सुरक्षा एजेंसियां साइबर अपराधियों की पहचान क्यों नहीं कर पा रही हैं

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    तकनीकी क्रांति ने विकास को नए आयाम दिए हैं और मनुष्य के जीवन को बहुत ही आसान बना दिया, लेकिन यह विकास की राह विनाश की ओर बढ़ती प्रतीत हो रही है। डिजिटल युग में साइबर ठगों की बढ़ती सक्रियता देश व विश्व के लिए और गंभीर समस्या बन चुकी है। समस्या केवल साइबर ठगों की बढ़ती सक्रियता की ही नहीं है, पिछले कुछ समय से विमानों में बम रखने की जो फर्जी धमकियां दी जा रही हैं, उनसे भी यह पता चलता है कि साइबर संसार के शरारती तत्व बेलगाम हो चुके हैं और सरकारी तंत्र उन पर अंकुश लगाने में स्वयं को लाचार ही पा रहा है। पिछले दिनों पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में जिस तरह डिजिटल अरेस्ट का भय दिखाकर ठगी करने वालों से सचेत रहने की आवश्यकता जताई, उससे यह पता चलता है कि समस्या कितनी गंभीर रूप ले चुकी है। शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो लोगों से साइबर ठगी न की जाती हो। नि:संदेह इस समस्या से निपटने में लोगों की जागरूकता सहायक सिद्ध होगी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की ओर से लोगों को उस तरह से जागरूक नहीं किया जा रहा है जैसी जरूरत है। इसका पता इससे चलता है कि अच्छे-खासे पढ़े-लिखे लोग भी साइबर ठगों के शिकंजे में फंस रहे हैं। यह ठीक है कि इंटरनेट मीडिया पर लोगों को जागरूक करने की कोशिश हो रही है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं। अभी तक डिजिटल अरेस्ट का भय दिखाकर लोगों को ठगने वालों से आगाह करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से सिर्फ एक विज्ञापन जारी किया जा सका है। यह समझा जाना चाहिए कि केवल लोगों को जागरूक करने से ही बात बनने वाली नहीं है, क्योंकि साइबर ठग निरंकुश हो चुके हैं। पहले वे लोगों को प्रलोभन देकर अथवा वित्तीय लेन-देन संबंधी आवश्यक जानकारी मांगकर ठगते थे, लेकिन वे लोगों को डरा-धमकाकर ठगने का काम कर रहे हैं। इसी क्रम में डिजिटल अरेस्ट करने की धमकी दी जाती है। प्रारंभ में ये धमकियां पुलिस और सीबीआई अधिकारी बनकर दी जाती थीं। फिर ईडी, नारकोटिक्स और ऐसी ही अन्य एजेंसियों की आड़ लेकर लोगों को ठगा जाने लगा। अब तो स्थिति यह हो गई है कि फर्जी अदालत लगाकर लोगों को गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी देकर ठगी की जा रही है। स्पष्ट है कि साइबर ठगों का दुस्साहस हद से अधिक बढ़ गया है। यह इसीलिए बढ़ा हुआ है, क्योंकि हमारी एजेंसियां उन तक पहुंच नहीं पा रही हैं। यह ठीक है कि डिजिटल अरेस्ट का भय दिखाने वाले ज्यादातर ठग दूसरे देशों के फोन नंबर का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन वे देश के अंदर ही सक्रिय होते हैं। इनकी धमकियों से डरकर जो लोग विभिन्न खातों में धनराशि भेजते हैं, वे खाते भी देश में होते हैं। इसके बावजूद सुरक्षा एजेंसियां साइबर ठगों को शिकंजे में नहीं ले पा रही हैं तो इसे उनकी नाकामी ही कहा जाएगा। हर दिन बम धमाकों की धमकी मिल रही है और सरकारी तंत्र धूल में लट्‌ठ चलाने के अतिरिक्त कुछ कर भी नहीं पा रहा है।