देश की कीमत पर राजनीति कैसे स्वीकार्य की जा सकती है, बताएं
हिज्बुल्लाह के मुखिया हसन नसरल्लाह की मौत को लेकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। इजरायल ने 27 सितंबर को एयर स्ट्राइक कर उसको मार गिराया था। इसे लेकर अपने देश में सियासत तेज हो गई। पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत पर दुख जताया। उन्होंने कहा कि इस गहरे दुख और विद्रोह की घड़ी में हम फिलिस्तीन और लेबनान के लोगों के साथ खड़े हैं। नेशनल काॅन्फ्रेंस के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि बेकसूर लोगों को मारने और घायल करने की यह कड़ी रूकनी चाहिए, फिर चाहे ये गाजा में हो, लेबनान में या कहीं और। भारत सरकार, पीएम और अन्य देशों के नेताओं को इजराइल पर दबाव डालना चाहिए ताकि इलाके में शांति बहाल हो सके। दूसरी तरफ भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपीएन सिंह ने कहा कि महबूबा घड़ियाली आंसू बहा रही हैं। नसरल्लाह की मौत पर कैंपेन रोककर वे वोटबैंक की राजनीति कर रही हैं। उन्होंने कहा कि आतंकियों की मौत पर आंसू बहाना और उन्हें शहीद कहना उनकी पुरानी आदत है। कुछ समय पहले बुरहान वानी की मौत पर भी वे ऐसे ही रोई थीं। आतंकियों से हमदर्दी जताने वाली वे अकेली नहीं हैं। सोनिया गांधी ने भी बाटला हाउस में मारे गए आतंकियों के लिए आंसू बहाए थे। सवाल यह है कि आखिर आतंकवाद का समर्थन करना उचित कहा जा सकता है? देश सालों से आतंकवाद के दंश को झेल रहा है। उमर अब्दुल्ला ने तो ऐसे आतंकियों को निर्दोष तक साबित कर दिया। अब बताइए, जो आतंकवाद के जन्मदाता हैं और पूरे विश्व में अशांति के कारण बन रहे हैं। उन्हें बेकसूर कैसे कहा जा सकता है? हालांकि नरसंहार किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। भारत हमेशा से अहिंसा का समर्थक रहा है, लेकिन ऐसी अहिंसा क्या काम की, जिसमें अपने ही लोग मौत का शिकार होते चले जाएं। हमारे देश में नेताओं की मानसिकता ही यह रही है, वे विश्व में हो रही घटनाओं को अपने नफे-नुकसान के अनुसार तोलने की कोशिश करते हैं। कई बार तो ऐसा करते हुए वे राष्ट्र-विरोध पर ही उतर आते हैं। राजनेताओं को राजनीति करनी चाहिए, लेकिन देश की कीमत पर इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है? क्या हिजबुल्लाह आतंकवादी समूह नहीं है। हिजबुल्लाह के लड़ाके इजरायल पर हमले करते रहते हैं। इजरायल ने भी हिजबुल्लाह के खिलाफ कई ऑपरेशन चलाए हैं। इसमें किसी एक देश को दोषी मान लेना और दूसरे को गलत बताना तो किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं माना जा सकता? हिज्बुल्लाह का लक्ष्य ही इजरायल को खत्म करना रहा है तो फिर क्या इजरायल को आत्मरक्षा करने का भी अधिकार नहीं है? देश के नेताओं को आंख मूंदकर आतंकवाद का समर्थन करना बंद करना ही होगा। ये बताना होगा कि वे किसके साथ खड़े हैं?
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