Sunday, June 22, 2025
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Pant Return : नए साल में वापसी करेंगे ऋषभ पंत, सौरव गांगुली ने कहा, आईपीएल के नए सीजन में खेलेंगे

कोलकाता। दिल्ली कैपिटल्स (डीसी) के क्रिकेट निदेशक सौरव गांगुली ने कहा कि भारत के स्टार विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत अगले इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) सत्र में खेलेंगे। दिल्ली कैपिटल्स के कप्तान पंत पिछले साल दिसंबर में कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गये थे। पंत गुरुवार को दिल्ली कैपिटल्स के ट्रेनिंग सत्र के दौरान खिलाड़ियों के साथ जुड़ गए।

गांगुली ने पंत के बारे में अपडेट देते हुए पत्रकारों से कहा, वह (पंत) अब ठीक है। वह अगले आईपीएल सत्र में खेलेगा। उन्होंने कहा, ऋषभ हालांकि यहां अभ्यास नहीं करेगा। अभी अभ्यास शुरू करने के लिए समय है। जनवरी (2024 तक) वह और बेहतर हो जाएगा। गांगुली ने कहा, हम टीम के बारे में बात कर रहे थे। वह कप्तान है इसलिए आगामी नीलामी के संबंध में उसने अपने विचार रखे। वह इसी वजह से यहां आया ताकि टीम संबंधित कुछ पहलुओं को अंतिम रूप दे सके। पंत ने भारत के लिए अंतिम टेस्ट पिछले साल दिसंबर में मीरपुर में बांग्लादेश के खिलाफ खेला था।

IPL 2024 में खेलेंगे ऋषभ पंत


ऋषभ पंत आईपीएल 2024 में खेलते नजर आएंगे। इस दौरान पंत के हाथों में दिल्ली कैपिटल्स की कमान होगी। इस बात की जानकारी सौरभ गांगुली ने ट्वीट करके दी। साल 2022 के बाद से ऋषभ पंत एक भी इंटरनेशनल मैच नहीं खेल पाए हैं। उन्होंने अपना आखिरी मैच दिसंबर 2022 में खेला था। इसके बाद पंत सड़क हादसे के शिकार हो गए।

बैटिंग करते दिखे थे पंत

अगस्त महीने में ऋषभ पंत का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। वीडियो में पंत एक मैच में बैटिंग करते दिखे थे। पंत को रन लेते हुए नहीं देखा गया, पर उन्होंने कुछ अच्छे शॉट्स जरूर लगाए। इस वीडियो के बाद फ़ैन्स ने वनडे वर्ल्ड कप को लेकर उनकी वापसी पर कयास लगाना शुरू कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश-देश में आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं, फिर बिहार में कैसे दे दिया 75 फीसदी, कहीं छलावा तो नहीं…

बिहार में विधान परिषद से शुक्रवार को जातिगत आरक्षण बढ़ाने वाला विधेयक भी पारित हो गया। इससे पहले गुरुवार को इसे विधानसभा ने पारित किया था। इससे राज्य में जातिगत आरक्षण की सीमा 50% से बढ़कर 65% हो जाएगी। वहीं नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के इस कदम से राज्य में कुल आरक्षण 60% से बढ़कर 75% हो जाएगा। इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण पहले से ही लागू है।  ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय की गई 50% वाली सीमा का क्या होगा?

बिहार में 50% से ज्यादा जातिगत आरक्षण देने वाले विधेयक से सुप्रीम कोर्ट के 1992 के उस फैसले के बारे में चर्चा हो रही है, जिसमें सर्वोच्च अदालत ने 1992 के इंदिरा साहिनी फैसले में शिक्षा और रोजगार में मिलने वाले जातिगत आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा तय की थी। जुलाई 2010 के एक अन्य फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को फीसदी की सीमा से अधिक आरक्षण देने की सशर्त अनुमति दे दी। ऐसे मामलों में अदालत ने शर्त यह रखी कि राज्य चाहें तो 50 फीसदी से अधिक जतिगत आरक्षण बढ़ा सकते हैं जिसे उचित ठहराने लिए उन्हें वैज्ञानिक आंकड़े प्रस्तुत करने होंगे।

