नयी दिल्ली: सरकारी आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि भारत के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक, दिल्ली ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत प्राप्त धन के एक तिहाई से भी कम का उपयोग किया है। एनसीएपी की शुरुआत 2019 में की गई थी और यह स्वच्छ वायु का लक्ष्य निर्धारित करने की भारत की पहली राष्ट्रीय योजना है। इसका उद्देश्य आधार वर्ष के रूप में 2019-20 का उपयोग करते हुए, 2026 तक 130 उच्च प्रदूषित शहरों में पीएम10 प्रदूषण को 40 प्रतिशत तक कम करना है। पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों से पता चला है कि दिल्ली को एनसीएपी के तहत 42.69 करोड़ रुपये जारी किए गए थे, लेकिन उसने केवल 13.94 करोड़ रुपये यानी 32.65 प्रतिशत राशि ही खर्च की है। कुल 14 शहरों और शहरी क्षेत्रों ने कार्यक्रम के तहत या तो सीधे पर्यावरण मंत्रालय से या 15वें वित्त आयोग के माध्यम से प्राप्त धन का 50 प्रतिशत से कम खर्च किया है। उत्तर प्रदेश का नोएडा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का एक और प्रमुख प्रदूषित क्षेत्र है। नोएडा ने वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए दिये गये 30.89 करोड़ रुपये में से केवल 3.44 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। एनसीआर में ही स्थित फरीदाबाद (हरियाणा) ने आवंटित राशि 107.14 करोड़ रुपये में से 28.60 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम ने 129.25 करोड़ रुपये में से 39.42 करोड़ रुपये का इस्तेमाल इस मद में किया। इसी तरह पंजाब के जालंधर ने उसे दिए गए 45.44 करोड़ रुपये में से 17.65 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि कर्नाटक में गुलबर्गा ने 23.48 करोड़ रुपये में से 8.98 करोड़ रुपये का इस्तेमाल किया। कम धनराशि का उपयोग करने वाले अन्य शहरों में पठानकोट (37.1 प्रतिशत), उज्जैन (37.7 प्रतिशत), कर्नाटक का दावणगेरे (43.6 प्रतिशत), असम का नगांव (48.5 प्रतिशत), विजयवाड़ा (41.09 प्रतिशत), जमशेदपुर (44.24 प्रतिशत) और वाराणसी (48.85 प्रतिशत) शामिल हैं। एनसीएपी के तहत 130 शहरों को आवंटित किए गए कुल 12,636 करोड़ रुपये में से 27 मई तक केवल 8,981 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, जो कुल राशि का लगभग 71 प्रतिशत है। एनसीएपी के तहत आने वाले शहरों में से 82 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से प्रत्यक्ष धन प्राप्त होता है, जबकि 48 शहरों और दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरी क्षेत्रों को 15वें वित्त आयोग के माध्यम से धन प्राप्त होता है।