Sunday, November 17, 2024
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Shocking News : उत्तर प्रदेश की महिला जज ने मांगी इच्छा मृत्यु, CJI को पत्र में लिखा, मुझे मिली शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना, नहीं हुई सुनवाई भी

बांदा (उत्तर प्रदेश)। क्या देश में महिला जज भी सुरक्षित नहीं हैं? ये सवाल इसलिए उठा, क्योंकि उत्तर प्रदेश की एक महिला सिविल जज ने आरोप लगाया कि बाराबंकी में तैनाती के दौरान जिला जज ने उन्हें शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी। इतना ही नहीं, जिला जज की ओर से रात में मिलने आदि का दबाव भी बनाया गया। न्यायिक अव्यवस्थाओं से क्षुब्ध होकर अब इस सिविल जज ने सर्वोच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश से इच्‍छा मृत्‍यु की मांग की है। जिला जज के खिलाफ शिकायत के बाद भी कोई सुनवाई नहीं होने से निराश सिविल जज ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा जताई।

सिविल जज ने पत्र में लिखा कि मैं निराश होकर यह पत्र लिख रही हूं। इस पत्र का मेरी कहानी बताने और प्रार्थना करने के अलावा कोई अन्‍य उद्देश्‍य नहीं है। मेरे सबसे बड़े अभिभावक (CJI) आप मुझे अपना जीवन समाप्‍त करने की अनुमति दें। मैं उत्‍साह और इस विश्‍वास के साथ न्‍यायिक सेवा में शामिल हुई थी कि मैं आम लोगों को न्‍याय दिला पाऊं। लेकिन मुझे पता नहीं था कि जिस कार्य के लिए मैं जा रही हूं, वहां पर मुझे ही न्‍याय के लिए भीख मांगना पड़ेगा।

यौन उत्‍पीड़न के साथ जीना सीखें देश की महिलाएं

सिविल जज ने यह भी लिखा कि मेरी सेवा के थोड़े से समय में मुझे खुली अदालत में दुर्व्‍यवहार का सामना करना पड़ा। मेरे साथ यौन उत्‍पीड़न किया गया। मैं काम करने वाली महिलाओं से कहना चाहती हूं कि यौन उत्‍पीड़न के साथ जीना सीखें, यही हमारे जीवन का सत्‍य है। शिकायत करने पर प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। मैं जज हूं, लेकिन मैं अपने लिए निष्‍पक्ष जांच तक नहीं करा सकी। चलो न्‍याय क्‍लोज करें, मैं सभी महिलाओं को सलाह देती हूं कि वह खिलौना या निर्जीव वस्‍तु बनना सीख लें।

निष्पक्ष जांच नहीं करा सकी

जज ने कहा कि अगर कोई महिला सोचती है कि आप सिस्टम के खिलाफ लड़ेंगे तो मैं आपको बता दूं कि मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं जज हूं। न्याय तो दूर, मैं अपने लिए भी निष्पक्ष जांच नहीं करा सकी। एक विशेष जिला न्यायाधीश और उनके सहयोगियों ने मेरा यौन उत्पीड़न किया। मुझे रात में जिला जज से मिलने को कहा गया।

हाईकोर्ट में शिकायत की, कोई सुनवाई नहीं हुई

महिला जज ने लिखा, मैंने साल-2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से शिकायत की। आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। किसी ने भी मुझसे यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि क्या हुआ, आप परेशान क्यों हैं? मैंने जुलाई-2023 में हाईकोर्ट की आंतरिक शिकायत समिति से शिकायत की। जांच शुरू करने में ही 6 महीने और एक हजार ईमेल लग गए। जो जांच प्रस्तावित जांच भी है, वह एक दिखावा है। पूछताछ में गवाह जिला न्यायाधीश के तत्काल अधीनस्थ हैं। समिति कैसे गवाहों से अपने बॉस के खिलाफ गवाही देने की उम्मीद करती है, यह मेरी समझ से परे है। यह बहुत बुनियादी बात है कि निष्पक्ष जांच के लिए गवाह को प्रतिवादी (अभियुक्त) के प्रशासनिक नियंत्रण में नहीं होना चाहिए।

मेरी प्रार्थना पर ध्यान नहीं दिया गया

जज ने कहा, मैंने केवल इतना अनुरोध किया था कि जांच लंबित रहने के दौरान जिला न्यायाधीश का स्थानांतरण कर दिया जाए, लेकिन मेरी प्रार्थना पर भी ध्यान नहीं दिया गया। ऐसा नहीं है कि मैंने जिला जज के तबादले की प्रार्थना यूं ही कर दी थी। माननीय उच्च न्यायालय पहले ही न्यायिक पक्ष में यह निष्कर्ष दे चुका है कि साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरी शिकायतों और बयान को मौलिक सत्य के रूप में लिया जाएगा। मैं बस एक निष्पक्ष जांच की कामना करती थी। जांच अब सभी गवाहों के नियंत्रण में जिला न्यायाधीश के अधीन होगी। हम सभी जानते हैं कि ऐसी जांच का क्या हश्र होता है। जब मैं स्वयं निराश हो जाऊंगी तो दूसरों को क्या न्याय दूंगी? मुझे अब जीने की कोई इच्छा नहीं है। पिछले डेढ़ साल में मुझे एक चलती-फिरती लाश बना दिया गया है। मेरी जिंदगी का कोई मकसद नहीं बचा है। कृपया मुझे अपना जीवन सम्मानजनक तरीके से समाप्त करने की अनुमति दें।

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