे विद्यार्थियों में संस्कृत के प्रति रुचि बढ़ेगी और उन्हें इसका व्यापक ज्ञान मिलेगा.उन्होंने कहा,”संस्कृत साहित्य का डिजिटल रूप में अनुवाद और प्रसार किया जाए ताकि यह आसानी से उपलब्ध हो सके.संस्कृत ग्रंथों के ऑनलाइन कोर्स और वेबिनार भी आयोजित किए जाने चाहिए.संस्कृत में नाटकों, कविताओं और संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए ताकि लोगों में संस्कृत के प्रति सम्मान बढ़ सके.”