देश के राज्यों में लागू है 50% से ज्यादा जातिगत आरक्षण

तमिलनाडु में एक कार्यकारी आदेश के जरिए 1989 में 69% आरक्षण लागू कर दिया गया था। कुछ राज्यों में हाल के वर्षों में इस सीमा को बढ़ाया गया है जिन्हें अदालती चुनौती का सामना करना पड़ा। हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे कई राज्यों ने 50% आरक्षण की सीमा से अधिक वाले कानून पारित किए हैं और वे निर्णय भी न्यायालयों में चुनौती के अधीन हैं। केंद्र सरकार ने 2019 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10% आरक्षण देने के लिए 103वां संविधान संशोधन किया। इसके तहत अनुच्छेद-15 में नए खंड को शामिल किया। जब केंद्र के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली तो उसने दलील दी कि अनुच्छेद 15 में नया खंड जोड़ने से 50% की अधिकतम सीमा लागू करने का सवाल कभी नहीं उठ सकता है जो राज्य को ईडब्ल्यूएस की बेहतरी और विकास के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देता है।

बिहार में यह हुआ आरक्षण को लेकर

बिहार विधान मंडल के शीतकालीन सत्र का शुक्रवार को आखिरी दिन था। हंगामे के बीच चौथे दिन यानी गुरुवार को विधानसभा आरक्षण संरक्षण विधेयक 2023 पास हो गया। राज्य की विपक्षी पार्टी भाजपा ने भी अपना समर्थन दिया। इससे पहले गुरुवार को आरक्षण संशोधन बिल विधानसभा में पास हुआ था।  संशोधन विधेयक 2023 का उद्देश्य आरक्षण 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत (65 प्रतिशत + 10 प्रतिशत EWS) करने का प्रस्ताव है। संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि मूल रूप से आरक्षण को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। EWS के रूप 10 प्रतिशत आरक्षण केंद्र सरकार ने पहले ही दूसरे अधिनियम से कवर है।

दिल्ली आबकारी नीति मामला : जेल में ही मनेगी आप सांसद संजय सिंह की दिवाली, 24 नवंबर तक बढ़ी हिरासत

नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली सरकार की कथित आबकारी नीति घोटाले से संबंधित धन शोधन मामले में गिरफ्तार आम आदमी पार्टी (आप) नेता संजय सिंह की न्यायिक हिरासत की अवधि शुक्रवार को 24 नवंबर तक बढ़ा दी। ऐसे में सांसद संजय की दिवाली जेल में ही मनेगी। धन शोधन रोधी एजेंसी ने सिंह को चार अक्टूबर को गिरफ्तार किया था।

विशेष न्यायाधीश एम के नागपाल ने सिंह को संसद सदस्य के रूप में विकास कार्यों से संबंधित कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने की भी अनुमति दी। न्यायाधीश ने संबंधित अधिकारियों को उन्हें (सिंह को) पंजाब की एक अदालत के समक्ष पेश करने का भी निर्देश दिया, जब उसे सूचित किया गया कि पंजाब के अमृतसर की एक अदालत से एक मामले में पेशी वारंट प्राप्त हुआ है।

प्रवर्तन निदेशालय ने आरोप लगाया कि सिंह ने आबकारी नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिससे कुछ शराब निर्माताओं, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं को फायदा हुआ था। हालांकि, इस नीति को अब रद्द कर दिया गया है।

PAK Captain : टीवी पर राय देना आसान, कप्तानी से मेरी बल्लेबाजी प्रभावित नहीं हुई : बाबर आजम

कोलकाता। पाकिस्तान के कप्तान बाबर आजम ने उनके नेतृत्व कौशल पर सवाल उठाने वाले आलोचकों को आड़े हाथों लेते हुए शुक्रवार को कहा कि टीवी पर राय देना आसान होता है और कप्तानी के कारण विश्व कप में उनकी बल्लेबाजी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। पाकिस्तान की अफगानिस्तान के हाथों 8 विकेट की हार और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 271 रन के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाने के बाद बाबर आजम की आलोचना हो रही थी। मोइन खान और शोएब मलिक जैसे पूर्व कप्तानों ने बाबर की कप्तानी की खुलेआम आलोचना की और कहा कि इसका असर उनकी बल्लेबाजी पर पड़ रहा है।

बाबर ने अपनी आलोचना के संबंध में कहा, टीवी पर राय देना बहुत आसान होता है। अगर कोई मुझे सलाह देना चाहता है तो उनका स्वागत है और वह मुझे सीधे फोन कर सकते हैं। मेरा नंबर उन सभी के पास है। मलिक ने कहा था कि बाबर बल्लेबाजी का बादशाह है लेकिन कप्तानी में ऐसा नहीं है। जिस व्यक्ति की सबसे अधिक जिम्मेदारी बनती है वह कप्तान है। मोइन ने कहा था कि बाबर को भारतीय बल्लेबाज विराट कोहली से सीख लेनी चाहिए जो कप्तानी छोड़ने के बाद अपना पूरा ध्यान बल्लेबाजी पर लगा रहे हैं। बाबर ने इस पर दृढ़ रवैया अपनाते हुए कहा कि आलोचना के कारण उनकी बल्लेबाजी पर कभी कोई असर नहीं पड़ा।

