कुवैत की एक इमारत में बुधवार को लगी भीषण आग में 40 से अधिक भारत के नागरिक जान गंवा चुके। वे नाइट शिफ्ट के बाद लौटकर सो रहे थे। आग की वजह से ज्यादातर को संभलने तक का मौका नहीं मिला, न ही तंग जगह के चलते भाग सके। कुवैती सरकार ने बताया कि अधिकतर मौतें दम घुटने की वजह से हुईं। इस मामले में तेजी से कार्रवाई हो रही है, लेकिन कुवैत समेत किसी भी खाड़ी मुल्क की तस्वीर पाक-साफ नहीं है। अक्सर इन पर आरोप लगता रहा है कि यहां प्रवासी मजदूर अमानवीय हालात में रहते हैं। जिन भी देशों के बॉर्डर फारस की खाड़ी से मिलते हैं, वे खाड़ी या गल्फ देश कहलाते हैं। इनमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, ये 6 देश शामिल हैं। सत्तर के दशक में ऑयल बूम के बाद से भारत से काफी सारे लोग काम के लिए गल्फ जाने लगे। इनमें पेशेवर लोगों के अलावा मजदूर ज्यादा थे, जैसे इमारत बनाने वाले या इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करने वाले।
मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स की जानकारी के अनुसार लगभग 10.34 मिलियन एनआरआई दो सौ से ज्यादा देशों में रह रहे हैं। इनमें कुवैत में 1.02 भारतीय हैं। इस देश में कुछ समय पहले सार्वजनिक नागरिक सूचना प्राधिकरण ने एक डेटा जारी किया था। इसकी मानें तो दिसंबर 2023 तक कुवैत की आबादी के 39 फीसदी लोग प्रवासी हैं। इसमें भी भारतीय वर्कर सबसे ज्यादा हैं। कामगार आमतौर पर गल्फ जाकर पैसे बचाते और अपने घर भेजते हैं। इससे कम समय में भारतीय करेंसी के हिसाब से काफी बचत हो जाती है। तनख्वाह भले ही ज्यादा दिख रही हो लेकिन वहां भारतीय कामगार अक्सर अमानवीय हालात में रहते हैं। यहां तक कि उनके काम के घंटे भी तय नहीं होते। उन्हें स्थानीय लोगों से खराब ट्रीटमेंट मिलता है। साल 2019 से जून 2023 तक बहरैन, ओमान, कुवैत, यूएई, कतर और सऊदी अरब के भारतीय दूतावासों में 48 हजार से ज्यादा शिकायतें आईं। वहां कफाला सिस्टम है, जिसमें कामगार अपने मालिक का गुलाम जैसा हो जाता है। उसके काम के घंटे बहुत ज्यादा होते हैं और पगार तय नहीं होती। कई एम्प्लॉयर अपने मजूदरों के पासपोर्ट तक अपने पास रख लेते हैं ताकि वे कहीं भाग न सकें। यहां तक कि उन्हें फोन रखने या वर्क एरिया से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं होती। सप्ताह में एक दिन भी छुट्टी नहीं मिलती। ऐसे मजदूरों की रहने-खाने की स्थिति बहुत बदतर होती है। वहां मुख्य रिहायशी इलाकों से दूर इमारतें बनाई जाती हैं, जहां प्रवासी मजदूरों को रखा जाता है। ये तंग दरवाजे-खिड़कियों वाले छोटे-छोटे कमरे होते हैं, जहां कई लोगों को साथ रखा जाता है। किराया दिए बगैर रहने के नाम पर मजदूर इस पर राजी भी हो जाते हैं। अपने देश में रोजगार सुलभ नहीं होने पर जान की कीमत पर ये मजदूर दूसरे देशों में पलायन को मजबूर होते हैं। भारतीय श्रमिकों को पलायन रोकने की दिशा में भारत सरकार को गंभीर प्रयास करने की जरूरत है।
Home अपने श्रमिकों का पलायन रोकने को कब कदम उठाएगी सरकार