Saturday, July 6, 2024
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शाह के दूतों ने भाजपाइयों की नब्ज टटोली तो उखड़ी सांसें ज्यादा मिलीं!

भाजपा में सब ठीक नहीं : पार्टी ने 200 विधानसभा सीटों पर गुटबाजी और अंतर्कलह को भांपा

इनपुट- प्रकाश चंद कुमावत

जयपुर। प्रदेश में सत्ता वापसी और डबल इंजन की सरकार बनाने का सपना देख रही भाजपा के अंदर गुटबाजी और अंतर्कलह किस कदर हावी है, ये 200 विधानसभा सीटों की थाह लेने आए पार्टी के अन्य प्रदेशों के विधायकों के सामने खुलकर आ गया। धरातल पर हालात इतने संगीन मिलेंगे ये केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोचा नहीं होगा। दरअसल, विधानसभा चुनाव से पूर्व शाह ने प्रदेश में अपने 200 दूतों को सभी विधानसभाओं की नब्ज टटोलने के लिए भेजा। ये काम पूरा करने के बाद सबने पाया कि सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष आसान नहीं होगा और घर के अंदरूनी खाके को दुरुस्त करना होगा।

ऐसी गणित बताई, घूम गया सिर

प्रवासी विधायकों ने मंडलों की बैठकें बुलाईं और दावेदारों ने उनके सामाजिक आंकड़े पूछे तो उन्होंने बढ़ा-चढ़ाकर बता दिया। एससी आरक्षित सीट बगरू में यूपी के विधायक सुलभमणि त्रिपाठी को एक दावेदार ने अपनी जाति की संख्या 65 हजार बताई तो दूसरे ने 29 हजार। दावेदारों के बायोडाटा में दर्ज संख्या को यदि जोड़ा जाए तो यह उतनी है, जितने विधानसभा में सभी वर्गों के वोटर हैं। ऐसे में उनका सिर घूम गया, लेकिन जातिगत आंकड़े का सच पता नहीं चला।

यूं सामने आई कलह और गुटबाजी

जयपुर के विद्याधर नगर में आगरा से आए विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल ज्यादातर समय विधायक नरपतसिंह राजवी और उनके समर्थकों के साथ रहे। वहीं, नाराज कार्यकर्ताओं को केवल एक घंटे का समय दिया। 15 से अधिक जनप्रतिनिधि, 5 पूर्व पार्षद, पूर्व मंडल पदाधिकारी उनसे मिले और नाराजगी जताते हुए राजवी को टिकट नहीं देने की मांग की। क्षेत्र के भयावह हालात बताए। बगरू विधानसभा में दावेदारों ने दूत को बताया कि सच बताने के बावजूद पिछली बार विधायक को टिकट दे दिया। नाराज लोगों ने भाजपा के बजाय नोटा में वोट डाला। इसी तरह से झोटवाड़ा, सांगानेर, हवामहल, किशनपोल, मालवीय नगर, चौमूं में भी कार्यकर्ताओं में गुटबाजी तथा विधायक और दावेदारों के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी सामने आई। ऐसे हालात ज्यादातर सीटों पर मिले।

खुद भी आरोपों से घिरे दूत

अपनी कार्यशैली को लेकर शाह के दूत खुद भी कई आरोपों से घिर गए। ज्यादातर दूत स्थानीय विधायकों अथवा प्रबल दावेदारों के साथ घूमते रहे। उनकी मर्जी के लोगों से मिले। खूब आवभगत करवाई। वहीं, पार्टी के नाराज कार्यकर्ता उनको ढूंढते रहे। वे मिले तो उनकी बात सुनकर ठंडे छींटें दे दिए। जबकि उन्हें खुद नाराज कार्यकर्ताओं से संपर्क करना था। संबंधित विधानसभा में रहने वाले वरिष्ठ कार्यकर्ता, संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी, पूर्व मंडल पदाधिकारी व जनप्रतिनिधियों, समाज, स्वयंसेवी, सामाजिक व शैक्षणिक संस्थाओं के प्रमुखों से मिलकर जमीनी फीडबैक लेना था। हालांकि दूतों ने अपना काम बखूबी किया, लेकिन इस दौरान आरोपों से भी घिर गए।

बगावत पर मौन, जीत के दावे 

चाकसू पहुंचे मथुरा विधायक पूरण प्रकाश ने बताया कि यहां दावेदारों की संख्या 30 से 50 के बीच है। जब गुटबाजी पर सवाल पूछा तो चुप्पी साध गए। एक को टिकट मिलने पर बाकी के बागी होने की आशंका पर पूछा तो माननीय उत्साह में बोले- पिछला चुनाव 3 हजार से हारे थे, इस बार 30 हजार से जीतेंगे। चौमूं गई उत्तर प्रदेश की पूर्व मंत्री अनुपमा ने भी गुटबाजी, बगावत जैसे प्रश्नों के जवाब देने के बजाय कहा कि ये तो सर्वाधिक मतों से जीतने वाली सीट होगी। हवामहल गए मुरादाबाद विधायक रितेश गुप्ता ने बताया, यहां जनता में कांग्रेस विधायक व सरकार के खिलाफ जबरदस्त विरोध है। हमारा प्रत्याशी हर हाल में जीतेगा। जबकि सच तो यह है कि पूर्व मंत्री रहे दिवंगत भंवरलाल शर्मा जब तक जिंदा रहे, कांग्रेस लहर में भी जीते। लेकिन उनके बाद दो बार भाजपा यहां हार गई।

ये दिया था टास्क

विधायक या प्रत्याशी की छवि कैसी है, कार्यकर्ताओं व आमजन से जुड़ाव कैसा है। कार्यकर्ताओं की नाराजगी या गुटबाजी तो नहीं है। गुटबाजी या नाराजगी पर लगाम कैसे लगाई जा सकती है।

मोदी सरकार की योजनाओं का प्रचार प्रसार कैसा है। विधायक ने कितनी रुचि लेकर अपने क्षेत्र में अभियान चलाया है। संगठन के कार्यक्रमों में विधायक, मंडल व वार्ड कार्यकारिणी का सहयोग कैसा रहा है। 

हर बूथ पर पन्ना व पेज प्रमुख बने है या नहीं

प्रमुख दावेदार कौन है, उनकी जीत की स्थिति कैसी है। दमदार निर्दलीय कौन है, जिसे टिकट देकर चुनाव लड़ाया जा सकता है। कांग्रेस के मजबूत दावेदारों में ऐसे कौन हैं जो टिकट नहीं मिलने पर बागी हो सकते हैं। उनके संपर्क व सबसे विश्वनीय कौन हैं?

क्षेत्र के पूर्व जनप्रतिनिधि, पूर्व पदाधिकारी, वरिष्ठ कार्यकर्ता, आरएसएस के जिम्मेदार पदाधिकारी, विधानसभा में बाहुल्य वाले समाजों के प्रमुखों, मंदिरों के महंत, धर्मगुरु, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक संगठनों के प्रमुख प्रतिनिधियों से बातचीत करके भाजपा की जीत की स्थिति का पता लगाना और प्रमुख मुद्दे व समस्याओं की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करना।

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