नई दिल्ली। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी के संवाददाता सम्मेलन में महिला पत्रकारों की गैर मौजूदगी को लेकर शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधा और उनसे इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि यह महिला पत्रकारों का अपमान है।
महिला पत्रकारों की एंट्री बैन क्यों? : प्रियंका गांधी
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री इन दिनों भारत के दौरे पर हैं। मुत्तकी ने शुक्रवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ व्यापक वार्ता करने के कुछ घंटों बाद संवाददाता सम्मेलन किया। प्रियंका गांधी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कृपया भारत दौरे पर आए तालिबान के प्रतिनिधि के संवाददाता सम्मेलन से महिला पत्रकारों को दूर रखे जाने पर अपना रुख स्पष्ट करें। प्रियंका गांधी ने कहा, यदि महिलाओं के अधिकारों की आपकी स्वीकृति केवल चुनावों के बीच का दिखावा नहीं है, तो हमारे देश में जो अपनी महिलाओं को अपनी रीढ़ और गर्व मानता है, इस अपमान को कैसे स्वीकार किया गया?

तालिबान शासन में महिलाओं की दुर्दशा
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों की गैरमौजूदगी अफगानिस्तान में महिलाओं की दयनीय स्थिति को दर्शाती है। अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति, विशेष रूप से तालिबान के अगस्त 2021 में सत्ता में लौटने के बाद अत्यंत दयनीय है। तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों पर सख्त पाबंदियां लगा रखी है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों ने लैंगिक रंगभेद तक करार दिया है। पिछले महीने अफगानिस्तान में एक सप्ताह के भीतर तीसरा भूकंप आया, जिसमें 2,200 से अधिक लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस आपदा का सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर पड़ा, जो मलबे में फंसी रहीं, क्योंकि तालिबान द्वारा लागू सख्त नियमों के कारण पुरुष बचावकर्मियों को महिलाओं को छूने की मनाही थी। कई महिला पीड़ितों को तब तक इंतजार करना पड़ा जब तक महिला बचावकर्मी नहीं आईं, जो तालिबान द्वारा महिलाओं की शिक्षा और काम पर प्रतिबंध के कारण बहुत कम थीं। तालिबान ने 12 साल से अधिक उम्र की लड़कियों के लिए माध्यमिक स्कूल (6वीं कक्षा से ऊपर) और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। 2025 तक, लाखों लड़कियां स्कूल-कॉलेज से वंचित हैं। केवल प्राथमिक स्तर (1-6 कक्षा) तक पढ़ाई की अनुमति है, लेकिन वह भी सीमित और सख्त धार्मिक पाठ्यक्रम के साथ।