Marathi Language Row : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक याचिकाकर्ता से महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे पर उत्तर भारतीय समुदाय के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करने और हिंसा भड़काने का आरोप लगाने वाली उसकी याचिका मुंबई उच्च न्यायालय में दाखिल करने को कहा। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने उत्तर भारतीय विकास सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील शुक्ला से अपनी शिकायतों को लेकर उच्च न्यायालय न जाने का कारण पूछा।
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, क्या मुंबई उच्च न्यायालय में छुट्टी है? जिसके बाद शुक्ला के वकील ने याचिका वापस ले ली। पीठ ने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने और उच्च न्यायालय जाने की अनुमति दे दी। शुक्ला की याचिका में आरोप लगाया गया है कि मनसे कार्यकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने के उनके बार-बार किए गए अनुरोध के बावजूद महाराष्ट्र सरकार और पुलिस ने जवाब नहीं दिया। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि मनसे कार्यकर्ताओं ने अतीत में उनके खिलाफ हिंसा, जान से मारने की धमकी देने और उत्पीड़न का सहारा लिया है।
हिंदी बोलने पर उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी : राज ठाकरे
याचिका में कहा गया है कि उत्तर भारतीयों के अधिकारों की वकालत करने के कारण उन्हें मनसे और उसके सहयोगी समूहों द्वारा निशाना बनाया गया है और धमकियां दी गईं तथा उत्पीड़न किया गया। याचिका में कहा गया है कि 30 मार्च को गुड़ी पड़वा की रैली के दौरान राज ठाकरे ने एक भड़काऊ भाषण दिया था, जिससे हिंदी बोलने पर उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी थी।
याचिका में कहा गया है कि इस भाषण का प्रसारण किया गया और इसके कारण मुंबई के कई स्थानों, जिनमें पवई और वर्सोवा स्थित डी-मार्ट शामिल हैं, पर हिंदी भाषी कर्मचारियों पर हिंसक हमले हुए। याचिका में कहा गया, इस भाषण से पहले भी, याचिकाकर्ता को गंभीर धमकियां मिली थीं, जिनमें ट्विटर पर एक भयावह संदेश शामिल था जिसमें खुलेआम उनकी हत्या के लिए उकसाया गया था, और 100 से ज्यादा गुमनाम फोन कॉल आए थे जिनमें उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई थी।
उन्होंने कहा, 6 अक्टूबर, 2024 को मनसे से जुड़े लगभग 30 लोगों के एक समूह ने याचिकाकर्ता के राजनीतिक दल के कार्यालय परिसर में तोड़फोड़ करने का प्रयास किया। शुक्ला ने दावा किया कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और मुंबई के पुलिस आयुक्त के अलावा भारत निर्वाचन आयोग को कई लिखित शिकायतों के बावजूद, कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई।