नई दिल्ली। उद्योगपति गौतम अडानी और हिंडनबर्ग मामले की जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने सभी पक्षों को 27 नवंबर तक लिखित दलीलें जमा करवाने को कहा। सुनवाई के दौरान इस बात पर भी चर्चा हुई कि भविष्य के लिए शेयर बाजार का कामकाज कैसे बेहतर बनाया जा सकता है। सुनवाई में याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे वकील प्रशांत भूषण ने मांग की कि अडानी के शेयर में हुए निवेश की जांच हो। यह भी देखा जाए कि किसे क्या फायदा मिला। वहीं सेबी ने कहा कि उसने सभी पहलुओं की जांच पहले ही कर ली है। वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई कमेटी को लेकर कई सवाल उठाए।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट में पेश होने वाले कुछ लोग बाहर की संस्थाओं को अपनी रिपोर्ट भेजकर उसे उनके जरिए छपवाते हैं और फिर उसके आधार पर कोर्ट में आरोप लगाते हैं। उनका सीधा इशारा वकील प्रशांत भूषण पर था, हालांकि उन्होंने सीधे नाम नहीं लिया। उन्होंने बताया कि सेबी ने कोर्ट की तरफ से तय समय सीमा में जांच पूरी की। इस कारण अवमानना का मामला भी नहीं बनता। याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने अवमानना की कार्रवाई की मांग की थी तो उसे लेकर मेहता ने जवाब दिया। प्रशांत भूषण ने कहा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में कई बातें बोली गईं। इसको लेकर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम हिंडनबर्ग रिपोर्ट की हर बात को शाश्वत सत्य नहीं मान सकते। तभी सेबी को जांच के लिए कहा। इसके जवाब में भूषण ने कहा कि सेबी ने सही जांच नहीं की।
उन्होंने कहा कि पैसे गलत तरीके से दुबई और मॉरीशस भेजा और फिर उन्हीं पैसों को वापस अडानी के शेयर में निवेश किया गया। सेबी ने इन पहलुओं की जांच ही नहीं की। इस पर जज ने कहा कि अगर पैसे गलत तरीके से बाहर गए तो क्या यह सेबी की बजाय डीआरआई के जांच का विषय नहीं है।
मेहता ने कहा कि किधर से भी चुनिंदा सामग्री उठाकर कोर्ट में रखने की बजाय थोड़ी मेहनत करनी चाहिए। सेबी ने डीआरआई को सूचना दी थी। डीआरआई ने 2017 में जांच पूरी कर ली थी। इसपर सीजेआई ने कहा कि भूषण बिना उचित कारण के किसी का चरित्र हनन नहीं होना चाहिए। आप ठोस बात बताइए तो हम ज़रूरी निर्देश दे सकते हैं। भूषण इस समय सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई कमेटी के 2 सदस्यों (ओपी भट्ट और सोमशेखर सुंदरेशन) पर अडानी समूह के करीबी होने का आरोप लगा रहे हैं। कोर्ट ने भूषण से सवाल किया कि हमने कमेटी कब बनाई और आपने आपत्ति कब की?
मेहता ने बताया कि कमेटी 2 मार्च को बनी थी। उसने मई में रिपोर्ट दी। भूषण ने सितंबर में कमेटी के 2 सदस्यों का विरोध करते हुए हलफनामा दाखिल किया। इसको लेकर सीजेआई ने कहा कि इस तरह तो हमें सिर्फ रिटायर्ड जजों की कमेटी बनानी चाहिए थी। एक वकील (सोमशेखर) कभी किसी मामले में (अडानी ग्रुप) के लिए पेश हुआ था, क्या यह उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाने का जरिया बन सकता है? मेहता ने कहा कि यह गैर-जिम्मेदाराना है। उन्होंने भूषण का नाम लेकर कहा कि इन्होंने अंतरराष्ट्रीय एनजीओ से एक रिपोर्ट देकर छपवाई और उसी के आधार पर कोर्ट में आरोप लगाए।
उन्होंने कहा कि इन्हें बताना चाहिए था कि जिस रिपोर्ट के आधार पर इनके क्लाइंट कोर्ट में दावा कर रहे हैं, उसे इन्होंने ही तैयार करवाया था। इस तरह के (भूषण जैसे) लोग जनहित का दावा करते हुए कोर्ट आते हैं। क्या इन्हें सुना जाना चाहिए?
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ क्या बोले?
भूषण ने कहा कि कमेटी का गठन नए सिरे से होना चाहिए। इसके जवाब में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बिना किसी ठोस आधार के आप यह मांग कैसे कर सकते हैं? सेबी एक वैधानिक संस्था है जो मार्किट का नियमन करती है। बिना किसी ठोस आधार के हम सेबी पर अविश्वास नहीं कर सकते। फिर भूषण ने कहा कि हिंडनबर्ग के अलावा गार्जियन, फाइनेंसियल टाइम्स जैसे मीडिया ने जानकारियां छापीं। यह आपस में मेल खाती हैं। चंद्रचूड़ ने इसको लेकर कहा कि सेबी जैसी वैधानिक संस्था किसी पत्रकार की लिखी बात को शाश्वत सत्य नहीं मान सकती। सीजेआई ने कहा कि आप बताइए कि आपके हिसाब से किन पहलुओं की जांच की ज़रूरत है। हम इस पर विचार करेंगे। भूषण ने कहा कि अडानी से जुड़े लोगों को पैसे भेज कर वापस निवेश करवाया गया। इस तरह अपनी कंपनी के स्टॉक रखने की सीमा का उल्लंघन किया गया। इसकी जांच हो। मेहता ने इसके जवाब में दलील दी कि सेबी ने जो 22 जांचें की हैं, उसमें यह शामिल है।