Saturday, April 19, 2025
HomeNational Newsधार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार, राष्ट्रपति को सलाह देने...

धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार, राष्ट्रपति को सलाह देने वाले कानून बनाने लगे तो संसद बंद कर दें : भाजपा सांसद दुबे

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने का विवाद बढ़ता जा रहा है। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बाद भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी इस पर ऐतराज जताया। सांसद ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। ऐसे में आप यानी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया किसी अपॉइंटिंग अथॉरिटी को निर्देश कैसे दे सकते हैं? उन्होंने कहा कि संसद इस देश का कानून बनाती है। क्या आप उस संसद को निर्देश देंगे? देश में गृह युद्ध के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं। वहीं धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार हैं।

उन्होंने कहा कि कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है। अगर हर किसी को सारे मामलों के लिए सर्वोच्च अदालत जाना पड़े तो संसद और विधानसभा बंद कर देनी चाहिए। मामला तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। वहीं बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सामने आया था।

धारा 377, आईटी एक्ट और मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए

  • आर्टिकल 377: एक आर्टिकल 377 था, जिसमें समलैंगिकता एक अपराध था। अमेरिका में ट्रम्प सरकार ने कहा कि दुनिया में केवल दो ही लिंग है, एक- पुरुष, दूसरा- महिला। तीसरे की कोई जगह नहीं है। जितने भी धर्म हैं, चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो, जैन हो, सिख हो, ईसाई हो। सभी मानते हैं कि समलैंगिकता एक अपराध है। सुप्रीम कोर्ट एक सुबह उठती है वे कहते हैं कि हम यह आर्टिकल खत्म करते हैं। हमने आईटी एक्ट बनाया। जिसके तहत महिलाओं और बच्चों के पोर्न पर लगाम लगाने का काम किया गया। एक दिन सुप्रीम कोर्ट कहता है कि वे 66A आईटी एक्ट को खत्म कर रहे हैं।
  • आर्टिकल 141: मैंने आर्टिकल 141 का अध्ययन किया है। यह आर्टिकल कहता है कि हम जो कानून बनाते हैं वो लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लागू होता है। आर्टिकल 368 कहता है कि इस देश की संसद को कानून बनाने का अधिकार है और इसकी व्याख्या करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को है।
  • मंदिर-मस्जिद विवाद: हमारे देश में सनातन की परंपरा रही है। लाखों साल की परंपरा है। जब राम मंदिर का विषय आता है तो आप कहते हैं कि कागज दिखाओ। कृष्णजन्मभूमि का मामला आएगा तो कहेंगे कि कागज दिखाओ। यही बात ज्ञानवापी केस में कहेंगे। इस देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है।
**EDS: VIDEO GRAB VIA SANSAD TV** New Delhi: Rajya Sabha Chairman Jagdeep Dhankhar conducts proceedings in the House during the Winter session of Parliament, in New Delhi, Wednesday, Dec. 11, 2024. (PTI Photo)(PTI12_11_2024_000047B)

धनखड़ बोले- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 17 अप्रैल को राज्यसभा इंटर्न के एक ग्रुप को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी। धनखड़ ने कहा था, अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।

Kapil Sibbal on National Herald Case
Image: PTI

सिब्बल बोले- भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कि जब कार्यपालिका काम नहीं करेगी तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा। भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया है। राष्ट्रपति-राज्यपाल को सरकारों की सलाह पर काम करना होता है। मैं उपराष्ट्रपति की बात सुनकर हैरान हूं, दुखी भी हूं। उन्हें किसी पार्टी की तरफदारी करने वाली बात नहीं करनी चाहिए। सिब्बल ने 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा- ‘लोगों को याद होगा जब इंदिरा गांधी के चुनाव को लेकर फैसला आया था, तब केवल एक जज, जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला सुनाया था। उस वक्त इंदिरा को सांसदी गंवानी पड़ी थी। तब धनखड़ जी को यह मंजूर था। लेकिन अब सरकार के खिलाफ दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

Kishtwar: BJP supporters during a public meeting of Union Home Minister Amit Shah ahead of J&K Assembly elections, in Kishtwar district, Jammu & Kashmir, Monday, Sept. 16, 2024. (PTI Photo)(PTI09_16_2024_000099B)

विवाद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शुरू हुआ

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की सीमा तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था। इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments