Bengal SIR : कोलकाता। पश्चिम बंगाल में निर्वाचन आयोग की मसौदा मतदाता सूची और एसआईआर प्रक्रिया के तहत दूसरे चरण की सत्यापन सुनवाई ने राज्य में 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के प्रबल समर्थक माने जाने वाले मतुआ मतदाताओं में हलचल मचा दी है जिनके समक्ष राज्य की 40 से 50 सीटों पर मताधिकार से वंचित होने का खतरा पैदा हो गया है। बांग्लादेश से आये हिंदू दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले मतुआ समुदाय के मतदाताओं को विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ‘कोर’ मतदाता माना जाता है जिन्होंने 2019 में पार्टी को भरपूर समर्थन दिया। धार्मिक उत्पीड़न के कारण दशकों पहले बांग्लादेश से पलायन कर चुके दलित हिंदू शरणार्थी समुदाय मतुआ के लिए, 2002 के बाद पहली बार राज्यव्यापी विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया ने पहचान और नागरिकता को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं।
बंगाल में मतदाताओं को मताधिकार से वंचित होने का डर
पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना, नदिया और दक्षिण 24 परगना के कुछ हिस्सों में मजबूत उपस्थिति वाला यह समुदाय खुद को अब चुनावी राजनीति में हो रही उथल-पुथल के केंद्र में पा रहा है और इसका 2026 के विधानसभा चुनावों में असर दिख सकता है। लेकिन एसआईआर के तहत तैयार मसौदा मतदाता सूची ने मतुआ परिवारों में आशंका पैदा कर दी है। इनमें से कई परिवारों को डर है कि सुनवाई के दूसरे चरण में दस्तावेज में खामियां उजागर हो सकती हैं और इसके परिणामस्वरूप उन्हें मतदान के अधिकार से वंचित होना पड़ सकता है। राज्य भर में, 58,20,898 मतदाताओं के नाम मसौदा सूची से हटा दिए गए हैं, जिससे पश्चिम बंगाल में मतदाताओं की संख्या 7.66 करोड़ से घटकर 7.08 करोड़ रह गई है।

निर्वाचन आयोग के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि लगभग 1.36 करोड़ प्रविष्टियों में तार्किक विसंगतियां पाई गई हैं और लगभग 30 लाख मतदाताओं को ‘अमान्य’ श्रेणी में रखा गया है, जिससे सुनवाई के लिए बुलाए जाने वाले मतदाताओं की संख्या लगभग 1.66 करोड़ हो जाती है। विभिन्न दलों के मतुआ नेताओं ने दावा किया कि इन मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा इसी समुदाय से संबंधित है। अखिल भारतीय मतुआ महासंघ के महासचिव महितोष बैद्य ने कहा, अगले चरण में, ऐसे मतदाताओं को सत्यापन के लिए बुलाया जा सकता है और उनसे निर्धारित दस्तावेज में से कोई एक प्रस्तुत करने को कहा जा सकता है। हालांकि, विस्थापन, पलायन और औपचारिक अभिलेखों के अभाव के कारण, कई मतुआ परिवारों के पास ऐसा एक भी दस्तावेज नहीं है। उन्होंने कहा कि मतदाता सत्यापन के दौरान नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के प्रमाणपत्रों या यहां तक कि सीएए आवेदन पत्रों को मान्यता न मिलने से चिंता और बढ़ गई है। उन्होंने दावा किया कि हालांकि 60,000 से 70,000 सीएए आवेदन दाखिल किए गए हैं, लेकिन अब तक केवल 10,000 से 15,000 प्रमाणपत्र ही जारी किए गए हैं, जिससे हजारों लोग अधर में लटके हुए हैं।
मतुआ आंदोलन के आध्यात्मिक और राजनीतिक केंद्र ठाकुरनगर में, मसौदा मतदाता सूची और सुनवाई को लेकर अनिश्चितता चर्चा का विषय बनी हुई है। एक मतुआ मतदाता ने कहा, 2002 में मेरे माता-पिता और दादा-दादी मतदाता सूची में नहीं थे। हम सीमा पार से आए थे। अब हमसे दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं। हम क्या दिखाएंगे। मतुआ समुदाय के अधिकतर मतदाताओं के पास आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र हैं, लेकिन उन्हें डर है कि निवास प्रमाण या माता-पिता से संबंध के अतिरिक्त प्रमाण मांगे जाने पर ये अपर्याप्त साबित हो सकते हैं। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा है कि जिन मतदाताओं को ‘अमान्य मतदाता’ के रूप में चिह्नित किया गया है, उन्हें सुनवाई का अवसर दिया जाएगा। सुनवाई 15 जनवरी तक निर्धारित है और अंतिम मतदाता सूची 14 फरवरी को प्रकाशित की जाएगी।