उन्होंने कहा, मैं पिछले तीन वर्षों से अपनी टीम की कप्तानी कर रहा हूं और मैंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया। बात केवल इतनी है कि मुझे विश्व कप में जिस तरह का प्रदर्शन करना चाहिए था वैसे नहीं कर पा रहा हूं, इसलिए लोग बोल रहे हैं कि मैं दबाव में हूं। मैं नहीं मानता की कप्तानी के कारण मैं किसी तरह के दबाव में हूं या किसी तरह से भिन्न महसूस कर रहा हूं। मैं क्षेत्ररक्षण और बल्लेबाजी के दौरान मैदान पर अपना शत प्रतिशत योगदान देता हूं। मैं इस बारे में सोचता हूं कि मुझे किस तरह से रन बनाने चाहिए और अपनी टीम को जीत दिलानी चाहिए। बाबर को इस दौरान पाकिस्तान के पत्रकारों के सवालों से जूझना पड़ा जिनमें कप्तानी छोड़ने से संबंधित सवाल भी थे।

उन्होंने कहा, मैं नहीं जानता कि आप किस फैसले की बात कर रहे हैं। खिलाड़ियों के चयन से संबंधित जो फैसले हमने यहां किए हैं वह कोच और कप्तान ने किए हैं। हम परिस्थितियों के अनुसार अपने सर्वश्रेष्ठ संयोजन के साथ उतरे। कुछ अवसरों पर हमें सफलता मिली तो कुछ अवसरों पर ऐसा नहीं हो पाया।

Jaipur Assembly Report : समस्याओं का पर्याय है सांगानेर विधानसभा क्षेत्र, न पीने को पानी, न बेहतर जिंदगी

अमित सिंह लाइव रिपोर्ट

देश-विदेश में अपनी रंगाई-छपाई को प्रसिद्ध सांगा बाबा की नगरी सांगानेर में वर्षों से चल रही समस्याओं के समाधान के लिए आश्वासन तो दशकों से दिए जा रहे हैं, लेकिन हालात नहीं बदले। विधानसभा चुनाव के दौरान हर बार यहां के लोग बाजारों में जाम, सीवर और पेयजल की समस्या के बारे में बताते हैं। वोट मांगने वाले चुटकियों में इनके हल की बात करते हैं। लेकिन समस्याएं कम होने के बजाय बढ़ती जा रही हैं। इस बार भी विधानसभा चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी इन्हीं समस्याओं के समाधान को लेकर दावे तो कर रहे हैं, पर त्रस्त जनता क्या निर्णय करती है ये तो 3 दिसंबर को सामने आएगा।

सड़क, पानी और सीवर पर स्थाई समाधान नहीं

यहां की सबसे बड़ी समस्या पेयजल है। कई हिस्सों में बीसलपुर की पाइपलाइन से पानी नहीं आया। आमजन पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं। भूजल पीने योग्य नहीं है। कॉलोनियों के नियमितीकरण की मांग यहां रहने वाले परिवारों की हमेशा से रही है। सांगानेर विधानसभा के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्र में आवासीय कॉलोनियां बड़ी संख्या में विकसित हो चुकी हैं। इनको जेडीए ने नियमित नहीं किया, इसलिए यहां कोई विकास नहीं हो सका। किसी तरह बिजली कनेक्शन तो मिल जाता है, लेकिन पेयजल के लिए पाइप लाइन नहीं बिछ सकी।

स्थानीय लोगों ने ही कर रखा अतिक्रमण

मुख्य बाजार अब तक आदर्श बाजार का दर्जा हासिल नहीं कर पाया। इसके लिए यहां के स्थानीय लोग स्वयं जिम्मेदार हैं। उन्होंने मुख्य बाजार में जगह-जगह अतिक्रमण कर रखे हैं। सांगानेर में कहने को तो दो व्यापार महासंघ हैं। लेकिन, किसी ने भी इसके खिलाफ कोई पुख्ता कार्रवाई करने के लिए आवाज नहीं उठाई है। आश्चर्य की बात तो यह है कि बाजार में कारोबार करने वालों ने ही अतिक्रमण कर रखा है। हाल ये हैं कि नाले तक को पाटकर जगह रोक रखी है।

