Thursday, August 7, 2025
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अमेरिका और रूस के बीच अब एकमात्र परमाणु हथियार नियंत्रण संधि कायम, दुनिया फिर हथियारों की दौड़ की कगार पर!

अमेरिका और रूस के बीच अब केवल ‘न्यू स्टार्ट’ परमाणु हथियार नियंत्रण संधि बची है, जो 2026 में समाप्त हो जाएगी। इससे पहले INF, SALT, START जैसे कई समझौते खत्म हो चुके हैं। विशेषज्ञों को चिंता है कि संधियों के खत्म होने से परमाणु हथियारों की नई दौड़ शुरू हो सकती है। रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन का उदय और अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं में बदलाव इस असंतुलन को और बढ़ा सकते हैं।

वाशिंगटन। पिछले कई दशकों तक अमेरिका और सोवियत संघ (अब रूस) के बीच परमाणु संघर्ष की आशंका रही और क्यूबा मिसाइल संकट जैसे कुछ मौकों पर यह तनाव खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। अमेरिकी और सोवियत नेताओं ने 1970 के दशक से तनाव कम करने की दिशा में कदम उठाए, जिनके चलते कई अहम समझौते हुए। इनमें वर्ष 1987 की मध्यम दूरी के परमाणु बल (आईएनएफ) संधि भी शामिल है, जिसके तहत परमाणु क्षमता वाली मिसाइलों की एक पूरी श्रेणी को ही समाप्त कर दिया गया था। यह संधि वर्ष 2019 में समाप्त हो गई जब अमेरिका ने इससे बाहर होने का निर्णय लिया। अब मंगलवार को रूस ने भी इस संधि के तहत अपने ऊपर लगाए गए स्वैच्छिक प्रतिबंधों को समाप्त करने की घोषणा कर दी।

अब अमेरिका और रूस के बीच केवल एक परमाणु हथियार नियंत्रण समझौता ‘न्यू स्टार्ट’ ही बचा है, जिसे विशेषज्ञ संकटग्रस्त मान रहे हैं और जो फरवरी 2026 में स्वतः समाप्त होने वाला है। परमाणु हथियार नियंत्रण मामलों के विशेषज्ञ अलेक्जेंडर बॉलफ्रास, ने कहा, जरूरी नहीं कि अमेरिका और रूस के बीच परमाणु समझौतों का अंत परमाणु युद्ध की संभावना को बढ़ा दे, लेकिन यह निश्चित रूप से इसे कम भी नहीं करता। बॉलफ्रास अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक अध्ययन संस्थान (आईआईएसएस) से जुड़े हैं। दोनों देश अब भी बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार संधियों के पक्षकार हैं, लेकिन आपसी संबंधों में बढ़ती अनिश्चितता और समझौतों की घटती संख्या को लेकर वैश्विक चिंता गहराती जा रही है।

बुधवार को जब अमेरिका द्वारा जापानी शहर हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने की 80वीं बरसी मनाई गई, तब उस त्रासदी में जीवित बचे लोगों ने विश्व नेताओं द्वारा परमाणु हथियारों को निवारक शक्ति के रूप में समर्थन दिए जाने पर निराशा और चिंता व्यक्त की। अमेरिका और रूस के पास अब भी सर्वाधिक परमाणु हथियार हैं। ‘फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स’ (एफएएस) के अनुसार, 1986 में सोवियत संघ के पास 40,000 से अधिक परमाणु वारहेड थे, जबकि अमेरिका के पास 20,000 से ज्यादा। परमाणु हथियार नियंत्रण संधियों की एक श्रृंखला के चलते इन जखीरों में उल्लेखनीय कमी आई। एफएएस ने मार्च 2025 में अनुमान लगाया कि रूस के पास कुल 5,459 परमाणु आयुध (तैनात और गैर-तैनात) हैं, जबकि अमेरिका के पास इनकी संख्या 5,177 है।

अमेरिका और रूस के पास दुनिया के 87% परमाणु हथियार

दोनों देशों के पास कुल मिलाकर आज भी दुनिया के 87 प्रतिशत परमाणु हथियार हैं। अमेरिका और रूस (पूर्व में सोवियत संघ) ने बीते कई दशकों में परमाणु हथियारों की दौड़ पर नियंत्रण के लिए कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इनका उद्देश्य पारस्परिक भरोसे को बढ़ाना और वैश्विक परमाणु खतरे को कम करना रहा है। मई 1972 में, क्यूबा मिसाइल संकट के एक दशक बाद, दोनों देशों ने पहले महत्वपूर्ण समझौते ‘स्ट्रैटेजिक आर्म्स लिमिटेशन टॉक्स-1’ (एसएएलटी 1) पर हस्ताक्षर किये। इस संधि के तहत परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलों, बमवर्षक विमानों और पनडुब्बियों की संख्या पर पहली बार सीमा निर्धारित की गई। उसी वर्ष, अमेरिका और सोवियत संघ ने ‘एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल (एबीएम) संधि’ पर भी हस्ताक्षर किए, जो परमाणु हमले से सुरक्षा देने वाली मिसाइल रक्षा प्रणालियों पर प्रतिबंध लगाती थी। इसके बाद 1987 में, सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव और अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने आईएनएफ संधि (इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज़ ट्रीटी) पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत 500 से 5,500 किलोमीटर की दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों पर प्रतिबंध लगाया गया।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान इस संधि से अमेरिका को बाहर कर लिया। उन्होंने दावा किया कि रूस इस संधि के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है। रूस ने इस दावे को नकार दिया। ट्रंप प्रशासन ने यह भी कहा था कि चीन और ईरान जैसे देश इस संधि का हिस्सा नहीं थे, लेकिन उनके पास 1,000 से अधिक आईएनएफ रेंज की मिसाइलें हैं, जिसे देखते हुए अमेरिका रणनीतिक रूप से नुकसान की स्थिति में था। रूस ने प्रारंभ में इस संधि के प्रावधानों का पालन करने की बात कही थी, लेकिन मंगलवार को उसने अपने इस संकल्प को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया। इससे पहले भी, रूस ने नवंबर में यूक्रेन पर ‘ओरेश्निक’ हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया था, जो एक नई मध्यम दूरी की मिसाइल प्रणाली है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि इस प्रकार की मिसाइलें इस वर्ष के अंत तक बेलारूस में तैनात की जाएंगी, जो रूस का पड़ोसी और सहयोगी देश है।

