Wednesday, September 10, 2025
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‘मैं किसी एक दल का नहीं हूं’, कांग्रेस ने सीपी राधाकृष्णन के निर्वाचन पर प्रथम उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद याद, सदन में निष्पक्षता पर दिया जोर

उपराष्ट्रपति पद पर एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन की जीत के बाद कांग्रेस ने देश के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का वक्तव्य याद किया। उन्होंने राज्यसभा के सभापति के रूप में कहा था कि उपराष्ट्रपति सभी दलों के होते हैं और संसदीय लोकतंत्र की सर्वोच्च परंपराओं व निष्पक्षता को बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी है।

Congress On Vice President Election: कांग्रेस ने सी. पी. राधाकृष्णन के उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद बुधवार को देश के प्रथम उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के उस वक्तव्य को याद किया जिसमें उन्होंने राज्यसभा के सभापति के रूप में कहा था कि वह सदन में हर दल के हैं और उनका प्रयास संसदीय लोकतंत्र की सर्वोच्च परंपराओं को बनाए रखना और प्रत्येक दल के प्रति पूरी निष्पक्षता के साथ कार्य करना होगा.

उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में मंगलवार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन विजयी घोषित हुए. राधाकृष्णन को प्रथम वरीयता के 452 वोट मिले, जबकि विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट प्राप्त हुए.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पोस्ट में कही ये बात

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन, जो राज्यसभा के सभापति भी होंगे, उन्हें शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए कांग्रेस भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के प्रथम सभापति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के प्रेरक शब्दों को स्मरण करती है.’

उनके मुताबिक, 16 मई, 1952 को राज्यसभा के उद्घाटन के अवसर पर डॉ. राधाकृष्णन ने कहा था, ‘मैं किसी एक दल का नहीं हूं, और इसका अर्थ यह है कि मैं इस सदन के हर दल का हूं. मेरा प्रयास संसदीय लोकतंत्र की सर्वोच्च परंपराओं को बनाए रखना होगा और प्रत्येक दल के प्रति पूर्ण निष्पक्षता और समानता के साथ कार्य करना होगा, किसी के प्रति द्वेष नहीं, और सभी के प्रति सद्भावना रखते हुए. यदि कोई लोकतंत्र विपक्षी समूहों को सरकार की नीतियों की निष्पक्ष, स्वतंत्र और स्पष्ट आलोचना करने की अनुमति नहीं देता है, तो वह तानाशाही में बदल सकता है.’ रमेश ने कहा, ‘डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जीवन में इन बातों को अक्षरशः और भावना, दोनों ही अर्थों में पूरी तरह आत्मसात किया.’

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Premanshu Chaturvedi
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