प्रदूषित हवा में जीने को मजबूर

क्षेत्र में रंगाई-छपाई की करीब 900 फैक्ट्रियां हैं। इनके कारण बढ़ते प्रदूषण और बिगड़ते भूजल ने क्षेत्र के लोगों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ा दी हैं। लोग जल उपचार संयंत्र स्थापित करने और प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग करते रहे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि शाम को कोई बाहर नहीं निकल सकता क्योंकि हवा प्रदूषित है। प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के बारे में सभी जानते हैं लेकिन उन्हें संरक्षण प्राप्त है। इनके कारण जल प्रदूषित हो रहा है। स्थानीय पार्षदों भी इन समस्याओं से निपटने में विफल रहे तो लोगों ने अपने दम पर सांगानेर नागरिक संस्थान की स्थापना की। समूह नागरिक मुद्दों से निपटता है और सार्वजनिक समस्याओं का समाधान की कोशिश करता है।

ब्राह्मण बाहुल्य वाली सीट पर कांटे की टक्कर

सांगानेर विधानसभा सीट को भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाता है। ब्राह्मण बाहुल्य वाली इस सीट पर जीत का मार्जिन खूब रहता है इसलिए यह सीट बहुत खास मानी जाती है। राजस्थान में 25 नवंबर को वोटिंग होगी। इस सीट पर कांग्रेस ने पिछली बार हार चुके पुष्पेंद्र भारद्वाज को मैदान में फिर से उतारा है तो भारतीय जनता पार्टी ने निवर्तमान विधायक अशोक लाहौटी का टिकट काटकर नए चेहरे भजनलाल शर्मा पर दाव खेला है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के अशोक लाहोटी ने कांग्रेस के पुष्पेंद्र भारद्वाज को 35,405 मतों के अंतर से मात दी थी। भाजपा के लिए सुरक्षित समझी जाने वाली इस सीट पर राजनीति के जानकार इस बार कांटे की टक्कर मान रहे हैं। इसका कारण वे यह बताते हैं कि पुष्पेन्द्र भारद्वाज पिछली हार के बाद भी लगातार सक्रिय रहे वहीं भजनलाल को कुछ लोग बाहरी बता रहे हैं। लेकिन शहरी वोटर ज्यादातर पार्टी को वोट करते हैं। यदि यही ट्रेंड रहा तो इस सीट से भाजपा को परास्त करना कांग्रेस पार्टी के लिए आसान नहीं है। सांगानेर सीट में अभी करीब 3,50,000 वोटर्स हैं, जिसमें सबसे ज्यादा ब्राह्मण मतदाता हैं, जो 75,000 के करीब हैं। जबकि वैश्य समाज के करीब 25,000 मतदाता हैं। माली समाज के 25,000, एससी-एसटी के 22,000 वोट हैं। जबकि मुस्लिम समाज के 20,000, जाट समाज के करीब 18,000 वोटर्स हैं। इनके अलावा 7,000 यादव, 4,000 गुर्जर और 15,000 अन्य जातियों के मतदाता यहां निवास करते हैं।

जावेद अख्तर ने लगाए जय सिया राम के नारे, बोले- भगवान राम और सीता भारत की सांस्कृतिक विरासत

मुंबई। अक्सर अपने बयानों के लिए विवादों और चर्चाओं में घिरे रहने वाले बॉलीवुड के वरिष्ठ गीतकार जावेद अख्तर फिर सुर्खियों में हैं। उन्होंने राम भगवान और सीता माता पर अपने विचार खुलकर रखे। उन्होंने कहा कि राम और सीता सिर्फ भगवान ही नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत हैं। कवि और गीतकार जावेद अख्तर ने गुरुवार को मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) अध्यक्ष राज ठाकरे की ओर से आयोजित दीपोत्सव कार्यक्रम में ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि उन्हें राम और सीता की भूमि पर पैदा होने पर गर्व है। उन्होंने लोगों से जय सिया राम के नारे लगाने के लिए भी कहा।

जावेद अख्तर ने कहा कि मैं नास्तिक हूं फिर भी मैं राम और सीता को इस देश की संपत्ति मानता हूं, इसलिए मैं यहां आया हूं। रामायण हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह आपकी रूचि का विषय है। मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं राम और सीता की भूमि पर पैदा हुआ हूं, जब हम मर्यादा पुरुषोत्तम की बात करते हैं तो राम और सीता ही याद आते हैं।

