Vice Presidential Election 2025: उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए ने बाजी मार ली है। इंडिया ब्लॉक के बी. सुदर्शन रेड्डी को मात देकर एनडीए प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन देश के 15वें राष्ट्रपति बन गए हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में इतनी सख्ती क्यों बरती जाती है। जैसे उपराष्ट्रपति चुनाव में एक विशेष स्याही का इस्तेमाल किया जाता है। इसी स्याही वाली पेन से सांसद वोट कर सकते हैं। लोकसभा की पूर्व महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव ने इसे लेकर पूरी जानकारी दी है। आइए जानते हैं कि उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग का पूरा प्रोसेस क्या होता है?
इस खास पेन से डाले जाते हैं वोट
उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान के लिए सांसदों को एक विशेष पेन दिया जाता है। इस पेन की स्याही खास तरह की होती है, जो वोट की गोपनीयता बनाए रखने में मदद करती है। सभी सांसद एक जैसे पेन और इंक से निशान लगाते हैं, जिससे यह पता नहीं चल पाता कि किसने किसे वोट दिया। चुनाव आयोग की ओर से इस पेन का इस्तेमाल अनिवार्य किया गया है और यदि कोई सांसद इसका उपयोग नहीं करता, तो उसका वोट अमान्य हो जाता है। 2017 में पहली बार राष्ट्रपति चुनाव के दौरान इस स्पेशल पेन का इस्तेमाल हुआ था। इसकी स्याही की खासियत है कि इसे मिटाया नहीं जा सकता, और निशान लगाते वक्त यह फैलती भी नहीं है। वोट डालने के बाद सांसदों से यह पेन वापस ले लिया जाता है, ताकि मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता और गोपनीयता बनी रहे।

उपराष्ट्रपति चुनाव में कौन डालता है वोट?
उपराष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सभी सदस्य मतदान करने के हकदार होते हैं। इसका मतलब है कि जिस गठबंधन का दोनों सदनों में बहुमत होता है, आमतौर पर वही बाज़ी मार लेता है। अक्सर सत्ताधारी दल के समर्थन से खड़ा उम्मीदवार ही जीत हासिल करता है। इस बार चुनाव में 781 सांसद वोट डालेंगे, जबकि जीत के लिए 352 वोट जरूरी हैं। मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से एनडीए की स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है। खास बात यह है कि इस चुनाव में व्हिप जारी नहीं होता। यानी सांसद अपनी पार्टी की लाइन से बंधे नहीं होते और अपनी व्यक्तिगत मर्जी से वोट कर सकते हैं। यही वजह है कि उपराष्ट्रपति चुनाव को कई बार बेहद दिलचस्प बना देता है।
उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग कैसे होती है?
उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान की प्रक्रिया सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम से होती है। इस सिस्टम में सांसदों को सिर्फ वोट डालना ही नहीं होता, बल्कि अपनी वरीयता (प्राथमिकता) भी बतानी पड़ती है। यानी वे जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक पसंद करते हैं, उसका नाम पहली वरीयता में लिखते हैं और उसके बाद अपनी दूसरी पसंद का जिक्र करते हैं।
गिनती की प्रक्रिया में सबसे पहले पहली प्राथमिकता वाले वोटों की ही जांच की जाती है। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत मिल जाता है, तो वह सीधे विजेता घोषित हो जाता है। लेकिन अगर बहुमत नहीं मिलता, तो दूसरी वरीयता के वोटों को जोड़ा जाता है और उसके आधार पर अंतिम नतीजा तय किया जाता है।
उपराष्ट्रपति चुनाव में वोटों की गिनती कैसे होती है?
मतदान पूरा होने के बाद सबसे पहले बैलेट पेपर से पर्चियां निकाली जाती हैं और उन्हें सांसदों द्वारा दी गई वरीयता (प्राथमिकता) के आधार पर अलग किया जाता है। सबसे पहले यह देखा जाता है कि किस उम्मीदवार को पहली वरीयता वाले कितने वोट मिले। इसके बाद एक खास फॉर्मूला लागू होता है—कुल पहली वरीयता वाले वोटों को 2 से भाग देकर उसमें 1 जोड़ा जाता है। जो संख्या मिलती है, उतने वोट किसी भी उम्मीदवार के पास होना जरूरी है। इससे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार काउंटिंग से बाहर कर दिए जाते हैं।
अक्सर पहली गिनती के बाद ही परिणाम साफ हो जाता है, लेकिन अगर बहुमत नहीं बनता तो दूसरी वरीयता वाले वोटों की गिनती होती है। इसी आधार पर अंतिम जीत-हार तय की जाती है। जीतने वाला उम्मीदवार फिर राष्ट्रपति या उनके प्रतिनिधि के सामने शपथ लेता है और औपचारिक रूप से उपराष्ट्रपति पद संभालता है।