Friday, November 15, 2024
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आदित्य L-1 ने ली पृथ्वी की खास तस्वीरें,इसरो ने जारी किया वीडिओ

बेंगलुरु। भारत मे मिशन मून की सफलता के बाद सूर्य पर उड़ान के लिए अपना पहला सूर्य यान आदित्य-एल1 को लॉन्च किया. सूर्ययान को अपने अंतिम गंतव्य तक पहुंचने में लगभग चार महीने का समय लगेगा. सूर्ययान ने इस लंबी यात्रा में अब तक पृथ्वी की ओर जाने वाली दो गतिविधियों को पूरा किया है, साथ ही सूर्ययान ने पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए कुछ बेहतरीन तस्वीरें ली हैं. इसरो ने इन तस्वीरों का वीडियो शेयर किया है.

बेंगलुरु कार्यालय से इसरो ने इन तस्वीरों को जारी करते लिखा कि ये तस्वीरें पहली बार आदित्य-एल1 द्वारा ली गई, कहा: “आदित्य-एल1, जो सूर्य-पृथ्वी एल1 बिंदु के लिए नियत है, पृथ्वी और चंद्रमा की एक सेल्फी और तस्वीरें लेता है।” L1 – पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर – सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज पॉइंट -1 को संदर्भित करता है. सामान्य समझ के लिए, L1 अंतरिक्ष में एक स्थान है जहां सूर्य और पृथ्वी जैसे दो खगोलीय पिंडों के गुरुत्वाकर्षण बल संतुलन में हैं. यह वहां रखी वस्तु को दोनों खगोलीय पिंडों के संबंध में अपेक्षाकृत स्थिर रहने की अनुमति देता है.

आदित्य एल-1 को 2 सितंबर को PSLV-C-57 से लॉन्च किया गया था, वर्तमान में अपने पृथ्वी-बाउंड चरण में है, जिसकी अवधि लॉन्च दिवस से 16 दिनों के लिए है. मंगलवार की सुबह, इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (इस्ट्रैक) के वैज्ञानिकों ने आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान के दूसरे पृथ्वी-संबंधित पैंतरेबाज़ी को सफलतापूर्वक लागू किया. प्राप्त की गई नई कक्षा 282 किमी x 40,225 किमी है. इस ऑपरेशन के दौरान मॉरीशस, बेंगलुरु और पोर्ट ब्लेयर में इस्ट्रैक/इसरो ग्राउंड स्टेशनों ने उपग्रह को ट्रैक किया। पृथ्वी से जुड़े पांच युद्धाभ्यासों में से तीसरा 10 सितंबर को सुबह 2.30 बजे के लिए निर्धारित है।

आदित्य एल-1 ने पृथ्वी-संबंधी पैंतरेबाज़ी पूरी

आदित्य एल -1 ने इससे पहले 3 सितंबर रविवार को  अपनी पहली पृथ्वी-संबंधी पैंतरेबाज़ी पूरी की थी इसके साथ ही आदित्य एल-1 अंतरिक्ष यान को 245 किमी x 22,459 किमी की कक्षा में स्थापित किया था. आदित्य-एल1 सूर्य के व्यापक अध्ययन के लिए भारत द्वारा भेजा गया. यह अंतरिक्ष यान लगभग 4 महीनें की समय लेते हुए करीबल 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय करेगा.  इस अंतरिक्षा यान में सात अलग-अलग पेलोड हैं – पांच इसरो द्वारा और दो इसरो के सहयोग से शैक्षणिक संस्थानों द्वारा – स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं.

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