कार्यक्रम में जावेद अख्तर ने लखनऊ में अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा कि लोग एक-दूसरे का अभिवादन वहां पर जय सिया राम कहकर किया करते थे। मैं लखनऊ से हूं। बचपन में ऐसे लोगों को देखता था जो अमीर थे वह गुड मॉर्निंग कहते थे, लेकिन सड़क से गुजरता हुआ एक आम आदमी कहता था, जय सिया राम। इसलिए सीता और राम को अलग-अलग सोचना पाप है। सिया राम शब्द प्रेम और एकता का प्रतीक है। सिया और राम तो एक ने ही अलग किए। उसका नाम रावण था। तो जो अलग करेगा वह रावण होगा। तो आप मेरे साथ तीन बार जय सिया राम का जाप करें। आज से जय सिया राम बोलें।

बातां अठी-उठी की : 14 चुनावों में यहां पर सात बार कांग्रेस ने बाजी मारी, कौनसा है राजस्थान का ये स्थान, पढ़ें हर Fact को यहां

आज हम बात करेंगे बाड़मेर विधानसभा की। यह मरुक्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां अब तक 14 चुनाव हुए। इनमें सबसे ज्यादा 7 बार कांग्रेस ने बाजी मारी है। भाजपा को अब तक केवल एक बार ही यहां से विजय मिल पाई है। यहां सबसे पहले 1952 में चुनाव हुए और तनसिंह राम राज्य परिषद से चुनाव जीते। उन्होंने कांग्रेस के वृद्धिचंद जैन को पटखनी दी। 1957 में फिर तन सिंह ही विजेता रहे और उन्होंने रुक्मणी देवी को हराया। इसके बाद निर्दलीय प्रत्याशी उम्मेद सिंह ने कांग्रेस के वृद्धिचंद जैन को हराया। इसके तीन कार्यकाल तक कांग्रेस के वृद्धिचंद जैन ही यहां जीतते रहे।

1980 में कांग्रेस से देवदत्त तिवारी विजेता रहे। 1985 में लोकदल के गंगाराम चौधरी ने यहां से बाजी मारी। बाड़मेर विधानसभा सीट के 1952 से 2013 तक के चुनाव आंकड़ों पर नजर डालें तो सर्वाधिक मतों से जीत का रिकॉर्ड वृद्धिचंद जैन के नाम दर्ज है। जैन ने 1998 में 33,611 वोटों से भाजपा के तगाराम चौधरी को हराया था। सबसे कम 1318 वोटों से निर्दलीय उम्मेद सिंह ने 1962 में कांग्रेस के वृद्धिचंद जैन को हराया था।

इस सीट पर सबसे ज्यादा चार बार वृद्धिचंद जैन विधायक रहे। तीन बार गंगाराम चौधरी विधायक बने। 2008 व 2013 के विधानसभा चुनावों में यहां से मेवाराम ने बाजी मारी। बाड़मेर विधानसभा सीट पर बीते 66 वर्षों में भाजपा सिर्फ एक बार ही चुनाव जीती। वर्ष 1993 में निर्दलीय गंगाराम चौधरी विधायक बने और बाद में भाजपा में शामिल हुए। 1998 में भाजपा के तगाराम चुनाव हार गए। 2003 में तगाराम चौधरी ने 30,523 वोटों से जीत दर्ज की। देश की आजादी के बाद कांग्रेस ने तीन बार अपने चुनाव चिह्नों बदलाव किया है। कांग्रेस का पहले चुनाव चिह्न दो बैलों की जोड़ी था।

इसके बाद वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी के समय यह चुनाव चिह्न बदलकर गाय-बछड़ा किया गया और वर्ष 1977 कांग्रेस के चुनाव चिह्न के रूप में हाथ आ गया। इसके अलावा जनसंघ का चुनाव चिह्न दीपक था। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के निर्माण के बाद कमल का फूल निशान बन गया। भाजपा ने बाड़मेर में प्रियंका चौधरी को टिकट नहीं दिया और इसकी जगह पर दीपक कड़वासरा को प्रत्याशी घोषित किया है। 34 साल के दीपक के दादा तगाराम चौधरी बाड़मेर से 2003 में भाजपा से विधायक रहे है। दीपक भाजपा संगठन में सक्रिय रहे है और वे दावेदारों में थे। बाड़मेर में टिकट को लेकर प्रियंका चौधरी की दावेदारी भी थी और उन्होंने 4 नवंबर को नामांकन भी भर दिया था। अब परिणाम तक कयासों के दौर चल रहे हैं, लेकिन कमल के लिए यहां राह मुश्किल ही है। कांग्रेस के मेवाराम कद्दावर नेता है और उन्हें पटखनी देना आसान नहीं हो सकता।