इसी बीच, 1991 में स्टार्ट प्रथम (स्ट्रैटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी) पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके तहत अमेरिका और रूस दोनों ने अपनी रणनीतिक परमाणु क्षमताओं में कटौती की थी जिसमें मिसाइलें, पनडुब्बियां और बमवर्षक शामिल हैं। यह संधि अब समाप्त हो चुकी है। इसके बाद स्टार्ट द्वितीय संधि पर भी हस्ताक्षर हुए, लेकिन यह कभी प्रभाव में नहीं आ सकी। सितंबर 11, 2001 के आतंकी हमलों के बाद अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताओं में बड़ा बदलाव आया। तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने 2002 में ‘एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल संधि’ से अमेरिका को बाहर निकाला। उन्होंने तर्क दिया कि यह संधि ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों से संभावित हमलों के विरुद्ध अमेरिका की रक्षा क्षमताओं को सीमित करती है।

अमेरिका के फैसले का रूस ने किया था विरोध

रूस ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया और आशंका जताई कि इससे अमेरिका ऐसी मिसाइल रक्षा प्रणाली विकसित कर सकेगा, जो रूसी परमाणु निवारक क्षमता को अप्रभावी बना देगी। इसके बाद भी, दोनों देशों के बीच एकमात्र प्रमुख द्विपक्षीय संधि ‘न्यू स्टार्ट’ बची रही, जिस पर अप्रैल 2010 में हस्ताक्षर हुए थे। इस संधि के तहत दोनों देशों के तैनात परमाणु हथियारों और प्रक्षेपास्त्रों की संख्या को सीमित किया गया, और स्थल-निरीक्षण जैसे अनुपालन तंत्र स्थापित किए गए। हालांकि, ब्रिटेन स्थित रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट (आरयूएसआई) के सैन्य मामलों के वरिष्ठ विशेषज्ञ सिद्धार्थ कौशल ने कहा है कि अब यह संधि ‘‘व्यवहारिक रूप से मृत’’ हो चुकी है।

यह संधि 5 फरवरी, 2026 को समाप्त होने वाली है, लेकिन इससे पहले ही रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण के बाद इसमें अपनी भागीदारी स्थगित कर दी, जिससे रूसी परमाणु ठिकानों की स्थल-निरीक्षण प्रक्रिया रुक गई। हालांकि, मॉस्को ने कहा है कि वह अभी भी अपने परमाणु हथियारों पर इस संधि द्वारा तय सीमा का पालन करता रहेगा। परमाणु हथियार नियंत्रण विशेषज्ञ अलेक्जेंडर बॉलफ्रास के अनुसार, विशेष रूप से आईएनएफ और न्यू स्टार्ट संधियों ने यूरोप में तनाव कम करने के लिए समझौते किए। लेकिन इन समझौतों के समाप्त होने से पुराने शीत युद्ध विरोधियों के बीच तनाव बढ़ने की आशंका है। साथ ही, विशेषज्ञों का कहना है कि यह घटनाक्रम मध्यम दूरी की पारंपरिक मिसाइलों (गैर परमाणु) की बढ़ती वैश्विक दिलचस्पी को भी दर्शाता है। अमेरिका ऐसी मिसाइलों को यूरोप और प्रशांत क्षेत्र में तैनात करने की योजना बना रहा है। हाल के इज़राइल-ईरान संघर्ष में भी इन मिसाइलों का इस्तेमाल देखने को मिला।

आरयूएसआई के सिद्धार्थ कौशल ने कहा कि अमेरिका और रूस के बीच निकट भविष्य में किसी नई परमाणु हथियार नियंत्रण संधि की संभावना बेहद कम है, क्योंकि ऐसा समझौता करने और उस पर अमल करने के लिए जो आपसी विश्वास जरूरी है, वह वर्तमान में मौजूद नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका अब अपनी रणनीतिक निगाहें रूस के बजाय अन्य खतरों, विशेषकर चीन पर केंद्रित कर रहा है। बुश और ट्रंप प्रशासन दोनों ने अपने समय में रूस से संधियों से हटने का एक कारण यह भी बताया था कि उन संधियों में अन्य देशों — जैसे चीन — पर कोई सीमा नहीं लगाई गई थी।

अब जबकि चीन परमाणु शक्ति के रूप में अमेरिका और रूस के समकक्ष बनता जा रहा है, यह एक प्रतिस्पर्धात्मक हथियारों की दौड़ को जन्म दे सकता है। कौशल के अनुसार, अमेरिका इस खतरे के मद्देनजर परमाणु और पारंपरिक हथियारों दोनों में वृद्धि कर सकता है, जिससे रूस भी अपने जखीरे बढ़ाने को प्रेरित हो सकता है। शीत युद्ध की संधियां भले समाप्त हो रही हों, लेकिन शीत युद्ध की सोच बनी रह सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि “परस्पर सुनिश्चित विनाश” की अवधारणा अब भी परमाणु शक्तियों को संयम बरतने के लिए विवश कर सकती है।

Mukesh Kumar
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