Ahmedabad plane crash : अहमदाबाद में हुए विमान हादसे के बाद मृतकों के परिजनों की मदद के लिए तैनात किए गए मनोचिकित्सकों ने बताया कि कई लोग अपने परिवार के सदस्य की मौत की बात को स्वीकार ही नहीं कर पा रहे थे। मनोचिकित्सकों ने बताया कि उन्हें इन लोगों की मदद के लिए किन परिस्थितियों में काम करना पड़ा। उन्होंने कहा कि पत्नी की मौत से भावनात्मक रूप से टूट चुका एक व्यक्ति रो तक नहीं पा रहा था, क्योंकि उसने मौत को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। वहीं एक पिता अपने बेटे की पहचान के लिए डीएनए जांच कराने के लिए तैयार नहीं हुआ। चालक दल के एक सदस्य का परिवार डीएनए पुष्टि के लिए सात दिन तक इंतजार करने के कारण भावनात्मक रूप से टूट गया।
भरने के कुछ सेकंड बाद हो गया था क्रेश
मनोचिकित्सकों ने कहा कि यह सिलसिला 12 जून से जारी रहा, जब लंदन जाने वाला एअर इंडिया का विमान उड़ान भरने के कुछ सेकंड बाद भीड़भाड़ वाले बी जे मेडिकल कॉलेज परिसर में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था। दुर्घटना में विमान में सवार 241 लोग और मेडिकल कॉलेज के आसपास मौजूद 29 लोगों की मौत हो गई थी। केवल एक यात्री जिंदा बचा था। विमान हादसे ने शहर के लोगों को झकझोर कर रख दिया। कई लोगों के लिए, यह एक ऐसा अनुभव था जो उनकी कल्पना से कहीं अधिक कष्टदायक था। अफरातफरी के बीच, यहां बी जे मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभाग ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी थी।
पांच सीनियर रेजिटेंड और पांच परामर्शदाताओं की मनोचिकित्सक टीम को अस्पताल के कसौटी भवन, पोस्टमॉर्टम बिल्डिंग और सिविल अधीक्षक कार्यालय में चौबीस घंटे तैनात किया गया। उनका काम त्रासदी के बाद मानसिक आघात का सामना कर रहे परिवारों को सहारा देना है। बीजेएमसी की डीन और मनोचिकित्सा प्रमुख डॉ. मीनाक्षी पारीख ने कहा, दुर्घटना अकल्पनीय थी। यहां तक कि आसपास खड़े लोग भी परेशान थे। फिर किसी ऐसे व्यक्ति की क्या हालत होगी जिसने अपने प्रियजन को खो दिया हो?

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, अगर खबर सुनने वाले लोग इतने परेशान थे, तो हम उन लोगों के परिवार के सदस्यों की मनःस्थिति की कल्पना भी नहीं कर सकते जिन्होंने अपनी जान गंवाई है। दुर्घटना की भयावह तस्वीरें प्रसारित होने के साथ ही स्तब्ध, हताश, और उम्मीद लगाए परिवार के लोग घटनास्थल पर पहुंच गए। उन्होंने कहा कि एक अकेले जीवित बचे व्यक्ति का जिक्र सुनकर दिल की धड़कनें तेज हो गईं। कई लोगों ने बताया कि उन्हें लगा कि जिंदा बचा व्यक्ति उनका प्रियजन हो सकता है।
डॉक्टर पारीख ने कहा, इस बात को लेकर अनिश्चितता थी कि क्या कोई अपने खोए प्रियजनों की पहचान कर पाएगा और डीएनए नमूनों के मिलान के लिए तीन दिन तक प्रतीक्षा कर सकेगा। कुछ मामलों में, मृतक के किसी अन्य रिश्तेदार के नमूने लेने पड़े। डॉ. उर्विका पारीख ने घटना को याद करते हुए कहा, “लोग सच्चाई को मानने से पूरी तरह इनकार कर रहे थे। उन्होंने कहा, वे लगातार ताजा जानकारी मांगते रहे, इस बात पर जोर देते रहे कि उनके परिवार का सदस्य बच जाना चाहिए। उन्हें जानकारी देना अविश्वसनीय रूप से कठिन था। हमें किसी भी चीज से पहले मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करनी थी।
डॉ. पारीख ने कहा कि कई रिश्तेदारों की उम्मीदें एक अकेले जीवित बचे व्यक्ति की खबर पर टिकी हुई थीं, जिसके बारे में उन्हें लगा था कि वह उनका प्रियजन हो सकता है। उन्होंने कहा, हमें सच्चाई को मानने से लोगों के इनकार से निपटना पड़ा। उन्होंने कहा कि रिश्तेदार शुरू में काउंसलिंग नहीं चाहते थे क्योंकि वे जानकारी के अभाव से हताश और नाराज थे। उन्होंने कहा, “अपने प्रियजनों के शवों को देखे बिना सच्चाई को स्वीकार करना भी मुश्किल था। काउंसलिंग ने इस महत्वपूर्ण मोड़ पर उनकी मदद की।”
पारीख ने याद करते हुए बताया कि एक व्यक्ति चुप बैठा था, रोने या बात करने से इनकार कर रहा था, उसकी पत्नी की दुर्घटना में मौत हो गई थी। पारीख ने कहा, हमने तनाव कम करने में मदद करने के लिए उसे तत्काल दवा दी। आखिरकार उसने बोलना शुरू किया। उसने अपनी योजनाओं, अपनी यादों के बारे में बात की। हमने बीच में नहीं टोका – बोलने दिया और मौन व सहानुभूति के माध्यम से संवाद किया। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में सहानुभूतिपूर्वक सुनना ज्यादा जरूरी होता है।
पारीख ने कहा, हम उनके गुस्से और हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ जैसे सवालों को देख-सुन रहे थे। कई लोगों के लिए, सबसे असहनीय पल इंतजार करना था। डीएनए पुष्टि में आमतौर पर 72 घंटे तक का समय लग सकता है, कभी-कभी इससे भी ज्यादा। इस बीच अनिश्चितता के कारण दुख बढ़ता गया। कुछ रिश्तेदारों ने जोर देकर कहा कि वे खुद शवों की पहचान कर लेंगे। पारेख ने बताया, एक व्यक्ति का पिता लगातार यही कहता रहा कि उसे डीएनए टेस्ट की जरूरत नहीं है- वह अपने बेटे को उसकी आंखों से पहचान सकता है।
मनोचिकित्सक ने कहा, हमने धीरे-धीरे उसे शांत किया। अपने प्रियजनों को ऐसी स्थिति (जली हुई हालत) में देखना पीटीएसडी (पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) और अवसाद का कारण बन सकता है। पारीख आवासीय परिसर की एक इमारत में रहती हैं, जहां विमान उड़ान भरने के बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। उनकी इमारत को कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। एअर इंडिया विमान चालक दल के सदस्य के परिवार को डीएनए पुष्टि के लिए सात दिन तक इंतजार करना पड़ा। एक रिश्तेदार ने कहा, थकान, लाचारी ने हमें मानसिक रूप से तोड़ दिया। लेकिन काउंसलिंग से मदद मिली। यही एकमात्र सहारा थी।