Satire : मेरी ही पार्टी की कहानी, सुनिए मेरी ही जुबानी…बात कड़वी लगे तो सबको बताएं भी जरूर

पूरन सरमा@ व्यंग्यकार

अब तो चुनाव की रंगत शुरू हो चुकी है, लेकिन जब दलों को लेकर अपने दल का पुनर्गठन किया था। उस समय मात्र चुनाव की आशंका से भयातुर अपने समान धर्मा दलों से मैंने अपील की कि सत्तारूढ़ दल को बराबर की टक्कर देने के लिए एक हो जाना चाहिए। मेरी इस अपील का व्यापक प्रभाव हुआ और इधर-उधर बिखरे छुटभैया मेरे जैसे विशाल वट की छाया में आ इकट्ठे हुए। जिन दलों को लेकर नया दल गठित किया, उस समय कोई बात आड़े नहीं आई। क्योंकि लक्ष्य महज सरल और कॉमन था कि येन-केन सत्ता हथियानी है। गठन तक यह भावना लगातार प्रधान रही कि यदि एक हो गए तो बहुमत हमें अवश्य मिल जाएगा। क्योंकि जनता विकल्प के लिए छटपटा रही है, जनता को एक सशक्त विकल्प मैंने दे दिया था।

अब जनता का दायित्व है कि वह हमारे साथ क्या सलूक करती है। चुनाव की हडबड़ाहट में तमाम चमगादड़ मेरे हर्द-गिर्द आ गए तथा जैसा कि मैंने पहले बता दिया था कि अध्यक्ष नए दल का मैं ही बनूंगा, बना दिया गया। अब मैं अपने नए दल का स्वयं भू अध्यक्ष था। खैर दल के गठन के चन्द दिनों के बाद ही चुनाथ तिथियां घोषित हुईं और मैंने जनता को फिर आगाह किया कि तानाशाही और राजशाही जन्म ले रही है। अतः इस शिकंजे को इस आम चुनाव में तोड़ना है तथा हमारे दल को विजयी बनाना है। हमारा वह तथाकथित दल, जिसके गठन के समय हमने तमाम वैचारिक एवं सैद्धांतिक मतभेद भुलाकर केवल सत्ता हथियाना प्रमुख लक्ष्य मानकर काम शुरू किया था, इसमें शुरू से ही व्यापक धड़ेबंदी है।

साथियों का मानना है कि मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि प्रधानमंत्री बनने लायक दल में और कोई है भी नहीं। चुनाव लड़ने के लिए अपने बुनियादी उसूलों को जनता के सामने खुलासा करने की बात आई तो सभी धड़े के लीडरों ने अपने विचार व अपनी मान्यताएं रख दीं। जिससे जहां चुनाव घोषणापत्र में विविधता व विरोधाभास आया है। यही स्थिति इतनी हास्यास्पद हो गई कि मतदाता जिस नजरिए से देखें, उसे हमारा दल अपने ही विचारों के अनुकूल लगने लगा। दूसरे दल बिफरने व बिखरने लगे। दोनों हाथ जोड़ मनाही करने लगे। नहीं ‘साब’ न एकता सम्भव है और नहीं गठजोड़ आप अपना जोड़-तोड़ बैठाते रहो और हमें मेहरबानी करके छोड़ दीजिए।

कोई आदमी अपनी पार्टी को खराब करने को तैयार नहीं है, जबकि मैं लगातार यह विश्वास दिलाता रहा हूं कि न तो मैं किसी दल को खराब करना चाहता हूं और न ही मेरे पास आने से उनकी छवि खराब होगी। पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में वाया मेरे यह कहा गया कि गरीबी तक तक नहीं मिट सकती जब तक कि सत्तारूढ़ दल को सत्ताच्युत नहीं किया जाएगा। जबकि मैं खुद जानता हूं कि यह अलादीन के चिराग से कम नहीं है।

Diwali Special : प्रेम, सहयोग और उल्लास की त्रिवेणी बहाते हैं हमारे त्योहार, लें इसकी सौंधी खुशबू

