Wednesday, August 27, 2025
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Nikki Murder Case : निक्की भाटी हत्याकांड से छिड़ी दहेज प्रथा की बहस, रोजाना हो रहे है चौंकाने वाले खुलासे, उलझता जा रहा है केस

ग्रेटर नोएडा की निक्की भाटी की दहेज से जुड़ी दर्दनाक मौत ने समाज में व्याप्त दहेज प्रथा की भयावहता उजागर कर दी है। परिवार की लगातार मांगों और उत्पीड़न का शिकार बनी निक्की को जलाकर मार दिया गया। यह घटना देश में हर दिन होने वाली औसतन 20 दहेज मौतों की एक और कड़ी है।

Nikki Murder Case : ग्रेटर नोएडा की 26-वर्षीय निक्की भाटी की दर्दनाक मौत ने एक बार फिर पूरे देश में दहेजप्रथा के मुद्दे पर बहस छेड़ दी है, जहां यह देखा गया कि आज भी करोड़ों महिलाएं पितृसत्तात्मक नियंत्रण, सामाजिक परंपराओं और कमजोर कानून व्यवस्था के जाल में फंसी हुई हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, देश में हर दिन कहीं न कहीं 20 महिलाएं दहेज की मांगें पूरी न हो पाने के कारण मौत का शिकार होती हैं। निक्की भाटी भी उनमें से एक थी। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक है।

जलती हुई निक्की भाटी के वीडियो ने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर दिया

निक्की को कथित रूप से 21 अगस्त को ग्रेटर नोएडा के सिरसा गांव में आग के हवाले कर दिया गया। उसके पति द्वारा किए गए हमले और फिर जलती हुई निक्की के वीडियो ने देश की सामूहिक अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया। निक्की के परिवार ने बताया कि 2016 में शादी के समय उन्होंने ससुराल वालों को एक स्कॉर्पियो, एक मोटरसाइकिल और सोना उपहार में दिया था, लेकिन उनकी मांगें यहीं नहीं थमीं। उन्होंने बाद में 36 लाख रुपये नकद और एक लग्जरी कार की मांग की। निक्की और उसकी बहन की शादी उसी परिवार में दो भाइयों से हुई।

महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, मैं हाल ही में नोएडा में एक शादी में गई थी और वहां मेरा अनुभव भयावह था। मैंने देखा कि फॉर्च्यूनर, मर्सिडीज जैसी लग्जरी कारें खुलेआम दहेज के रूप में दी जा रही थीं। वहां नेता भी मौजूद थे और वे इस सबका जश्न मना रहे थे। मैं दहेज के इस महिमामंडन को बर्दाश्त नहीं कर पाई और वहां से चली गई। उन्होंने बताया, यहां तक कि निक्की के मामले में भी मैं एक न्यूज चैनल पर हो रही बहस में शामिल हुई थी, जहां पैनल में उसके पिता भी शामिल थे। जो कुछ उनके साथ हुआ है, उसके बावजूद बहस के दौरान वे बार-बार इस बात पर जोर दे रहे थे कि उन्होंने अपने दामाद को एक टॉप मॉडल एसयूवी दी थी। यह दर्शाता है कि दहेज हमारे समाज में कितना सामान्य और स्वीकार्य बना हुआ है, चाहे लोग दुःख में क्यों न हों।

ब्यूटी पार्लर का काम करती थी दोनों बहनें

निक्की और उसकी बहन का एक ब्यूटी सैलून था और वह सोशल मीडिया पर भी सक्रिय थी। जब उसने (निक्की ने) मदद के लिए अपने परिवार से संपर्क किया तब इस मामले पर एक नहीं, बल्कि कई बार पंचायत बैठी। इसके बावजूद उसे फिर से ससुराल भेज दिया गया। यह सब दिखाता है कि दहेज जैसी कुप्रथा समाज की संरचना में कितनी गहराई से जड़ें जमा चुकी है। भयाना ने कहा कि दहेज न केवल आज भी मौजूद है, बल्कि देश के कई हिस्सों में यह बेहद आम है। इसकी निंदा करने के बजाय दूल्हे और दुल्हन, दोनों पक्षों, के परिवार इसको बढ़ावा देते हैं। भारत में वर्ष 1961 से गैरकानूनी घोषित दहेज प्रथा आज भी एक भयावह सामाजिक सच्चाई है, जहां दुल्हन के परिवार से अपेक्षा की जाती है कि वह दूल्हे के परिवार को नकद, कपड़े और गहने उपहार में दें और अगर वे ऐसा नहीं करते तो महिलाएं उत्पीड़न, यातना और अक्सर जलाकर मार डालने जैसी घटनाओं का शिकार होती हैं।

