दिल्ली। मंगलवार को संसद के विशेष सत्र की कार्यवाही का दूसरा दिन था. इस दिन पीएम मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, विपक्ष के नेता खरगे, कांग्रेस पार्टी की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, सासंद राहुल गांधी सहित दोनो सदनो के सभी सदस्यो ने संसद की नए भवन में प्रवेश किया. संसद की कार्यवाही दोपहर 1 बजकर 15 मिनिट पर राष्ट्रगान के साथ शुरु हुई. लोकसभा स्पीकर ने सभी सदस्यों को गणेश चतुर्थी की शुभकामना दी. इसके बाद पीएम मोदी का संबोधन हुआ. सत्र की दूसरे दिन की पीएम मोदी ने बताया कि कैबिनेट की बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी मिल गई है. लोकसभा में महिला आरक्षण बिल को पेश कर दिया गया है. इस बिल का नाम “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” रखा गया है.
क्या है महिला आरक्षण बिल की कहानी
महिला आरक्षण बिल की कहानी काफी समय से चली आ रही है वर्ष 1996 से ही महिला आरक्षण बिल अधर में लटका हुआ है. 1996 में तत्कालीन सरकार के मुखिया एचडी देवगौड़ा ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था. इस बिल को संविधान के 81वें संशोधन विधेयक के रूप में पेश किया था. लेकिन उस वक्त बिल पास नहीं हुआ था. महिला आरक्षण बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था. इस 33 फीसदी आरक्षण के अंदर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) को शामिल किया गया था इन जाति की महिलाओं के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का इस बिल में कोई प्रावधान नहीं था.
2 साल बाद फिर निकला महिला आरक्षण बिल का जिन्न
वर्ष 1998 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार आई. लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा पेश किया गया. लेकिन अटल बिहारी की सरकार कई दलों के सहयोग से चल रही थी. इस बिल को लाने के बाद वाजपेयी सरकार को सहयोगी दलों के विरोध का सामना करना पड़ा था. परिणामस्वरुप अटल की सरकार में यह बिल पास नहीं हो सका. इसके बाद भी महिला आरक्षण बिल को 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की. लेकिन अटल बिहारी की सरकार सफल नहीं हो पाई.
कांग्रेस ने भी पेश किया महिला आरक्षण बिल
2004 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 2008 में इस बिल को 108 वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया. 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल भारी बहुमत से पारित हुआ. महिला आरक्षण बिल को बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू का दिल खोलकर समर्थन मिला. लेकिन समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने इस का विरोध किया था जिस कारण यूपीए ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया. ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे. कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है.
सदन भंग होने के बाद भी बिल अभी तक जिंदा क्यो ?
वर्ष 2008 में महिला आरक्षण बिल को क़ानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था. इस समिति मे शामिल सदस्यो में से दो सदस्य वीरेंद्र भाटिया और शैलेंद्र कुमार समाजवादी पार्टी के थे. इन लोगों की तरफ से यह बयान आया था कि वे महिला आरक्षण के विरोधी नहीं हैं. लेकिन जिस तरह से बिल का मसौदा तैयार किया गया, वे उससे सहमत नहीं थे. इन दोनों सदस्यों की सिफ़ारिश की थी कि हर राजनीतिक दल अपने 20 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को दें और महिला आरक्षण 20 फ़ीसदी से अधिक न हो. जब साल 2014 में लोकसभा भंग हुई और केंद्र में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार आई. तो 2014 की लोकसभा भंग होने के कारण यह बिल अपने आप ख़त्म हो गया. लेकिन राज्यसभा के अंदर इस बिल को जीवित रखा गया. क्योकि राज्यसभा एक स्थायी सदन है और लोकसभा अस्थायी सदन. सदन के विशेष सत्र के दूसरे दिन की कार्यवाही में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा इस बिल को नए सिरे से पेश किया गया . लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद यह बिल राष्ट्रपति के पास मंज़ूरी के लिए जाएगा. इसके बाद यह क़ानून बन जाएगा. अगर यह बिल क़ानून बन जाता है तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा. इससे लोकसभा की हर तीसरी सदस्य महिला होगी.
ईश्वर ने ऐसे कामों के लिए मुझे चुना- पीएम मोदी
महिला आरक्षण बिल पर पहले पीएम ने भाषण देते हुए कहा कि महिला आरक्षण बिल पर काफी चर्चा हुई हैं, बहुत वाद-विवाद भी हुए हैं. अटल बिहारी वाजपेई के शासनकाल में कई बार महिला आरक्षण बिल पेश किया गया लेकिन बिल को पारित कराने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं था और इस कारण यह सपना अधूरा रह गया. ईश्वर ने शायद ऐसे कई कामों के लिए मुझे चुना है. कल ही कैबिनेट में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दी गई है. आज महिलाएं हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं..हमारी सरकार आज दोनों सदनों में महिलाओं की भागीदारी पर एक नया बिल ला रही है.
बिल को लेकर शाह-रंजन में हुई बहस
महिला आरक्षण विधेयक के क्रेडिट का लकेल दोनो दलों में बहस शुरु हो गई है कांग्रेस के सासंद और लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन लगातार महिला आरक्षण विधेयक को कांग्रेस सरकार की पहल बता रहे हैं. अधीर रंजन ने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक की मांग यूपीए ने शुरू की थी. इस पर अमित शाह ने नए संसद भवन में कहा कि माननीय अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि पुराना विधेयक अभी भी जीवित है, जबकि स्पष्ट जानकारी है कि पुराने विधेयक की वैधता खत्म हो गई है. केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने अधीर रंजन पर पलटवार करते हुए कहा कि चौधरी जो दावा कर रहे हैं क्या उसके समर्थन में उनके पास कोई दस्तावेज हैं? उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस सांसद के पास इससे संबंधित कोई कागजात हैं तो उन्हें सामने रखने चाहिए. गृह मंत्री ने आगे कहा कि अगर कोई कागज नहीं रख सकते हैं, तो कांग्रेस नेता को अपना बयान वापस लेना चाहिए. शाह ने आगे कहा कि चौधरी ने यह भी कहा है कि यह विधेयक लोकसभा में राजीव गांधी के समय में पारित किया गया था, जबकि ऐसा कभी भी नहीं हुआ है. शाह के इतना बोलते ही संसद में जोरदार हंगामा होने लगा. विपक्षी नेताओं के जोरदार हंगामे के बीच शाह ने कहा कि मुझे पूरा तो बोलने दीजिए। वहीं, लोकसभा स्पीकर भी विपक्षी सांसदों को शांत कराते दिखे.