योगेन्द्र शर्मा . दीपावली की दस्तक ने शहर से लेकर गांवों तक के माहौल को नएपन से भर दिया है। धन त्रयोदशी के साथ ही आज से दीपोत्सव का आगाज हो चुका है। सच में त्योहार जीवन में प्रेम, सहयोग और उल्लास की त्रिवेणी बहाते हैं। सबसे पहले प्रेम को समझना होगा। प्रेम में स्वार्थ नहीं होता। प्रेम को समझने के लिए किसी भाषा की आवश्यकता नहीं होती। यह तो मौन में भी मुखर होता है। आज हम यदि प्रेम को अपने इर्द-गिर्द तलाशें तो शायद यह नहीं मिलेगा। यह कोई वस्तु पदार्थ तो है नहीं जो दाम दिए और खरीद लाएं। कहा भी गया है प्रेम न हाट बिकाए। अगर प्रेम की उपमा दी जाए तो सबकी जुबान पर नाम आएगा। कृष्ण-सुदामा का प्रेम, गोपियों और कृष्ण का प्रेम। सुदामा जब कृष्ण से मिलने आए थे तो श्रीकृष्ण ने अपने नयनों से प्रवाहित अश्रुओं से सुदामा के चरण धोए थे। इस दृश्य को जरा आत्मसात करके देखिए। आपको भी उस प्रेम की अनुभूति होने लगेगी। अभी हम जिसे प्रेम समझ रहे हैं, दरअसल वह प्रेम है ही नहीं। हम वो मछली हैं जो जल में रहकर भी प्यासी है। प्रेम वैसा हो जैसा मछली का जल से होता है। बिना जल के प्राण छोड़ देती है।


प्रेम का समंदर हमारे अंदर ही है। इसे टटोलने की जरूरत है। अभी हमारा ध्यान एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा में लगा है कि कैसे दूसरे को नीचा दिखाया जाए। इस प्रतिस्पर्धा में व्यक्ति यह भी भूल जाता है कि सामने वाला मेरा भाई है या दोस्त। भाई-भाई का दुश्मन बना है और दोस्त-दोस्त का। पिता-पुत्र में भी प्रेम देखने को नहीं मिलता। पुत्रों की नजर भी पिता की संपत्ति पर रहती है। श्रव णकुमार तो कहीं नजर ही नहीं आते। इस दौर में यदि श्रवण कुमार कहीं नजर आ जाएं, तो भगवान के दर्शन की जरूरत ही नहीं रह जाती है।


अब तो सहयोग और उल्लास भी कम हो चला है। एक समय था जब संयुक्त परिवार होते थे। 25-30 लोग घर में एक साथ रहा करते थे। परिवार का मुखिया पिता होता था। पिता के बाद चाचा या परिवार के बड़ों के कंधों पर सब जिम्मेदारी आ जाती थी। फिर उनकी बात सब परिवारजन मानते थे। घर में कोई भी ब्याह-शादी, वार-त्योहार साथ मनाए जाते थे। आज एकल परिवार हो गए हैं। एकल में भी एक-एक बंट गए हैं। बेटा-बेटी अलग कमरे में अपने मोबाइल फोन पर व्यस्त हैं, पिता अलग और माता अलग फोन पर चैटिंग में लगे हैं। किसी के पास किसी के लिए वक्त नहीं है। सच्चे प्रेम और सहयोग की बात तो दूर, दिखावे का भी नहीं रह गया। माताओं का अपनी विवाहित बेटियों से ऐसा प्रेम है कि वे कई घंटों तक फोन पर बातों में लगी रहती हैं। यहां तक तो सही है, लेकिन जब दोनों की बातचीत के दौरान जब सास-ससुर, ननद आदि की बुराइयों का दौर शुरू होता है तो फिर कब सुबह से शाम हो जाए, पता नहीं चलता। बुराई किए जाने की बात कभी दामाद को पता चल जाती है तो कई बार मारपीट, फिर नौबत तलाक तक पहुंच जाती है।


बात चल रही थी प्रेम और सहयोग की। महाभारत ग्रंथ में एक प्रसंग है।इसमें पांचों पांडवों के आपस में गहरे प्रेम के बारे में बताया गया है। पांडव, अपनी माता कुंती से, पत्नी द्रौपदी से और मित्र और भाई कृष्ण से अगाध प्रेम करते थे। उनके सच्चे प्रेम के कारण ही युद्ध में उनकी जीत हुई। वहीं दुर्योधन के खेमे में भीष्म पितामह की दुर्योधन और कर्ण से नाराजगी, दुर्योधन के भाइयों और पिता धृतराष्ट्र की पांडवों से नाराजगी ही उन्हें ले डूबी। इसलिए प्रेम बहुत ही जरूरी है। सभी प्राणियों से प्रेम किया जाना चाहिए। प्रेम के आते ही सहयोग की भावना अपने आप प्रस्फुटित हो जाती है और जहां ये दोनों है, वहीं तो सच्चा उल्लास है। उल्लास समूह से बनता है। समूह सहयोग से। इसलिए आज पंच पर्व के आगाज पर हमें फिर से हृदय में प्रेम, सहयोग और उल्लास की त्रिवेणी बहाने का संकल्प करना चाहिए।