निक्की की मौत की जांच में हर दिन नये सबूत सामने आ रहे हैं, जो शुरुआती निष्कर्षों से कुछ अलग संकेत दे रहे हैं। शुरुआती निष्कर्षों में यह बात सामने आ रही थी कि उसके पति विपिन और उसके परिवार ने निक्की को आग के हवाले किया था। फिलहाल सभी आरोपी- पति विपिन भाटी, सास दया, ससुर सतवीर भाटी और देवर रोहित भाटी, पुलिस की गिरफ्त में हैं। क्या उसकी हत्या हुई या उसने आत्महत्या की? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सच तो यह है कि वह दहेज और नौ साल तक चले लगातार उत्पीड़न की एक और शिकार थी, जिसने उसे एक भयावह, असामयिक मौत की ओर धकेल दिया। राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी इलाके में स्थित एक गांव में निक्की की मौत के एक दिन बाद राजस्थान के जोधपुर में एक शिक्षिका संजू बिश्नोई ने कथित तौर पर खुद को और अपनी बेटी को आग लगा ली। वह दहेज की मांग से इतनी परेशान थी कि उसने अपनी तीन साल की बच्ची को गोद में बिठाया, उसके ऊपर ज्वलनशील पदार्थ डाला और आग लगा ली।

बच्ची की तुरंत मौत हो गई, जबकि संजू ने अगले दिन इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। मानसा ग्लोबल फाउंडेशन फॉर मेंटल हेल्थ की संस्थापक डॉ. श्वेता शर्मा ने कहा, आज महिलाएं ऊंचे वेतन वाली नौकरियां कर रही हैं, फिर भी उन्हें आश्रित ही समझा जाता है। दहेज प्रथा पुरुषों के अहं को तुष्ट करने का एक माध्यम बन गई है। जब किसी व्यक्ति को लगता है कि उसका नियंत्रण या अधिकार खतरे में है, तो वह कभी-कभी गुस्से में आकर गलत व्यवहार या हिंसा कर सकता है और उसे इसके परिणामों की परवाह नहीं होती। मनोवैज्ञानिक ने गहनता से अध्ययन करने पर बताया कि दहेज ‘‘पितृसत्तात्मक नियंत्रण को सुदृढ़ करने’’ के एक साधन के रूप में विकसित हो गया है तथा यह लड़की को एक बोझ के रूप में दर्शाता है, जहां उसके माता-पिता से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इस तथाकथित दायित्व को पूरा करें।’’

दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के जेफ्री वीवर और वर्जीनिया विश्वविद्यालय के गौरव चिपलुंकर द्वारा किए गए एक अध्ययन में 1930 से 1999 के बीच भारत में हुई 74,000 से अधिक शादियों का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि 90 प्रतिशत शादियों में दहेज दिया गया। इसके अलावा, 1950 से 1999 के बीच दहेज में दिया गया पैसा कुल मिलाकर लगभग 250 अरब डॉलर तक पहुंच गया। भयाना ने कहा कि पुरुषों का अधिकार समझना और महिलाओं को ‘सहना और चुप रहना’ सिखाने वाली मानसिकता के कारण यह दहेज प्रथा अब तक जारी है। उन्होंने कहा कि इन मामलों में पीड़िताओं के माता-पिता को पूरी तरह से दोषमुक्त नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, हम अक्सर पीड़िताओं के माता-पिता को भी पीड़ित मानते हैं, लेकिन कभी-कभी वे भी ऐसी स्थिति को बढ़ावा देते हैं। निक्की ने भी कई बार अपनी तकलीफ जताई होगी, फिर भी उसके माता-पिता ने समाज की नजरों का डर और अपनी छवि को नुकसान पहुंचने के डर से उसे ससुराल भेज दिया। हम सब जानते हैं कि यह पहली बार नहीं था जब उसे मारा गया… उसकी मौत कोई अकेला अपराध नहीं थी, बल्कि यह एक प्रणालीगत समस्या है।

दहेज देश में नासूर बन चुका है

दहेज और उससे जुड़ी अपेक्षाएं किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं हैं। यह न केवल पूरे भारत में, बल्कि सभी जातियों और वर्गों में व्याप्त है।कहानियां अनंत हैं, कुछ बड़ी खबरें बन जाती हैं तो कुछ बमुश्किल ही अखबारों तक पहुंच पाती हैं और कुछ ऐसी होती हैं जिनके बारे में कभी रिपोर्ट नहीं की जाती। मध्यप्रदेश के खरगोन में 23-वर्षीय एक महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां महिला ने बताया था कि कथित तौर पर दहेज की मांग को लेकर उसके पति ने उसे गरम चाकू से दागा है। पुलिस ने इस घटना के संबंध में मामला दर्ज कर लिया है। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या इस महिला को कभी न्याय मिलेगा?

दहेज के मामलों में ‘न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि की कम दर’ को लेकर वकील सीमा कुशवाहा ने कहा कि दहेज की मांगें समय के साथ बदल गई हैं। दूल्हे का परिवार अक्सर यह तर्क देता है कि जो सामान दिया गया था वे केवल ‘तोहफे थे, मांगें नहीं’ और वे इसे कानूनी बचाव के तौर पर इस्तेमाल कर आरोपों को खारिज कर देते हैं। उच्चतम न्यायालय की वकील ने कहा, ‘‘यह आम रणनीति अदालत में महिला के मामले को काफी कमजोर कर देती है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (दहेज के खिलाफ कठोर कानून) का दुरुपयोग करने वाली महिलाओं के कुछ मामलों पर जोर देने वाली कहानियों का प्रसार वास्तविक पीड़िताओं के मामलों को कमजोर करता है।

Mukesh Kumar
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