नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गंभीर अपराधों में आरोप तय किये गये लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी याचिका पर जवाब के लिए शुक्रवार को केंद्र को दो सप्ताह का समय दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने अवगत कराया कि केंद्र सरकार ने इस मामले में कोई जवाब दाखिल नहीं किया है। पीठ ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार के वकील ने जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय मांगा है। इसे दो सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाये।’’ शीर्ष अदालत वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। न्यायालय ने इस मुद्दे पर केंद्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किये थे।
जिन लोगों के खिलाफ आपराधिक मामलों में आरोप तय किये गये हैं, उनलोगों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने के अलावा याचिका में केंद्र और भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को ऐसे उम्मीदवारों पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है। याचिका में दावा किया गया है कि विधि आयोग की सिफारिशों और अदालत के पूर्व के दिशानिर्देशों के बावजूद केंद्र और निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में कोई भी कदम नहीं उठाया है। याचिका में कहा गया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 539 विजेताओं में से 233 (43 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए।
गैर-सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) की एक रिपोर्ट के आंकड़ों पर प्रकाश डालते हुए याचिका में कहा गया है कि 2009 के बाद से घोषित गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या में 109 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिनमें से एक ने अपने खिलाफ 204 आपराधिक मामले होने की घोषणा की है। इन मामलों में गैर इरादतन हत्या, घर में अनधिकृत प्रवेश, डकैती, आपराधिक धमकी आदि करने से संबंधित मामले शामिल हैं। याचिका में कहा गया है, ‘‘चिंताजनक बात यह है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों का प्रतिशत और उनकी जीत की संभावना पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है।’’