गंदे पत्रकार, BJP का एजेंट हो बेटा… ‘टोंटी चोर’ सुन भड़के अखिलेश यादव, नाम नूर काजी निकला तो कहने लगे- ऐसी भाषा होती है मुसलमानों की क्या? 

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इन दिनों मध्य प्रदेश में सपा उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने गुरुवार को पन्ना में सपा के प्रत्याशी महेन्द्र के समर्थन में जनसभा को सम्बोधित किया. इसी दौरान एक पत्रकार के सवाल में ‘टोंटी चोर’ शब्द सुनते ही वे भड़के गए। इतना ही नहीं उन्होंने पत्रकार को बीजेपी का एजेंट तक बता दिया. सवाल पूछने वाले को ‘गंदा पत्रकार और बेटा’ जैसे विशेषणों से नवाजने लगे।

लेकिन जब पत्रकार का नाम नूर काजी होना पता चला तो सपा सुप्रीमो को वोट बैंक की चिंता होने लगी। लिहाजा डैमेज कंट्रोल की कोशिश करते हुए ‘आप मुस्लिम हो, मुस्लिमों की भाषा ऐसी होती है’ जैसे वाक्यों पर आ गए। फिर पत्रकार की निंदा सामंतवाद, मनुवाद से लड़ाई पर आकर थमी।

दरअसल, पन्ना में एक पत्रकार ने उनसे सवाल किया कि योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आप टोंटी चोर हैं. इस पर अखिलेश यादव ने कहा, ‘तुम पत्रकार नहीं हो. तुम बीजेपी के एजेंट हो बेटा .. तुम्हारा नाम क्या है? इस पत्रकार की फोटो खींचो…’अखिलेश के सवाल पर पत्रकार ने कहा, ‘मेरा नाम नूर काजी है.’ अखिलेश ने इस पर कहा, ‘मुस्लिम हो आप. ऐसी भाषा होती है मुसलमानों की क्या? तुम तो बिके हुए हो.. तुम आगे से मत आना बेटा यहां.. पता नहीं तुम पत्रकार हो भी या नहीं.. जब मैंने सीएम आवास छोड़ा था तो बीजेपी ने इसे धुलवाया था.’

इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल है। घटना गुरुवार (9 नवंबर 2023) की है। अखिलेश यादव मध्य प्रदेश के पन्ना से सपा उम्मीदवार महेंद्र के समर्थन में जनसभा करने अजयगढ़ पहुँचे थे।

सपा ने आधिकारिक X हैंडल पर पोस्ट कर कहा है, “मध्य प्रदेश के अजयगढ़ में पन्ना विधानसभा की सभा में राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी की प्रेस वार्ता में पत्रकार के भेष में पहुँचा अपराधिक किस्म का संदिग्ध व्यक्ति। मध्य प्रदेश पुलिस जाँच करे और बताए ये अपराधी प्रेस वार्ता में कहाँ से आया?”

पुलिसकर्मियों पर भी निकाल चुके भड़ास

ये पहली बार नहीं है कि अखिलेश यादव ने भड़के हों। फरवरी 2022 में उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर खासा वायरल हुआ था। तब तिर्वा में उनकी जनसभा के दौरान कुछ सपा कार्यकर्ता बैरीकेडिंग तोड़कर मंच की तरफ बढ़ने लगे। ये देख पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोकने के लिए डंडा उठाया। इसी को लेकर अखिलेश यादव मंच से ही गुर्रा उठे, “ऐ… पुलिस, ऐ पुलिस वालों, क्यों कर रहे हो ये तमाशा।”

उन्होंने आगे कहा, “तुमसे ज्यादा बदतमीज कोई नहीं हो सकता, क्यों ऐसा कर रहे हो भाई? ये बीजेपी वाले करवा रहे हैं। ये लगता है बीजेपी वाले करवा रहे हैं। ये बीजेपी वालों ने रेड कार्ड इशू करवाए थे। एक जात के अधिकारी थे, जिन्होंने अन्याय किया था।”

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