Supreme Court : नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे देश भर में तेजाब हमले के मामलों से संबंधित लंबित मुकदमों का ब्योरा चार सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करें। न्यायालय ने दिल्ली की एक अदालत में तेजाब हमले का एक मामला 16 वर्षों से लंबित रहने को ‘‘शर्मनाक’’ करार दिया। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने तेजाब हमले की पीड़िता शाहीन मलिक द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र और दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग को भी नोटिस जारी किए।

पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों की रजिस्ट्री से चार सप्ताह के भीतर ब्योरा मांगा
पीठ ने मलिक के मुकदमे में लंबे समय से हो रही देरी को ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर शर्म’’ की बात कहा। यह मुकदमा रोहिणी की एक अदालत में 2009 से लंबित है। पीठ ने कहा, यह न्याय व्यवस्था का कैसा मजाक है। यह बहुत शर्मनाक है। अगर राष्ट्रीय राजधानी में ऐसे मामलों से निपटा नहीं जा सकता तो कौन इससे निपटेगा? यह राष्ट्रीय स्तर पर शर्मनाक है। सीजेआई ने मलिक से कहा कि वह जनहित याचिका में ही एक आवेदन दायर कर बताएं कि मामला अभी तक समाप्त क्यों नहीं हुआ है। उन्होंने मलिक को आश्वासन दिया कि न्यायालय इस पर स्वतः संज्ञान भी ले सकता है।
पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों की रजिस्ट्री से चार सप्ताह के भीतर ब्योरा मांगा है। सुनवाई के दौरान मलिक ने पीड़ितों की दुश्वारियों पर भी प्रकाश डाला कि किस प्रकार वे खाने-पीने तक के लिए लाचार हो जाती हैं और उन्हें खाने-पीने के लिए कृत्रिम ट्यूब लगानी पड़ती है और गंभीर अक्षमताओं के साथ जिंदगी गुजारनी पड़ती है। पीठ ने उनकी इस याचिका पर भी केंद्र से जवाब मांगा कि कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए तेजाब हमले के पीड़ितों को दिव्यांग व्यक्तियों के रूप में वर्गीकृत किया जाए।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को आश्वासन दिया कि इस मुद्दे को ‘‘गंभीरता’’ से लिया जाएगा और कहा कि अपराधियों के साथ ‘‘उसी क्रूरता से पेश आना चाहिए जैसा कि उन्होंने किया।’’ प्रधान न्यायाधीश ने केंद्र से कानून में संशोधन करने पर विचार करने का आग्रह किया, चाहे वह कानून के माध्यम से हो या अध्यादेश के माध्यम से ताकि तेजाब हमले के पीड़ितों को औपचारिक रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के तहत दिव्यांग व्यक्तियों की परिभाषा में शामिल किया जा सके। सीजेआई ने कहा कि त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए तेजाब हमले के मामलों की सुनवाई आदर्श रूप से विशेष अदालतों द्वारा की जानी चाहिए।




