Monday, July 14, 2025
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Omar Abdullah: पुलिस ने रोका तो गेट फांदकर नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान पहुंचे सीएम उमर अब्दुल्ला, 1931 के शहीदों को दी श्रद्धांजलि, बोले-‘वर्दी पहनकर कानून भूल जाते हैं’

Omar Abdullah: जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को 13 जुलाई, 1931 को डोगरा सेना की गोलीबारी में मारे गए 22 लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान का गेट फांदकर अंदर प्रवेश किया. यह नाटकीय दृश्य उस समय सामने आया जब अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस सहित विपक्षी दलों के कई नेताओं को शहीद दिवस के मौके पर कब्रिस्तान जाने से रोकने के लिए 1 दिन पहले घर पर नजरबंद कर दिया गया था.

ऑटो रिक्शा में पहुंचे फारूक अब्दुल्ला

नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला खनयार चौक से शहीद स्मारक तक एक ऑटो रिक्शा में पहुंचे, जबकि शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू स्कूटी पर पीछे बैठकर स्मारक तक पहुंचीं. सुरक्षा बलों ने श्रीनगर के व्यस्त क्षेत्र में खनयार और नौहट्टा की ओर से शहीद कब्रिस्तान जाने वाली सड़कों को सील कर दिया था.

कब्रिस्तान का गेट फांदकर अंदर पहुंचे उमर अब्दुल्ला

जैसे ही उमर अब्दुल्ला का काफिला पुराने शहर के खनयार इलाके में पहुंचा, वह अपनी गाड़ी से उतर गए और कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए 1 किलोमीटर से अधिक पैदल चले, लेकिन प्राधिकारियों ने कब्रिस्तान का द्वार बंद कर दिया था. इसके बाद मुख्यमंत्री कब्रिस्तान के मुख्य द्वार पर चढ़ गए और अंदर प्रवेश कर ‘फातिहा’ पढ़ा. उनके सुरक्षाकर्मी और नेशनल कॉन्फ्रेंस के कई अन्य नेता भी गेट पर चढ़ गए जिसके बाद अंततः गेट खोल दिया गया.

उमर अब्दुल्ला ने उपराज्यपाल और पुलिस की आलोचना की

उमर अब्दुल्ला ने उन्हें और उनके दल को शहीदों के कब्रिस्तान में प्रवेश करने से रोकने पर उपराज्यपाल और पुलिस की कड़ी आलोचना की. उमर ने कब्रिस्तान में श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद पत्रकारों से कहा, ‘यह दुखद है कि जो सुरक्षा और कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालते हैं, उन्हीं के निर्देश पर हमें यहां ‘फातिहा’ पढ़ने की अनुमति नहीं दी गई. हमें रविवार को घर में नजरबंद रखा गया. जब द्वार खुले तो मैंने नियंत्रण कक्ष से फातिहा पढ़ने की इच्छा व्यक्त की. कुछ ही मिनटों में बंकर लगा दिए गए और देर रात तक उन्हें हटाया नहीं गया.’

सीएम अब्दुल्ला ने लगाया धक्का-मुक्की का आरोप

अब्दुल्ला ने कहा, ‘देखिए इनकी बेशर्मी, इन्होंने आज भी हमें रोकने की कोशिश की. इन्होंने हमें धक्का देने की भी कोशिश की. पुलिस कभी-कभी कानून भूल जाती है. प्रतिबंध जब रविवार के लिए था, तो आज मुझे क्यों रोका गया? हर मायने में यह एक स्वतंत्र देश है. लेकिन ये हमें अपना गुलाम समझते हैं. हम गुलाम नहीं हैं. हम सेवक हैं, लेकिन जनता के सेवक है. मुझे समझ नहीं पता कि वर्दी में रहते हुए भी वे कानून की धज्जियां क्यों उड़ाते हैं?’’

‘हमें रोकने की सारी कोशिशें नाकाम हो गई’

अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने और उनकी पार्टी के नेताओं ने उन्हें पकड़ने की पुलिस की कोशिशों को नाकाम कर दिया. उन्होंने हमें पकड़ने की कोशिश की, हमारे झंडे को फाड़ने की कोशिश की, लेकिन सब कुछ व्यर्थ गया. हम यहां आए और ‘फातिहा’ पढ़ा. उन्हें लगता है कि शहीदों की कब्र केवल 13 जुलाई को यहां होती हैं, लेकिन वे तो सालभर यहीं हैं. उपराज्यपाल प्रशासन उन्हें कितने दिन शहीदों को श्रद्धांजलि देने से रोक पाएगा. अगर 13 जुलाई को नहीं, तो 12 जुलाई या दिसंबर, जनवरी या फरवरी की 14 तारीख. हम जब चाहेंगे, तब यहां आएंगे.’

Image Source: PTI

सोशल मीडिया पोस्ट में कही ये बात

उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट भी साझा किया जिसमें उन्होंने दोहराया कि आज उन्हें कोई नहीं रोक सकता. अब्दुल्ला ने कहा, ‘गैर-निर्वाचित सरकार ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की जिससे मुझे नौहट्टा चौक से पैदल आना पड़ा. इन्होंने नक्शबंद साहिब का गेट बंद कर दिया जिससे मुझे दीवार फांदनी पड़ी. इन्होंने मुझे पकड़ने की कोशिश की लेकिन आज मुझे कोई नहीं रोक सकता था.’

बता दें कि जम्मू-कश्मीर में 13 जुलाई को ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. इस दिन 1931 में श्रीनगर केंद्रीय जेल के बाहर डोगरा सेना की गोलीबारी में 22 लोग मारे गए थे. उपराज्यपाल प्रशासन ने 2020 में इस दिन को राजपत्रित अवकाश की सूची से हटा दिया था.

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Premanshu Chaturvedi
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